संकटनाशन गणेश स्तोत्र

संकटनाशन गणेश स्तोत्र

स्वस्थ, धनी और समृद्धि के लिए पढ़ें ये स्तोत्र


संकटनाशन गणेश स्तोत्र (Sankat Nashak Ganesh Stotra)

भगवान गणेश को शुभ फलदाता माना जाता है। मान्यता है कि प्रत्येक बुधवार को गणपति का श्रद्धा से पूजन करने से घर की नकारात्मकता दूर होती है और शुभता आती है। इसके अलावा कुंडली में बुध की स्थिति मजबूत होती है। गणपति की कृपा जिस पर रहती है, उसके सभी संकटों का नाश हो जाता है और बिगड़े काम बनने लगते हैं। श्री गणेश का लोकप्रिय संकटनाशन स्तोत्र, मुनि श्रेष्ठ श्री नारद जी द्वारा रचा गया है। इस स्तोत्र के पाठ से व्यक्ति के जीवन के संकट खत्म हो जाते हैं। अतः इस स्तोत्र को श्री संकटनाशन स्तोत्र अथवा संकटनाशन गणपति स्तोत्र के नाम से भी जाना जाता है। श्री गणपति जी के सर्वप्रथम वक्रतुण्ड, एकदंत, कृष्ण पिंगाक्ष, गजवक्र, लम्बोदरं, छठा विकट, विघ्नराजेन्द्रं, धूम्रवर्ण, भालचंद्र, विनायक, गणपति तथा बारहवें स्वरूप नाम गजानंद का स्मरण करना चाहिए। क्योंकि इन बारह नामों का जो मनुष्य प्रातः, मध्यान्ह और सायंकाल में पाठ करता है उसे किसी प्रकार के विघ्न का भय नहीं रहता, श्री गणपति जी के इस प्रकार का स्मरण सब सिद्धियां प्रदान करने वाला होता है।

संकटनाशन गणेश स्तोत्र का महत्व (Importance of Sankat Nashak Ganesh Stotra)

यदि आप भी गणपति की कृपा के पात्र बनना चाहते हैं तो नियमित रूप से संकटनाशन गणेश स्तोत्र का पाठ करें। विद्वानों की माने तो संकटनाशन गणेश स्तोत्र का पाठ भगवान गणेश को अति प्रिय है। इसे करने से सभी दु:खों का अंत होता है और बिगड़े काम भी बनने लगते हैं। यदि आप रोजाना नहीं कर सकते तो सिर्फ बुधवार के दिन ही इसे 11 बार पढ़ें। इस पाठ को पढ़ने से पूर्व भगवान गणेश जी को सिंदूर, घी का दीपक, अक्षत, पुष्प, दूर्वा और नैवेद्य अर्पित करें। फिर मन में उनका ध्यान करने के बाद इस पाठ को पढ़ें। धन, पुत्र और मोक्ष की इच्छा रखने वाले को संकटनाशन गणेश स्तोत्र पाठ जरूर करना चाहिए। श्री संकटनाशन गणेश स्तोत्र का उल्लेख नारद पुराण में किया गया है। साथ ही गणेश पुराण में भी श्री संकटनाशन गणेश स्तोत्र का वर्णन मिलता है।

संकटनाशन गणेश स्तोत्र पढ़ने के फायदे (Benefits of reading Sankatnashan Ganesh Stotra)

श्री संकटनाशन गणेश स्तोत्र का नियमित रूप से पाठ करने से जातक की हर मनोकामना पूर्ण होती है, मन को शांति मिलती है, आपके जीवन की सभी प्रकार के बुराइयों को दूर रखता है और आपको स्वस्थ धनी और समृद्ध बनाता है। इस स्तोत्र के नित्य पठन से छह महीने में मनुष्य को इच्छित फल की प्राप्ति होती है। विद्यार्थी को विद्या तथा धन की कामना रखने वाले को धन और पुत्र की कामना रखने वालों को पुत्र की प्राप्ति होती है। एक साल तक नियमित पाठ करने से मनुष्य सिद्धि को प्राप्त कर लेता है।

संकटनाशन गणेश स्तोत्र का हिन्दी अर्थ (Meaning of Sankat Nashak Ganesh Stotra)

श्री संकट नाशन गणेश स्तोत्र

[ नारद उवाच ]

प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम् । भक्तावासं स्मरेन्नित्यमायुःकामार्थसिद्धये ॥1॥

अर्थ – पार्वती नंदन देव श्री गणेशजी को सिर झुकाकर प्रणाम करके अपनी आयु, कामना और अर्थ की सिद्धि के लिये उन भक्त निवास का नित्यप्रति स्मरण करे ॥1॥

प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम् । तृतीयं कृष्णपिङ्गाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम् ॥2॥ लम्बोदरं पञ्चमं च षष्ठं विकटमेव च । सप्तमं विघ्नराजं च धूम्रवर्णं तथाष्टमम् ॥3॥ नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम् । एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम् ॥4॥ द्वादशैतानि नामानि त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नरः । न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो ॥5॥

अर्थ – गणेश जी के पहला बारह नामों का जो पुरुष प्रात, मध्याह्न और सायंकाल पाठ करता है, उसे किसी प्रकार के विघ्न का भय नहीं रहता। बारह नामों का स्मरण करने से सभी सिद्धियां प्राप्त होती हैं। गणेश जी का नाम पहला वक्रतुण्ड (टेढ़ी सूंड वाले), दूसरा एकदन्त (एक दांत वाले), तीसरा कृष्णपिङ्गाक्ष (काली और भूरी आंखों वाले), चौथा गजवक्त्र (हाथी के समान मुख वाले), पांचवां लम्बोदर (बड़े पेट वाले), छठा विकट (विकराल), सातवां विघ्नराजेन्द्र (विघ्नों का शासन करने वाले राजाधिराज), आठवां धूम्रवर्ण (धूसर वर्ण वाले), नवाँ भालचन्द्र (जिसके ललाट पर चन्द्रमा सुशोभित है), दसवां विनायक, ग्यारहवां गणपति और बारहवां गजानन है।2 – 5॥

विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम् । पुत्रार्थी लभते पुत्रान्मोक्षार्थी लभते गतिम् ॥6॥

अर्थ – इससे विद्या भिलाषी विद्या, धनाभिलाषी धन, पुत्रेच्छु पुत्र तथा मुमुक्षु मोक्ष गति प्राप्त कर लेता है ॥6॥

जपेद् गणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासैः फलं लभेत् । संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशयः ॥7॥

अर्थ – जो इस गणपति स्तोत्र का जाप करता है, उसे छः मास में इच्छित फल प्राप्त हो जाता है तथा एक वर्ष में पूर्ण सिद्धि प्राप्त हो जाती है। इसमें किसी प्रकार का संदेह नहीं है ॥7॥ अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा यः समर्पयेत् ।

तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादतः ॥8॥

अर्थ – जो पुरुष इसे लिख कर आठ ब्राह्मणों को समर्पण करता है, गणेशजी की कृपा से उसे सब प्रकार की विद्या प्राप्त हो जाती है ॥8॥

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