हनुमान सहस्रनाम स्तोत्रम्
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हनुमान सहस्रनाम स्तोत्रम्

क्या आप अपने जीवन से हर बाधा और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करना चाहते हैं? जानिए हनुमान सहस्रनाम स्तोत्रम् की शक्ति, जो 1000 दिव्य नामों के माध्यम से साहस, शक्ति और सफलता का आशीर्वाद देता है।

हनुमान सहस्रनाम स्तोत्रम् के बारे में

हनुमान सहस्रनाम स्तोत्रम् भगवान हनुमान के 1000 दिव्य नामों का संग्रह है, जो उनकी शक्ति, भक्ति और अद्भुत गुणों का वर्णन करता है। इस स्तोत्र का पाठ जीवन में साहस, शक्ति और आत्मविश्वास बढ़ाता है। यह सभी बाधाओं को दूर कर मन की शांति और सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है। हनुमान जी की कृपा से कार्यों में सफलता, शत्रुओं पर विजय और जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।

हनुमान सहस्रनाम स्तोत्रम्

भगवान हनुमान को हिन्दू धर्म में विशेष आराध्य का स्थान प्राप्त है। भक्तगण इन्हें बजरंग बली, महाबली, पवनपुत्र, अंजनीसुत, केसरीनंदन, आदि नामों से भी पुकारते है। सप्ताह के दो दिन मंगलवार और शनिवार विशेषतः श्री हनुमान को समर्पित है, तथा मान्यता है कि इस दिन कोई भी भक्त यदि सच्चे मन से हनुमान जी का ध्यान करें तो भगवान उनकी हर मनोकामना को पूर्ण करते हैं और उनके सभी संकटों को दूर करते हैं। इसलिए उन्हें संकटमोचक के नाम से भी जाना गया है।

हनुमान जी को प्रसन्न करने व उनकी आराधना करने के लिए उनके कई मंत्रों और चालीसा में से एक है- हनुमान सहस्रनाम स्तोत्रम्! पुराणों में भी वर्णन है कि यह सहस्त्रनाम स्तोत्र बहुत शक्तिशाली स्तोत्र है जो भगवान हनुमान के हजारों नामों का संग्रहीत रूप है। यह स्तोत्र विशेष रूप से भगवान हनुमान की पूजा और आराधना के लिए उपयोग किया जाता है, और यह उनके अद्भुत बल, वीरता, भक्ति, ज्ञान, और शक्ति को समर्पित है।

हनुमान सहस्त्रनाम स्तोत्र का महत्व

  • श्री हनुमान सहस्त्रनाम स्तोत्रम् के पाठ से मानवीय गुणों में वृद्धि होती है और जातक को मानसिक शांति का अनुभव होता है।
  • हनुमान सहस्त्रनाम का पाठ करने से भक्तों को जीवन के चार पुरुषार्थ—धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष—की प्राप्ति होती है।
  • हनुमान जी स्वयं ही निष्ठा एवं भक्ति के प्रतीक हैं। ऐसे में हनुमान सहस्त्रनाम का जाप करने से व्यक्ति को अपने जीवन में भी समर्पण का अनुभव होता है।
  • हनुमान सहस्त्रनाम स्तोत्र के जाप से व्यक्ति को सुख - समृद्धि एवं शक्ति प्राप्त होती है। साथ ही यह भक्तों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाता है।
  • हनुमान सहस्रनाम स्तोत्रम् का जाप करने के लिए मंगलवार व शनिवार का दिन चुनें।
  • इस दिन स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें और हनुमान जी की प्रतिमा या छवि के समक्ष ध्यान लगाकर पाठ शुरू करें।

