श्री शांतादुर्गेची आरती | Shantadurgechi Ji Ki Aarti
एक बार भगवान विष्णु और शिवजी के बीच युद्ध हो रहा था। जब युद्ध में वे दोनों ही नहीं रुक रहे थे, तब भगवान ब्रह्मा ने माँ दुर्गा को बुलाया और उनसे उन्हें शांत करने का अनुरोध किेया और जब माँ दुर्गा उन्हें शांत किया तो सभी देवी-देवताओं ने उन्हें 'शांतादुर्गा' नाम से पुकारा। तब से उनका एक नाम देवी 'शांतादुर्गा' पड़ गया।
श्री शांतादुर्गा आरती | Shantadurgechi Aarti
जय देवी जय देवी जय शांते जननी । दुर्गे बहुदु:खदमने रतलो तव भजनी ॥
भूकैलासा ऐसी ही कवला नगरी । शांतादुर्गा तेथे भक्तभवहारी । असुराते मर्दुनिया सुरवरकैवारी । स्मरती विधीहरीशंकर सुरगण अंतरी ।
जय देवी जय देवी जय शांते जननी । दुर्गे बहुदु:खदमने रतलो तव भजनी ॥
प्रबोध तुझा नव्हे विश्वाभीतरी । नेति नेति शब्दे गर्जती पै चारी । साही शास्त्रे मथिता न कळीसी निर्धारी । अष्टादश गर्जती परी नेणती तव थोरी ।
जय देवी जय देवी जय शांते जननी । दुर्गे बहुदु:खदमने रतलो तव भजनी ॥
कोटी मदन रूपा ऐसी मुखशोभा । सर्वांगी भूषणे जांबूनदगाभा । नासाग्री मुक्ताफळ दिनमणीची प्रभा । भक्तजनाते अभय देसी तू अंबा ।
जय देवी जय देवी जय शांते जननी । दुर्गे बहुदु:खदमने रतलो तव भजनी ॥
अंबे भक्तांसाठी होसी साकार । नातरी जगजीवन तू नव्हसी गोचर । विराटरूपा धरूनी करीसी व्यापार । त्रिगुणी विरहीत सहीत तुज कैचा पार ।
जय देवी जय देवी जय शांते जननी । दुर्गे बहुदु:खदमने रतलो तव भजनी ॥
त्रितापतापे श्रमलो निजवी निजसदनी । अंबे सकळारंभे राका शशीवदनी । अगमे निगमे दुर्गे भक्तांचे जननी । पद्माजी बाबाजी रमला तव भजनी ।
जय देवी जय देवी जय शांते जननी । दुर्गे बहुदु:खदमने रतलो तव भजनी ॥