द्वितीया श्राद्ध क्या है? | Dwitiya Shraddha Kya Hai
सनातन धर्म में पितरों की कृपा पाने और उनकी आत्मा की शांति के लिए पितृ पक्ष में श्राद्ध करने का विधान है। इस दौरान पितरों के निमित्त किए गए श्राद्ध-तर्पण से उनका ऋण उतरता है, साथ ही उनकी आत्मा वर्ष भर के लिए तृप्त हो जाती है। मान्यता है कि पितृपक्ष समाप्त होने के बाद पितृ जब प्रसन्न होकर पृथ्वी लोक से वापस जाते हैं, तो वह अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं। ‘द्वितीया श्राद्ध’ पितृपक्ष की द्वितीया तिथि पर किया जाता है। इस दिन उन पूर्वजों का श्राद्ध करने का विधान है, जिनकी मृत्यु द्वितीया तिथि पर हुई थी।
द्वितीया श्राद्ध कब है? | Dwitiya Shraddha Date & Muhurat
- द्वितीया श्राद्ध 19 सितंबर, बृहस्पतिवार को किया जाएगा।
- द्वितीया तिथि 19 सितंबर को प्रातः 04 बजकर 19 मिनट पर प्रारंभ होगी।
- द्वितीया तिथि का समापन 19 सितंबर की मध्यरात्रि 12 बजकर 39 मिनट पर होगा।
- कुतुप मुहूर्त दिन में 11 बजकर 27 मिनट से दोपहर 12 बजकर 16 मिनट तक रहेगा।
- रौहिण मुहुर्त दोपहर 12 बजकर 16 मिनट से 01 बजकर 05 मिनट तक रहेगा।
- अपराह्न काल मुहूर्त दोपहर 01 बजकर 05 मिनट से 03 बजकर 31 मिनट तक रहेगा।
द्वितीया श्राद्ध कैसे करें? | Dwitiya Shraddha Kaise Kare
- द्वितीया श्राद्ध करने के लिए प्रातः काल स्नान करके शुद्ध हो जाएं, और पितरों का स्मरण करें।
- इस दिन जल के साथ-साथ सत्तू व तिल से भी पितरों का तर्पण करने का विधान है।
- किसी विद्वान पंडित के मार्गदर्शन में तर्पण-पिंडदान आदि कर्म करें।
- श्राद्ध कर्म करने के लिए दोपहर का समय सबसे उपयुक्त माना जाता है।
- श्राद्ध कर्म गंगा तट पर कारण विशेष फलदायक माना जाता है, हालांकि यदि वहां जाना संभव न हो तो आप घर पर भी यह अनुष्ठान कर सकते हैं।
- पितरों को गंगाजल, जौ, तुलसी व शहद मिश्रित जल देने के बाद उनके नाम से दीपक जलाएं।
- इसके बाद पिता से लेकर (यदि पिता स्वर्गवासी हों) जितने पितरों के नाम याद हैं, उन सभी का स्मरण करें, और उन्हें अन्य जल अर्पित करें।
- तृतीया श्राद्ध पर गाय, कौवा, चींटी आदि के लिए भोजन का एक अंश निकालने के बाद तीन ब्राह्मणों को भी भोजन कराएं।
- इन जीवों को भोजन देते समय अपने पितरों का स्मरण करें, और मन में ही उनसे भोजन ग्रहण करने के लिए प्रार्थना करें।
- श्राद्ध कर्म संपन्न करने के बाद ब्राह्मण को अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान दक्षिणा दें।
- इस दिन किसी निर्धन व्यक्ति की सहायता करने से आपके पितरों को विशेष प्रसन्नता होगी।
द्वितीया श्राद्ध का महत्व | Dwitiya Shraddha Ka Mahatav
जिन पूर्वजो का स्वर्गवास द्वितीया तिथि पर हुआ हो उनके लिए द्वितीय श्राद्ध का विशेष महत्व है। पितृपक्ष में जिनके घर श्राद्ध नहीं होता है, उनके पितरों की आत्माएं बिना तृप्त हुए ही वापस जाती हैं, जिससे परिवार को पितरों का श्राप लगता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार पितरों के श्राप के कारण व्यक्ति के जीवन की प्रगति रुक जाती है, साथ ही नौकरी-व्यापार में असफलता, रोग, निर्धनता व परिवार में कलह बनी रहती है।
ऐसे में पितरों का आशीर्वाद पाने और उनकी आत्मा को संतुष्ट रखने के लिए उनकी मृत्यु तिथि पर श्राद्ध करना विशेष महत्वपूर्ण माना गया है। पितरों का श्राद्ध पुत्र, पौत्र या भांजा कोई भी कर सकता है, यदि इनमें से कोई ना हो तो बेटी का पति, यानी दामाद भी पितरों का श्राद्ध कर सकता है। इसके अलावा परिवार में कोई भी पुरुष न होने पर स्त्रियां भी अपने पितरों का श्राद्ध कर सकती हैं।