हनुमान सहस्त्रनाम स्तोत्र का लाभ

  • हनुमान सहस्त्रनाम का नियमित पाठ करने से मानसिक शांति मिलती है, साथ ही तनाव से मुक्ति मिलती है और सफलता प्राप्त होती है।
  • हनुमान जी को आरोग्य और शक्ति का देवता माना जाता है। उनके नामों का जाप करने से शरीर सभी तरह के रोगों से मुक्त होकर स्वस्थ है।
  • जो भक्त सच्चे मन से हनुमान सहस्त्रनाम का जाप करते हैं, उनके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं और उनके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश होता है।
  • हनुमान जी की पूजा से बुरी शक्तियां दूर होती हैं। यह स्तोत्र विशेष रूप से किसी प्रकार बुरी नज़र से सुरक्षा प्रदान करने के लिए प्रभावशाली माना जाता है।
  • हनुमान सहस्त्रनाम का पाठ करके व्यक्ति अपने पूर्व जन्म के सभी पापों से भी सकता है।

हनुमान सहस्त्रनाम स्तोत्र की सूची

S.No

सहस्त्रनाम स्तोत्र

1

हनूमान् श्रीप्रदो वायुपुत्रो रुद्रो नयोऽजरः।

अमृत्युर्वीरवीरश्च ग्रामवासो जनाश्रयः॥

2

धनदो निर्गुणाकारो वीरो निधिपतिर्मुनिः।

पिङ्गाक्षो वरदो वाग्मी सीताशोकविनाशनः॥

3

शिवः शर्वः परोऽव्यक्तो व्यक्ताव्यक्तो धराधरः।

पिङ्गकेशः पिङ्गरोमा श्रुतिगम्यः सनातनः॥

4

अनादिर्भगवान् दिव्यो विश्वहेतुर्नराश्रयः।

आरोग्यकर्ता विश्वेशो विश्वनाथो हरीश्वरः॥

5

भर्गो रामो रामभक्तः कल्याणप्रकृतीश्वरः।

विश्वम्भरो विश्वमूर्तिर्विश्वाकारोऽथ विश्वपः॥

6

विश्वात्मा विश्वसेव्योऽथ विश्वो विश्वधरो रविः।

विश्वचेष्टो विश्वगम्यो विश्वध्येयःकलाधरः॥

7

प्लवङ्गमः कपिश्रेष्ठो ज्येष्ठो वेद्यो वनेचरः।

बालो वृद्धो युवा तत्त्वं तत्त्वगम्यः सखा ह्यजः॥

8

अञ्जनासूनुरव्यग्रो ग्रामस्यान्तो धराधरः।

भूर्भुवःस्वर्महर्लोको जनोलोकस्तपोऽव्ययः॥

9

सत्यमोङ्कारगम्यश्च प्रणवो व्यापकोऽमलः।

शिवधर्मप्रतिष्ठाता रामेष्टः फल्गुनप्रियः॥

10

गोष्पदीकृतवारीशः पूर्णकामो धरापतिः।

रक्षोघ्नः पुण्डरीकाक्षः शरणागतवत्सलः॥

11

जानकीप्राणदाता च रक्षःप्राणापहारकः।

पूर्णः सत्यः पीतवासा दिवाकरसमप्रभः॥

12

द्रोणहर्ता शक्तિનેता शक्तिराक्षसमारकः।

अक्षघ्नो रामदूतश्च शाकिनीजीविताहरः॥

13

बुभूकारहतारातिर्गर्वपर्वतमर्दनः।

हेतुस्त्वहेतुः प्रांशुश्च विश्वकर्ता जगद्गुरुः॥

14

