राहु केतु (Rahu Ketu)
राहु और केतु को ज्योतिष शास्त्र में क्रूर ग्रह बताया गया है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार राहु केतु के कारण ही ग्रहण लगता है। इतना ही नहीं, राहु केतु के दुष्प्रभाव से मनुष्य के जीवन में कई तरह की चुनौतियां भी आती हैं। राहु, केतु को पौराणिक दृष्टि से दो अलग-अलग छाया ग्रह माना गया है। आइए जानते हैं राहु-केतु के प्रभाव, पौराणिक कथा, दोष निवारण के उपाय, मंत्र व बहुत कुछ।
राहु केतु क्या हैं? (Rahu Ketu Kya Hai)
पौराणिक मान्यता के अनुसार राहु ‘मुख’ और केतु ‘धड़’ के रूप में अलग-अलग हो गए थे, जिसके बाद इनका अस्तित्व दो अलग-अलग छाया ग्रह के रूप में माना गया है। राहु का शरीर मलिन, दारूण और कठोर स्वभाव वाला, विनाशवृत्ति की ओर ले जाने वाला और विद्रोही बताया जाता है।
शास्त्रों में ग्रहण लगने का कारण राहु, केतु को ही बताया गया है। धर्मशास्त्रों की मानें तो राहु, केतु सूर्य व चन्द्रमा के अधिक नज़दीक होते हैं, तो ग्रहण की स्थिति बनती है। यही नहीं, सूर्य व चन्द्रमा को छोड़कर जन्मकुण्डली में अन्य ग्रह भी राहु के साथ बैठे हों, तो वे भी राहु से पीड़ित हो जाते हैं।
राहु-केतु का अक्ष जन्मपत्रिका में विशेष महत्वपूर्ण है। कुछ विद्वानों ने इस अक्ष के एक ओर सभी ग्रहों के होने पर व इसी अक्ष के दूसरे भाग में कोई भी ग्रह न होने पर कालसर्प योग बताया है, जोकि व्यक्ति की कुंडली में एक दोष माना जाता है।
राहु केतु की कहानी (Rahu Ketu Story)
पुराणों में राहु की उत्पत्ति की कहानी बहुत ही रोचक है। यह कथा कश्यप ऋषि के वंश से जुड़ी है। कश्यप ऋषि की दो पत्नियाँ थीं - अदिति और दिति। अदिति से देवताओं का जन्म हुआ और दिति से दानवों की उत्पत्ति हुई। हिरण्यकश्यपु, जो दिति के पुत्र थे, उनके पुत्र प्रह्लाद ने भगवान विष्णु का परम भक्त बनकर असुर वंश का कल्याण किया।
वहीं हिरण्यकश्यपु की पुत्री सिंहिका का विवाह विप्रचित्ति नामक दानव से हुआ। उनके पुत्र का नाम स्वर्भानु था। स्वर्भानु एक शक्तिशाली असुर था, लेकिन उसने अमरत्व और देवत्व की लालसा से भगवान शंकर की घोर तपस्या की। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने कहा, "तुम्हें देवत्व तो नहीं मिल सकता क्योंकि तुम असुर वंश में जन्मे हो, लेकिन तुम्हें अमरत्व का वरदान अवश्य मिलेगा। इसके साथ ही तुम्हें देवताओं के साथ पूजे जाने का भी सौभाग्य मिलेगा"
इसी बीच, समुद्र मंथन हुआ, जिसमें चौदह रत्नों के साथ अमृत कलश भी निकला। देवता और दानव दोनों ही अमृत पाने के लिए लालायित थे। लेकिन जब स्वर्भानु ने देखा कि अमृत केवल देवताओं को पिलाया जा रहा है, तो उसने एक चाल चली। वह देवताओं का रूप धारण कर उनकी पंक्ति में बैठ गया और अमृतपान करने लगा।
जैसे ही स्वर्भानु ने अमृत की कुछ बूंदें ग्रहण कीं, सूर्य और चंद्रमा ने उसे पहचान लिया। उन्होंने तुरंत भगवान विष्णु को इसके बारे में अवगत कराया। भगवान विष्णु, जो मोहिनी रूप में अमृत पिला रहे थे, उन्होंने सुदर्शन चक्र से स्वर्भानु का सिर धड़ से अलग कर दिया। परंतु अमृत की बूंदें ग्रहण करने के कारण उसकी मृत्यु नहीं हो सकी। इस प्रकार स्वर्भानु का सिर राहु और धड़ केतु बन गया।
कहते हैं कि भगवान विष्णु ने बाद में उसका धड़ सर्प से जोड़ दिया, इसलिए राहु और केतु सर्पाकार हो गए। ब्रह्माजी ने उन्हें छाया ग्रह का दर्जा दिया और उन्हें नवग्रहों में स्थान प्राप्त हुआ। तब से राहु और केतु, दोनों ग्रहों के रूप में पूजे जाने लगे। इस प्रकार राहु और केतु का जन्म असुर कुल में हुआ, लेकिन भगवान के आशीर्वाद से वे अमर और पूजनीय हो गए।
राहु केतु के दोष (Rahu Ketu Dosham)
राहु केतु दोष के लक्षण
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यदि घर का काला कुत्ता, या घर का अन्य पालतू जानवर मर जायेमर जाये और घर में से बिल्ली की रोने की आवाज आए तो ये राहु-केतु के प्रकोप का संकेत है।
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किसी रिश्तेदार द्वारा अचानक धोखा मिले या कोई घनिष्ठ मित्र आपको अपनी कुटिल चाल से नीचा दिखाने का प्रयास करे तो समझना चाहिए कि राहु का अनिष्ट प्रभाव शुरू हो गया है।
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इसी प्रकार अचानक कंधे या सिर पर छिपकली गिरे, कम सुनाई पड़ने लगे या शरीर के जोड़ों में एकाएक पीड़ा होने लगे तो भी राहु केतु दोष का संकेत माना जाता है।
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अपने पुत्र विरोधी हो जायें या पड़ोसी बिना कारण लड़ाई करने लगे तो ये केतु का कुप्रभाव माना जाता है।
राहु केतु दोष के प्रभाव
