पंचमी श्राद्ध क्या है? (Panchami Shradh Kya Hai)
17 सितंबर से पितृ पक्ष की शुरुवात हो चुकी है। मान्यता है हर साल पितृ पक्ष की अवधि में अपने वंशजों से मिलने पृथ्वीलोक आते हैं। ऐसे में जिस तिथि पर उनका स्वर्गवास हुआ हो, उसी तिथि पर उनका श्राद्ध करने का विधान है। इसी तरह जिन पूर्वजों की मृत्यु पंचमी तिथि पर हुई है, उनका श्राद्ध पंचमी तिथि पर किया जाता है। इसके अलावा अविवाहित मृतक पूर्वजों का भी श्राद्ध पंचमी तिथि पर करने का विधान है, इसलिए इसे ‘कुंवारा पंचमी’ कहा जाता है।
पंचमी श्राद्ध कब है? | Panchami Shradh Date & Muhurt
- पंचमी श्राद्ध 22 सितंबर, रविवार को किया जाएगा।
- पंचमी तिथि 21 सितंबर को शाम 06 बजकर 13 मिनट पर प्रारंभ होगी।
- पंचमी तिथि का समापन दोपहर 03 बजकर 43 मिनट पर होगा।
- कुतुप मुहूर्त दिन में 11 बजकर 46 मिनट से दोपहर 12 बजकर 15 मिनट तक रहेगा।
- रौहिण मुहूर्त दोपहर 12 बजकर 15 मिनट से 01 बजकर 03 मिनट तक होगा।
- अपराह्न काल मुहूर्त दोपहर 01 बजकर 03 मिनट से 03 बजकर 29 मिनट पर होगा।
पंचमी श्राद्ध कैसे करें? | How to do Panchami Shradh
- पितृ पक्ष की पंचमी तिथि पर पितरों का श्राद्ध करने के लिए सबसे पहले स्नान करके शुद्ध हो जाएं।
- स्नान करने के बाद पितरों के लिए भोजन बनाएं। इस समय साफ सफाई का विशेष ध्यान रखें।
- भोजन में आप अपने पितरों के पसंद का कोई भी व्यंजन बना सकते हैं, लेकिन इसमें खीर ज़रूर शामिल करें।
- अब अपने मृतक पितरों का स्मरण कर किसी पुरोहित के मार्गदर्शन में उनके निमित्त पिंड दान व श्राद्ध करें।
- संभव हो तो पंचमी श्राद्ध के दिन अविवाहित ब्राह्मण को आमंत्रित करें, और उनसे ही श्राद्ध कर्म करवायें, क्योंकि इस दिन अविवाहित पितरों का श्राद्ध करने का विधान है
- पितरों का पिंड दान करने के बाद गाय, कौवा व चींटी के लिए भी भोजन का एक अंश निकालें, क्योंकि मान्यता है कि पितृ इन जीवों के रूप ही आते हैं।
- इसके बाद ब्राह्मणों को आदर पूर्वक भोजन कराएं, और उन्हें यथासंभव दान दक्षिणा देकर विदा करें।
- पंचमी श्राद्ध के दिन भोजन में तामसिक चीजों का प्रयोग ना करें।
- श्राद्ध के दिन काला नमक, बासी खाना, लौकी, मसूर की दाल, सफेद तिल, सरसों का साग आदि का प्रयोग भी वर्जित माना गया है।
पंचमी श्राद्ध का महत्व | Important of Panchami Shradh
ब्रह्म पुराण में वर्णन मिलता है कि किसी भी व्यक्ति को सर्वप्रथम अपने पितरों को प्रसन्न करने का प्रयास करना चाहिए, और उनकी पूजा करनी चाहिए। माना जाता है कि यदि पितृ प्रसन्न होते हैं, तो भगवान स्वयं भी अपनी कृपा आप पर बनाए रखते हैं। यही कारण है कि पितृपक्ष के दौरान पितरों की आत्मा की शांति और उनका आशीर्वाद पाने के लिए श्राद्ध कर्म किए जाते हैं।
पितृ पक्ष का ‘पंचमी श्राद्ध’ उन पूर्वजों के लिए विशेष महत्वपूर्ण है जिनकी मृत्यु अविवाहित रहते हुई थी या फिर वे जातक जिनकी मृत्यु पंचमी तिथि पर हुई थी। मान्यता है कि पंचमी श्राद्ध से इन पितरों की आत्मा संतुष्ट होती है, और अपने वंशजों को सुखी संपन्न जीवन जीने का आशीर्वाद देती है।