जगन्नाथो जगन्नेता जगदीशो जनेश्वरः।

जगत्श्रितो हरिः श्रीशो गरुडस्मयभञ्जकः॥

15

पार्थध्वजो वायुपुत्रः सितपुच्छोऽमितप्रभः।

ब्रह्मपुच्छः परब्रह्मपुच्छो रामेष्टकारकः॥

16

सुग्रीवादियुतो ज्ञानी वानरो वानरेश्वरः।

कल्पस्थायी चिरञ्जीवी प्रसन्नश्च सदाशिवः॥

17

सन्मतिः सद्गतिर्भुक्तिमुक्तिदः कीर्तिदायकः।

कीर्तिः कीर्तिप्रदश्चैव समुद्रः श्रीप्रदः शिवः॥

18

उदधिक्रमणो देवः संसारभयनाशनः।

वालिबन्धनकृद्विश्वजेता विश्वप्रतिष्ठितः॥

19

लङ्कारिः कालपुरुषो लङ्केशगृहभञ्जनः।

भूतावासो वासुदेवो वसुस्त्रिभुवनेश्वरः ॥॥

20

श्रीरामरूपः कृष्णस्तु लङ्काप्रासादभञ्जनः।

कृष्णः कृष्णस्तुतः शान्तः शान्तिदो विश्वभावनः॥

21

विश्वभोक्ताऽथ मारघ्नो ब्रह्मचारी जितेन्द्रियः।

ऊर्ध्वगो लाङ्गुली माली लाङ्गूलाहतराक्षसः॥

22

समीरतनुजो वीरो वीरमारो जयप्रदः।

जगन्मङ्गलदः पुण्यः पुण्यश्रवणकीर्तनः॥

23

पुण्यकीर्तिः पुण्यगीतिर्जगत्पावनपावनः।

देवेशोऽमितरोमाऽथ रामभक्तविधायकः॥

24

ध्याता ध्येयो जगत्साक्षी चेता चैतन्यविग्रहः।

ज्ञानदः प्राणदः प्राणो जगत्प्राणः समीरणः॥

25

विभीषणप्रियः शूरः पिप्पलाश्रयसिद्धिदः।

सिद्धः सिद्धाश्रयः कालः कालभक्षकपूजितः॥

26

लङ्केशनिधनस्थायी लङ्कादाहक ईश्वरः।

चन्द्रसूर्याग्निनेत्रश्च कालाग्निः प्रलयान्तकः॥

27

कपिलः कपिशः पुण्यरातिर्द्वादशराशिगः।

सर्वाश्रयोऽप्रमेयात्मा रेवत्यादिनिवारकः॥

28

लक्ष्मणप्राणदाता च सीताजीवनहेतुकः।

रामध्यायी हृषीकेशो विष्णुभक्तो जटी बली॥

29

देवारिदर्पहा होता धाता कर्ता जगत्प्रभुः।

नगरग्रामपालश्च शुद्धो बुद्धो निरन्तरः॥

30

निरञ्जनो निर्विकल्पो गुणातीतो भयङ्करः।

हनुमांश्च दुराराध्यस्तपःसाध्यो महेश्वरः॥

31

जानकीघनशोकोत्थतापहर्ता पराशरः।

वाङ्मयः सदसद्रूपः कारणं प्रकृतेः परः॥

32

भाग्यदो निर्मलो नेता पुच्छलङ्काविदाहकः।

पुच्छबद्धो यातुधानो यातुधानरिपुप्रियः॥

33

छायापहारी भूतेशो लोकेशः सद्गतिप्रदः।

प्लवङ्गमेश्वरः क्रोधः क्रोधसंरक्तलोचनः॥

34

क्रोधहर्ता तापहर्ता भक्ताभयवरप्रदः।

भक्तानुकम्पी विश्वेशः पुरुहूतः पुरन्दरः॥

35

अग्निर्विभावसुर्भास्वान् यमो निरृतिरेव च।

वरुणो वायुगतिमान् वायुः कुबेर ईश्वरः॥

36

रविश्चन्द्रः कुजः सौम्यो गुरुः काव्यः शनैश्चरः।