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राहु का प्रभाव शनि के समान और केतु का प्रभाव मंगल के समान माना गया है। इन दोनों का प्रभाव व्यक्ति की उन्नति में बाधक माना गया है।
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भाग्य स्थान पर बैठा राहु अक्सर भाग्योदय नहीं होने देता है और व्यक्ति को जुआ, शराब, कूटनीतिज्ञ चालों की प्रवत्ति देने वाला होता है।
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राहु दोष से व्यक्ति को मानसिक तनाव रहता है, जिससे छोटी-छोटी बातों पर क्रोध व चिड़चिड़ाहट होती है।
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राहु दोष से व्यक्ति को आर्थिक नुकसान हो सकता है और उसकी मूल्यवान चीज़ें गायब हो सकती हैं।
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राहु दोष होने पर व्यक्ति को कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगाने पड़ सकते हैं, और पराजय हो सकती है।
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राहु दोष से व्यक्ति को बाल झड़ने, जोड़ों में दर्द, चर्म रोग, रीढ़ की हड्डी की समस्या, नसों में कमज़ोरी जैसी कई रोग होने की आशंका रहती है।
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केतु दोष से व्यक्ति को अनिद्रा, आर्थिक तंगी, और वाद-विवाद की समस्या का सामना करना पड़ सकता है।
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राहु सिर और जबड़े को प्रभावित करता है, जबकि केतु रीढ़, गुर्दे, घुटनों, लिंग, और जोड़ों को प्रभावित करता है।
राहु केतु मंत्र (Rahu Ketu Mantra)
राहु मंत्र: अर्धकायं महावीर्यं चन्द्रादित्यविमर्दनम् । सिंहिकागर्भसंभूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम् ।।
केतु मंत्र: पलाशपुष्पसंकाशं तारकाग्रहमस्तकम् । रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम् ।।
राहु केतु के उपाय (Rahu Ketu Ke Upay)
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राहु व केतु के यंत्र को ताम्रपत्र पर उत्कीर्ण कराकर प्राण प्रतिष्ठा कराने व नित्य पूजन करने से भी राहु केतु के प्रभाव में लाभ मिलता है।
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शनिवार के दिन लाजवंती की जड़ लाकर उसे छल्ले जैसा घुमाव देकर सूती रंगहीन धागे के द्वारा रोगी के कटि प्रदेश में बांधने से स्वास्थ्य लाभ होता है।
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राहु केतु के मंत्र का प्रतिदिन 11 माला का जाप करने व राहु केतु यंत्र के पूजन दर्शन से भी लाभ मिलता है।
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गोमेद व लहसुनिया जैसे रत्न की अंगूठी भी प्राण प्रतिष्ठा कर धारण करने से राहु केतु के प्रभाव में कमी आती है।
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राहु कुंडली में अनिष्ट स्थिति में हो तो नारियल को नदी में प्रवाहित करना चाहिए।
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इसी प्रकार केतु की अनिष्टकारी स्थिति में कुत्तों को खाना खिलाने से भी लाभ होता है।
राहु केतु पूजा लाभ (Rahu Ketu Pooja Benefits)
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राहु और केतु को जीवन में चुनौतियों और बाधाओं का कारण माना जाता है। राहु केतु पूजा के माध्यम से इन ग्रहों के नकारात्मक प्रभावों को कम किया जा सकता है, जिससे व्यक्ति के जीवन में सुख, शांति और उन्नति का मार्ग प्रशस्त होता है।
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राहु और केतु के प्रभाव से नौकरी व्यापार में समस्या हो सकती हैं। इस पूजा के प्रभाव से कार्यक्षेत्र में आने वाली बेरोजगारी, तरक्की न मिलने, वेतन वृद्धि न होने जैसी बाधाओं को दूर किया जा सकता है।
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स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के निवारण के लिए भी राहु केतु पूजा अत्यंत प्रभावी मानी जाती है। यह पूजा शारीरिक और मानसिक रूप से जातक को स्वास्थ्यलाभ प्रदान करती है।
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व्यक्तिगत और वैवाहिक जीवन में आने वाली समस्याओं को सुलझाने में भी राहु केतु पूजा सहायक होती है। यह पूजा दांपत्य जीवन में सामंजस्य और प्रेम बढ़ाने के साथ-साथ पारिवारिक संबंधों को भी प्रगाढ़ करती है।
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जीवन में शांति की प्राप्ति के लिए भी राहु केतु पूजा विशेष रूप से लाभकारी मानी जाती है। यह पूजा मानसिक तनाव और चिंता को कम करती है, जिससे व्यक्ति को मानसिक स्थिरता और आंतरिक शांति प्राप्त होती है।