मर्यादा पुरूषोत्तम राम का रहस्य क्या है? जानिए राम जी के आदर्श, उनके बलिदान और उनके जीवन के सच्चे सिद्धांत के बारे में।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम, भगवान विष्णु के सातवें अवतार, धर्म, सत्य और आदर्श जीवन के प्रतीक हैं। वे अयोध्या के राजा दशरथ और रानी कौशल्या के पुत्र थे। श्रीराम ने जीवनभर मर्यादाओं का पालन किया और आदर्श पुत्र, पति, भाई और राजा के रूप में प्रतिष्ठित हुए। रावण का वध कर अधर्म का नाश किया और "रामराज्य" की स्थापना की। उनका जीवन हमें सच्चाई और कर्तव्य पालन का संदेश देता है।
हनुमान जी की रग रग में जो बसे वो राम हैं,
युगों युगों से सनातन धर्म का जो प्राण है वो राम हैं,
अपनी अर्धांगिनी के लिए संसार के सबसे बड़े राक्षस से भिड़ जाने वाले राम हैं,
सब कुछ पाकर भी सब कुछ छोड़ने की क्षमता रखने वाले राम हैं,
इतना ही नहीं भारत को पौरुष की प्रेरणा देने वाले भी राम ही हैं।
श्रीराम नाम का महत्व अनंत और अकल्पनीय है। इसे सनातन धर्म के ग्रंथों और संतों द्वारा अत्यंत महिमामय बताया गया है। कलियुग में राम नाम का जाप सभी साधनाओं में सर्वोत्तम है। इसे भक्ति योग, ज्ञान योग और कर्म योग का सार कहा गया है।
भगवान राम और माता सीता का संबंध आदर्श और दिव्यता का प्रतीक है। यह संबंध न केवल पति-पत्नी के प्रेम को दर्शाता है, बल्कि त्याग, निष्ठा और सह-अस्तित्व की उच्चतम भावना को भी प्रकट करता है। जब भगवान राम को वनवास हुआ, तो माता सीता ने राजमहल के सुख-सुविधाओं को छोड़कर उनके साथ वन जाने का निर्णय लिया। यह उनका पति के प्रति अटूट प्रेम और निष्ठा का प्रतीक था।
हनुमान और राम की पहली भेंट उस समय हुई जब राम और लक्ष्मण सीता माता की खोज में ऋष्यमूक पर्वत पर पहुंचे। हनुमानजी ने ब्राह्मण के रूप में उनका स्वागत किया और उनके उद्देश्यों को जानने के लिए विनम्रता से संवाद किया। यह पहली भेंट ही उनकी अटूट मित्रता और समर्पण का आधार बन गई।
भगवान राम को "मर्यादा पुरुषोत्तम" इसलिए कहा जाता है क्योंकि उन्होंने जीवन में आदर्श आचरण, नैतिकता और धर्म का पालन करते हुए एक आदर्श पुरुष और राजा के रूप में जीवन जिया। राम ने हमेशा धर्म और सत्य का पालन किया, भले ही उन्हें इसके लिए कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। भगवान राम ने अपने पिता राजा दशरथ के वचनों का सम्मान करने के लिए राज्य, ऐश्वर्य और सुख-वैभव का त्याग कर 14 वर्षों का वनवास स्वीकार किया।
राम ने "रामराज्य" की स्थापना की, जो न्याय, समानता और धर्म का प्रतीक माना जाता है।
राम ने समाज के सभी वर्गों को सम्मान दिया, चाहे वह केवट हो, शबरी हो, या फिर वानरराज सुग्रीव। उनका यह आचरण उन्हें सबके लिए प्रिय और पूजनीय बनाता है।
ऐसा माना जाता है कि "राम" नाम स्वयं ब्रह्म स्वरूप है। "र" अग्नि तत्व और "म" अमृत तत्व का प्रतीक है। यह नाम जाप मात्र से पापों का नाश होता है।
वाल्मीकि रामायण के अनुसार, भगवान राम का जन्म त्रेता युग में चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को पुनर्वसु नक्षत्र और कर्क लग्न में हुआ था। भगवान राम भी मांगलिक थे।
भगवान राम को विष्णु के सुदर्शन चक्र का तेज और भगवान शिव का पिनाक धनुष प्राप्त था। उनका धनुष "कोदंड" कहा जाता था।
सीता स्वयंवर में भगवान राम ने शिवजी के धनुष को तोड़ा, जिसे भगवान परशुराम ने धरती पर रखा था। यह धनुष केवल विष्णु के अवतार से टूटना संभव था।
रामायण में राम का वनवास 14 वर्ष का बताया गया है। इसमें "14" का रहस्य मानव जीवन के चतुर्दशी चंद्रमा से जोड़ा जाता है, जो अंततः पूर्णिमा के ज्ञान की ओर ले जाता है।
राम-सेतु को "आदिविन्यास" तकनीक से बनाया गया था। इस पर समुद्री पत्थरों को रखा गया, जो पानी पर तैरते थे। पत्थरों पर "राम" लिखा हुआ था।
राम नाम की महिमा इतनी है कि हनुमानजी ने संजीवनी पर्वत उठाने से पहले राम नाम का स्मरण किया। राम नाम ने उन्हें असीम शक्ति प्रदान की।
रामराज्य केवल राजनीतिक व्यवस्था नहीं, बल्कि एक नैतिक और आध्यात्मिक समाज का प्रतीक था। इसमें सभी वर्गों का सम्मान और न्याय की स्थापना होती थी।
शबरी के झूठे बेर खाने का प्रसंग यह दर्शाता है कि भगवान राम के लिए प्रेम और भक्ति सबसे बड़ा अर्पण है।
वाल्मीकि रामायण में भगवान राम की कथा पहले ही लिख दी गई थी। स्वयं भगवान राम ने इसे पढ़कर अपने जीवन को उसी अनुसार जिया।
आज जब मल्टीरिलेशनशिप्स के मायाजाल में लोग अपनी अपनी मैरीड लाइफ तबाह कर रहे हैं ऐसे में भगवान राम और माता सीता का मजबूत संबंध प्रेरणा देता है कि हमें अपने जीवनसाथी का तब भी साथ देना है जब परिस्थितियां कठिन हों। इसके साथ ही भगवान राम में अच्छे मित्र बनाने और मित्रता को निभाने की भी प्रेरणा देते हैं । वे हमें सिखाते हैं कि धर्म पर चला जाए तो विजय सुनिश्चत है।
किसी कवि ने क्या खूब कहा है कि
“राम आए कि सागर शिला सह सकें
भाव की एक रस में सदा बह सकें
कल्पना कर सकें नेह में रक सकें
राम आए कि कवि प्रेम पर कह सकें“
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