राहुः केतुर्मरुद्दाता धाता हर्ता समीरजः॥

37

मशकीकृतदेवारिर्दैत्यारिर्मधूसूदनः।

कामः कपिः कामपालः कपिलो विश्वजीवनः॥

38

भागीरथीपदाम्भोजः सेतुबन्धविशारदः।

स्वाहा स्वधा हविः कव्यं हव्यवाहः प्रकाशकः॥

39

स्वप्रकाशो महावीरो मधुरोऽमितविक्रमः।

उड्डीनोड्डीनगतिमान् सद्गतिः पुरुषोत्तमः ॥॥

40

जगदात्मा जगद्योनिर्जगदन्तो ह्यनन्तरः।

विपाप्मा निष्कलङ्कोऽथ महान् महदहङ्कृतिः॥

41

खं वायुः पृथिवी चापो वह्निर्दिक् काल एकलः।

क्षेत्रज्ञः क्षेत्रपालश्च पल्वलीकृतसागरः॥

42

हिरण्मयः पुराणश्च खेचरो भूचरो मनुः।

हिरण्यगर्भः सूत्रात्मा राजराजो विशां पतिः॥

43

वेदान्तवेद्य उद्गीथो वेदाङ्गो वेदपारगः।

प्रतिग्रामस्थितः सद्यः स्फूर्तिदाता गुणाकरः॥

44

नक्षत्रमाली भूतात्मा सुरभिः कल्पपादपः।

चिन्तामणिर्गुणनिधिः प्रजाद्वारमनुत्तमः॥

45

पुण्यश्लोकः पुरारातिः मतिमान् शर्वरीपतिः।

किल्किलारावसन्त्रस्तभूतप्रेतपिशाचकः॥

46

ऋणत्रयहरः सूक्ष्मः स्थूलः सर्वगतिः पुमान्।

अपस्मारहरः स्मर्ता श्रुतिर्गाथा स्मृतिर्मनुः॥

47

स्वर्गद्वारं प्रजाद्वारं मोक्षद्वारं यतीश्वरः।

नादरूपं परं ब्रह्म ब्रह्म ब्रह्मपुरातनः॥

48

एकोऽनेको जनः शुक्लः स्वयञ्ज्योतिरनाकुलः।

ज्योतिर्ज्योतिरनादिश्च सात्विको राजसस्तमः॥

49

तमोहर्ता निरालम्बो निराकारो गुणाकरः।

गुणाश्रयो गुणमयो बृहत्कायो बृहद्यशाः ॥॥

50

बृहद्धनुर्बृहत्पादो बृहन्मूर्धा बृहत्स्वनः।

बृहत्कर्णो बृहन्नासो बृहद्बाहुर्बृहत्तनुः॥

51

बृहद्गलो बृहत्कायो बृहत्पुच्छो बृहत्करः।

बृहद्गतिर्बृहत्सेवो बृहल्लोकफलप्रदः॥

52

बृहद्भक्तिर्बृहद्वाञ्छाफलदो बृहदीश्वरः।

बृहल्लोकनुतो द्रष्टा विद्यादाता जगद्गुरुः॥

53

देवाचार्यः सत्यवादी ब्रह्मवादी कलाधरः।

सप्तपातालगामी च मलयाचलसंश्रयः॥

54

उत्तराशास्थितः श्रीशो दिव्यौषधिवशः खगः।

शाखामृगः कपीन्द्रोऽथ पुराणः प्राणचञ्चुरः॥

55

चतुरो ब्राह्मणो योगी योगिगम्यः परोऽवरः।

अनादिनिधनो व्यासो वैकुण्ठः पृथिवीपतिः॥

56

अपराजितो जितारातिः सदानन्दद ईशिता।

गोपालो गोपतिर्योद्धा कलिः स्फालः परात्परः॥

57

मनोवेगी सदायोगी संसारभयनाशनः।

तत्त्वदाताऽथ तत्त्वज्ञस्तत्त्वं तत्त्वप्रकाशकः॥

58

शुद्धो बुद्धो नित्ययुक्तो भक्ताकारो जगद्रथः।

प्रलयोऽमितमायश्च मायातीतो विमत्सरः॥

