108 गुरु के नाम और मंत्र
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108 गुरु के नाम और मंत्र

क्या आप जानते हैं 108 गुरु के नाम और मंत्र? पढ़ें और इनसे अपनी आत्मिक शक्ति और शांति को बढ़ाएं।

108 गुरु के नाम के बारे में

108 गुरु के नामों का जाप करने से ज्ञान, बुद्धि और आध्यात्मिक शक्ति में वृद्धि होती है। गुरु की कृपा से जीवन में शिक्षा, करियर में सफलता प्राप्त होती है। इन नामों का स्मरण करने से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त होता है।

गुरु का अर्थ और परिभाषा

गुरु शब्द संस्कृत के दो अक्षरों से मिलकर बना है, ‘गु’ व ‘रु’। गु का अर्थ है अहंकार या अज्ञान, व रु का अर्थ है प्रकाश व ज्ञान। इस प्रकार गुरु की भूमिका होती है अज्ञानता के अंधकार से निकाल कर ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाना। गुरु एक शिक्षक, मार्गदर्शक और जीवन के सच्चे ज्ञान का स्रोत होते हैं, जो हमें नैतिकता, ईमानदारी, प्रेम, और सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं।

विभिन्न परंपराओं में गुरु की भूमिका (हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म आदि)

हिंदू धर्म में गुरु की भूमिका

गुरु का स्थान हर धर्म में विशेष महत्वपूर्ण है। इसी तरह हिन्दू धर्म में गुरु को भगवान से भी ऊपर का स्थान दिया गया है, क्योंकि वो शिष्य को सत्य, अहिंसा व ज्ञान के मार्ग पर चलने की शिक्षा देते हैं। हिंदू धर्म के प्रमुख गुरुओं की बात करें तो गुरु शंकराचार्य, गुरु गोरखनाथ, वल्लभाचार्य, रामानंद आदि सनातन धर्म के धर्मगुरु माने जाते हैं।

बौद्ध धर्म में गुरु की भूमिका

बौद्ध धर्म की स्थापना महात्मा बुद्ध ने की थी। अन्य धर्मों की तरह इस धर्म में भी गुरु का स्थान सर्वोपरि बताया गया है। बौद्ध गुरु शिष्य को ध्यान, साधना और सद्मार्ग पर चलने की शिक्षा देते हैं। बौद्ध धर्म के सिद्धांतों के अनुसार, "गुरु की शिक्षा से शिष्य न केवल नेक इंसान बनता है, बल्कि उसे बोधि यानी ज्ञान की भी प्राप्ति होती है।

जैन धर्म में गुरु की भूमिका

जैन धर्म में गुरु को ‘आचार्य’ या ‘तीर्थंकर’ कहा जाता है। जैन धर्म के पहले तीर्थंकर ऋषभदेव थे और 24वें व अंतिम तीर्थंकर महावीर स्वामी जी थे। इस धर्म में ‘गुरू की महिमा वरनी न जाय, गुरूनाम जपो मन, वचन, काय‘ कहकर गुरू को पंच परमेष्ठि का स्थान दिया गया है। जैन आचार्य द्वारा शिष्यों को अहिंसा, सत्य और जैन धर्म के सिद्धांतों का पालन करने की शिक्षा दी जाती है।

सिख धर्म में गुरु की भूमिका

सिख धर्म में कुल दस गुरु हुए हैं, जिनमें प्रथम गुरु गुरुनानक देव जी थे और अंतिम गुरु गुरु गोबिंद सिंह जी। हालांकि सिख समुदाय गुरु ग्रंथ साहिब को जीवित गुरु के रूप में मान्यता देता है और श्रद्धाभाव से उनका सुमिरन करता है। सिखों का विश्वास है कि सभी दस गुरुओं की आत्मा एक ही थी, जो अलग-अलग समय पर विभिन्न शरीरों में प्रकट हुई। अतः गुरु ग्रंथ साहिब में सभी गुरुओं का रूप समाहित माना जाता है।

गुरु और शिष्य के संबंध का महत्व

गुरु, सिर्फ एक शब्द नहीं, बल्कि एक पूरा जीवन दर्शन है। भारतीय संस्कृति में गुरु को ईश्वर से भी ऊँचा स्थान दिया गया है। कहते हैं, गुरु वही है जो हमारे जीवन के अंधकार को मिटाकर ज्ञान का दीप जलाए। एक श्लोक में कहा गया है:

"गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु: गुरुर्देवो महेश्वर:। गुरु साक्षात् परमब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥"

गुरु ब्रह्मा की तरह हमें नया जीवन देते हैं, विष्णु की तरह हमारी रक्षा करते हैं, और शिव की तरह हमारे दोषों का नाश करते हैं। इस तरह गुरु के बिना जीवन वैसा ही है जैसे बिना पतवार की नाव।

भगवान कृष्ण ने गीता में गुरु का महत्व समझाते हुए कहा है कि सच्चा गुरु वही है जो शिष्य को जीवन के संघर्षों को पार करने का मार्ग दिखाता है। गुरु केवल हमें शिक्षा ही नहीं देते, बल्कि वे हमें जीवन जीने का तरीका सिखाते हैं। सही और गलत का फर्क, मुश्किल समय में निर्णय लेने की समझ, और खुद को पहचानने का हुनर, यह सब गुरु ही सिखाते हैं। इस प्रकार गुरु से मिला ज्ञान हमारी सबसे बड़ी दौलत है, जो हमेशा हमारे साथ रहती है।