59

मायानिर्जितरक्षाश्च मायानिर्मितविष्टपः।

मायाश्रयश्च निलेर्पो मायानिर्वर्तकः सुखी ॥॥

60

सुखी(खं) सुखप्रदो नागो महेशकृतसंस्तवः।

महेश्वरः सत्यसन्धः शरभः कलिपावनः॥

61

रसो रसज्ञः सन्मानो रूपं चक्षुः श्रुती रवः।

घ्राणं गन्धः स्पर्शनं च स्पर्शो हिङ्कारमानगः॥

62

नेति नेतीति गम्यश्च वैकुण्ठभजनप्रियः।

गिरिशो गिरिजाकान्तो दुर्वासाः कविरङ्गिराः॥

63

भृगुर्वसिष्ठश्च्यवनो नारदस्तुम्बुरुर्हरः।

विश्वक्षेत्रं विश्वबीजं विश्वनेत्रं च विश्वपः॥

64

याजको यजमानश्च पावकः पितरस्तथा।

श्रद्धा बुद्धिः क्षमा तन्द्रा मन्त्रो मन्त्रयिता सुरः॥

65

राजेन्द्रो भूपती रूढो माली संसारसारथिः।

नित्यः सम्पूर्णकामश्च भक्तकामधुगुत्तमः॥

66

गणपः केशवो भ्राता पिता माताऽथ मारुतिः।

सहस्रमूर्धा सहस्रास्यः सहस्राक्षः सहस्रपात्॥

67

कामजित् कामदहनः कामः काम्यफलप्रदः।

मुद्रोपहारी रक्षोघ्नः क्षितिभारहरो बलः॥

68

नखदंष्ट्रायुधो विष्णुभक्तो भक्ताभयप्रदः।

दर्पहा दर्पदो दंष्ट्राशतमूर्तिरमूर्तिमान्॥

69

महानिधिर्महाभागो महाभर्गो महर्द्धिदः।

महाकारो महायोगी महातेजा महाद्युतिः ॥॥

70

महाकर्मा महानादो महामन्त्रो महामतिः।

महाशमो महोदारो महादेवात्मको विभुः॥

71

रुद्रकर्मा क्रूरकर्मा रत्ननाभः कृतागमः।

अम्भोधिलङ्घनः सिद्धः सत्यधर्मा प्रमोदनः॥

72

जितामित्रो जयः सोमो विजयो वायुवाहनः।

जीवो धाता सहस्रांशुर्मुकुन्दो भूरिदक्षिणः॥

73

सिद्धार्थः सिद्धिदः सिद्धः सङ्कल्पः सिद्धिहेतुकः।

सप्तपातालचरणः सप्तर्षिगणवन्दितः॥

74

सप्ताब्धिलङ्घनो वीरः सप्तद्वीपोरुमण्डलः।

सप्ताङ्गराज्यसुखदः सप्तमातृनिषेवितः॥

75

सप्तलोकैकमकुटः सप्तहोत्रः स्वराश्रयः।

सप्तसामोपगीतश्च सप्तपातालसंश्रयः॥

76

सप्तच्छन्दोनिधिः सप्तच्छन्दः सप्तजनाश्रयः।

मेधादः कीर्तिदः शोकहारी दौर्भाग्यनाशनः॥

77

सर्ववश्यकरो गर्भदोषहा पुत्रपौत्रदः।

प्रतिवादिमुखस्तम्भो रुष्टचित्तप्रसादनः॥

78

पराभिचारशमनो दुःखहा बन्धमोक्षदः।

नवद्वारपुराधारो नवद्वारनिकेतनः॥

79

नरनारायणस्तुत्यो नवनाथमहेश्वरः।

मेखली कवची खड्गी भ्राजिष्णुर्जिष्णुसारथिः ॥॥

80

बहुयोजनविस्तीर्णपुच्छः पुच्छहतासुरः।

दुष्टहन्ता नियमिता पिशाचग्रहशातनः॥

81

बालग्रहविनाशी च धर्मनेता कृपाकरः।

उग्रकृत्यश्चोग्रवेग उग्रनेत्रः शतक्रतुः॥

82

शतमन्युस्तुतः स्तुत्यः स्तुतिः स्तोता महाबलः।

समग्रगुणशाली च व्यग्रो रक्षोविनाशनः॥

83

रक्षोऽग्निदावो ब्रह्मेशः श्रीधरो भक्तवत्सलः।

मेघनादो मेघरूपो मेघवृष्टिनिवारणः॥

84

मेघजीवनहेतुश्च मेघश्यामः परात्मकः।

समीरतनयो धाता तत्त्वविद्याविशारदः॥

85

अमोघोऽमोघवृष्टिश्चाभीष्टदोऽनिष्टनाशनः।

अर्थोऽनर्थापहारी च समर्थो रामसेवकः॥

86

अर्थी धन्योऽसुरारातिः पुण्डरीकाक्ष आत्मभूः।

सङ्कर्षणो विशुद्धात्मा विद्याराशिः सुरेश्वरः॥

87

अचलोद्धारको नित्यः सेतुकृद्रामसारथिः।

आनन्दः परमानन्दो मत्स्यः कूर्मो निधिः शयः॥

88

वराहो नारसिंहश्च वामनो जमदग्निजः।

रामः कृष्णः शिवो बुद्धः कल्की रामाश्रयो हरिः॥

89

नन्दी भृङ्गी च चण्डी च गणेशो गणसेवितः।

कर्माध्यक्षः सुरारामो विश्रामो जगतीपतिः ॥॥

90

जगन्नाथः कपीशश्च सर्वावासः सदाश्रयः।

सुग्रीवादिस्तुतो दान्तः सर्वकर्मा प्लवङ्गमः॥

91

नखदारितरक्षश्च नखयुद्धविशारदः।

कुशलः सुधनः शेषो वासुकिस्तक्षकस्तथा॥

92

स्वर्णवर्णो बलाढ्यश्च पुरुजेताऽघनाशनः।

कैवल्यदीपः कैवल्यो गरुडः पन्नगो गुरुः॥

93

क्लीक्लीरावहतारातिगर्वः पर्वतभेदनः।

वज्राङ्गो वज्रवक्त्रश्च भक्तवज्रनिवारकः॥

94

नखायुधो मणिग्रीवो ज्वालामाली च भास्करः।

प्रौढप्रतापस्तपनो भक्ततापनिवारकः॥

95

शरणं जीवनं भोक्ता नानाचेष्टोऽथ चञ्चलः।

स्वस्थस्त्वस्वास्थ्यहा दुःखशातनः पवनात्मजः॥

96

पवनः पावनः कान्तो भक्ताङ्गः सहनो बलः।

मेघनादरिपुर्मेघनादसंहृतराक्षसः॥

97

क्षरोऽक्षरो विनीतात्मा वानरेशः सताङ्गतिः।

श्रीकण्ठः शितिकण्ठश्च सहायः सहनायकः॥

98

अस्थूलस्त्वनणुर्भर्गो देवसंसृतिनाशनः।

अध्यात्मविद्यासारश्चाप्यध्यात्मिकुशलः सुधीः॥

99

अकल्मषः सत्यहेतुः सत्यदः सत्यगोचरः।

सत्यगर्भः सत्यरूपः सत्यः सत्यपराक्रमः॥

100

अञ्जनाप्राणलिङ्गं च वायुवंशोद्भवः श्रुतिः।

भद्ररूपो रुद्ररूपः सुरूपश्चित्ररूपधृक्॥

101

मैनाकवन्दितः सूक्ष्मदर्शनो विजयो जयः।

क्रान्तदिङ्मण्डलो रुद्रः प्रकटीकृतविक्रमः॥

102

कम्बुकण्ठः प्रसन्नात्मा ह्रस्वनासो वृकोदरः।

लम्बोष्ठः कुण्डली चित्रमाली योगविदां वरः॥

103

विपश्चित् कविरानन्दविग्रहोऽनल्पनाशनः।

फाल्गुनीसूनुरव्यग्रो योगात्मा योगतत्परः॥

104