108 गुरु मंत्र

S.No

गुरु मंत्र

1

ॐ गुरवे नमः।

2

ॐ गुणाकराय नमः।

3

ॐ गोप्त्रे नमः।

4

ॐ गोचराय नमः।

5

ॐ गोपतिप्रियाय नमः।

6

ॐ गुणिने नमः।

7

ॐ गुणवतां श्रेष्ठाय नमः।

8

ॐ गुरूणां गुरवे नमः।

9

ॐ अव्ययाय नमः।

10

ॐ जेत्रे नमः।

11

ॐ जयन्ताय नमः।

12

ॐ जयदाय नमः।

13

ॐ जीवाय नमः।

14

ॐ अनन्ताय नमः।

15

ॐ जयावहाय नमः।

16

ॐ आङ्गिरसाय नमः।

17

ॐ अध्वरासक्ताय नमः।

18

ॐ विविक्ताय नमः।

19

ॐ अध्वरकृत्पराय नमः।

20

ॐ वाचस्पतये नमः।

21

ॐ वशिने नमः।

22

ॐ वश्याय नमः।

23

ॐ वरिष्ठाय नमः।

24

ॐ वाग्विचक्षणाय नमः।

25

ॐ चित्तशुद्धिकराय नमः।

26

ॐ श्रीमते नमः।

27

ॐ चैत्राय नमः।

28

ॐ चित्रशिखण्डिजाय नमः।

29

ॐ बृहद्रथाय नमः।

30

ॐ बृहद्भानवे नमः।

31

ॐ बृहस्पतये नमः।

32

ॐ अभीष्टदाय नमः।

33

ॐ सुराचार्याय नमः।

34

ॐ सुराराध्याय नमः।

35

ॐ सुरकार्यकृतोद्यमाय नमः।

36

ॐ गीर्वाणपोषकाय नमः।

37

ॐ धन्याय नमः।

38

ॐ गीष्पतये नमः।

39

ॐ गिरीशाय नमः।

40

ॐ अनघाय नमः।

41

ॐ धीवराय नमः।

42

ॐ धिषणाय नमः।

43

ॐ दिव्यभूषणाय नमः।

44

ॐ देवपूजिताय नमः।

45

ॐ धनुर्धराय नमः।

46

ॐ दैत्यहन्त्रे नमः।

47

ॐ दयासाराय नमः।

48

ॐ दयाकराय नमः।

49

ॐ दारिद्र्यनाशनाय नमः।

50

ॐ धन्याय नमः।

51

ॐ दक्षिणायनसम्भवाय नमः।

52

ॐ धनुर्मीनाधिपाय नमः।

53

ॐ देवाय नमः।

54

ॐ धनुर्बाणधराय नमः।

55

ॐ हरये नमः।

56

ॐ अङ्गिरोवर्षसञ्जताय नमः।

57

ॐ अङ्गिरःकुलसम्भवाय नमः।

58

ॐ सिन्धुदेशाधिपाय नमः।

59

ॐ धीमते नमः।

60

ॐ स्वर्णकायाय नमः।

61

ॐ चतुर्भुजाय नमः।

62

ॐ हेमाङ्गदाय नमः।

63

ॐ हेमवपुषे नमः।

64

ॐ हेमभूषणभूषिताय नमः।

65

ॐ पुष्यनाथाय नमः।

66

ॐ पुष्यरागमणिमण्डलमण्डिताय नमः।

67

ॐ काशपुष्पसमानाभाय नमः।

68

ॐ इन्द्राद्यमरसङ्घपाय नमः।

69

ॐ असमानबलाय नमः।

70

ॐ सत्त्वगुणसम्पद्विभावसवे नमः।

71

ॐ भूसुराभीष्टदाय नमः।

72

ॐ भूरियशसे नमः।

73

ॐ पुण्यविवर्धनाय नमः।

74

ॐ धर्मरूपाय नमः।

75

ॐ धनाध्यक्षाय नमः।

76

ॐ धनदाय नमः।

77

ॐ धर्मपालनाय नमः।

78

ॐ सर्ववेदार्थतत्त्वज्ञाय नमः।

79

ॐ सर्वापद्विनिवारकाय नमः।

80

ॐ सर्वपापप्रशमनाय नमः।

81

ॐ स्वमतानुगतामराय नमः।

82

ॐ ऋग्वेदपारगाय नमः।

83

ॐ ऋक्षराशिमार्गप्रचारवते नमः।

84

ॐ सदानन्दाय नमः।

85

ॐ सत्यसन्धाय नमः।

86

ॐ सत्यसङ्कल्पमानसाय नमः।

87

ॐ सर्वागमज्ञाय नमः।

88

ॐ सर्वज्ञाय नमः।

89

ॐ सर्ववेदान्तविदे नमः।

90

ॐ ब्रह्मपुत्राय नमः।

91

ॐ ब्राह्मणेशाय नमः।

92

ॐ ब्रह्मविद्याविशारदाय नमः।

93

ॐ समानाधिकनिर्मुक्ताय नमः।

94

ॐ सर्वलोकवशंवदाय नमः।

95

ॐ ससुरासुरगन्धर्ववन्दिताय नमः।

96

ॐ सत्यभाषणाय नमः।

97

ॐ बृहस्पतये नमः।

98

ॐ सुराचार्याय नमः।

99

ॐ दयावते नमः।

100

ॐ शुभलक्षणाय नमः।

101

ॐ लोकत्रयगुरवे नमः।

102

ॐ श्रीमते नमः।

103

ॐ सर्वगाय नमः।

104

ॐ सर्वतो विभवे नमः।

105

ॐ सर्वेशाय नमः।

106

ॐ सर्वदातुष्टाय नमः।

107

ॐ सर्वदाय नमः।

108

ॐ सर्वपूजिताय नमः।
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Published by Sri Mandir·December 9, 2024

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