योगविद्योगकर्ता च योगयोनिर्दिगम्बरः।

अकारादिक्षकारान्तवर्णनिर्मितविग्रहः॥

105

उलूखलमुखः सिद्धसंस्तुतः परमेश्वरः।

श्लिष्टजङ्घः श्लिष्टजानुः श्लिष्टपाणिः शिखाधरः॥

106

सुशर्माऽमितधर्मा च नारायणपरायणः।

जिष्णुर्भविष्णू रोचिष्णुर्ग्रसिष्णुः स्थाणुरेव च॥

107

हरी रुद्रानुकृद्वृक्षकम्पनो भूमिकम्पनः।

गुणप्रवाहः सूत्रात्मा वीतरागः स्तुतिप्रियः॥

108

नागकन्याभयध्वंसी कृतपूर्णः कपालभृत्।

अनुकूलोऽक्षयोऽपायोऽनपायो वेदपारगः॥

109

अक्षरः पुरुषो लोकनाथस्त्र्यक्षः प्रभुर्दृढः।

अष्टाङ्गयोगफलभूः सत्यसन्धः पुरुष्टुतः॥

110

श्मशानस्थाननिलयः प्रेतविद्रावणक्षमः।

पञ्चाक्षरपरः पञ्चमातृको रञ्जनो ध्वजः॥

111

योगिनीवृन्दवन्द्यश्रीः शत्रुघ्नोऽनन्तविक्रमः।

ब्रह्मचारीन्द्रियवपुर्धृतदण्डो दशात्मकः॥

112

अप्रपञ्चः सदाचारः शूरसेनो विदारकः।

बुद्धः प्रमोद आनन्दः सप्तजिह्वपतिर्धरः॥

113

नवद्वारपुराधारः प्रत्यग्रः सामगायनः।

षट्चक्रधामा स्वर्लोकभयहृन्मानदो मदः॥

114

सर्ववश्यकरः शक्तिरनन्तोऽनन्तमङ्गलः।

अष्टमूर्तिधरो नेता विरूपः स्वरसुन्दरः॥

115

धूमकेतुर्महाकेतुः सत्यकेतुर्महारथः।

नन्दीप्रियः स्वतन्त्रश्च मेखली डमरुप्रियः॥

116

लोहिताङ्गः समिद्वह्निः षडृतुः शर्व ईश्वरः।

फलभुक् फलहस्तश्च सर्वकर्मफलप्रदः॥

117

धर्माध्यक्षो धर्मफलो धर्मो धर्मप्रदोऽर्थदः।

पञ्चविंशतितत्त्वज्ञस्तारको ब्रह्मतत्परः॥

118

त्रिमार्गवसतिर्भीमः सर्वदुष्टनिबर्हणः।

ऊर्जःस्वामी जलस्वामी शूली माली निशाकरः॥

119

रक्ताम्बरधरो रक्तो रक्तमाल्यविभूषणः।

वनमाली शुभाङ्गश्च श्वेतः श्वेताम्बरो युवा॥

120

जयोऽजेयपरीवारः सहस्रवदनः कविः।

शाकिनीडाकिनीयक्षरक्षोभूतप्रभञ्जनः॥

121

सद्योजातः कामगतिर्ज्ञानमूर्तिर्यशस्करः।

शम्भुतेजाः सार्वभौमो विष्णुभक्तः प्लवङ्गमः॥

122

चतुर्णवतिमन्त्रज्ञः पौलस्त्यबलदर्पहा।

सर्वलक्ष्मीप्रदः श्रीमानङ्गदप्रियवर्धनः॥

123

स्मृतिबीजं सुरेशानः संसारभयनाशनः।

उत्तमः श्रीपरीवारः श्रीभूरुग्रश्च कामधुक॥

124

॥ इति श्री आञ्जनेयसहस्रनामस्तोत्रं हनुमत्सहस्रनामस्तोत्रं च सम्पूर्णम् ॥

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Published by Sri Mandir·December 18, 2024

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