त्रयोदशी श्राद्ध (Trayodashi Shradh)
त्रयोदशी श्राद्ध पितृ पक्ष के दौरान आने वाली एक महत्वपूर्ण तिथि है। पितृ पक्ष हिंदू धर्म में अपने पूर्वजों का श्राद्ध करने का एक विशेष समय होता है। इस दौरान, लोग अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए विभिन्न प्रकार के श्राद्ध कर्म करते हैं। त्रयोदशी तिथि पर भी श्राद्ध किया जाता है।
त्रयोदशी श्राद्ध क्या होता है? (Trayodashi Shradh Kya Hai)
त्रयोदशी श्राद्ध, दिवंगत पूर्वजों को याद करने और उन्हें श्रद्धांजलि देने का एक पवित्र अवसर है। यह श्राद्ध, पितृ पक्ष में आश्विन कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को किया जाता है। त्रयोदशी श्राद्ध, मृत बच्चों के लिए भी शुभ माना जाता है। अगर बच्चे की मृत्यु तिथि का पता न हो, तो त्रयोदशी को ही श्राद्ध किया जा सकता है। त्रयोदशी श्राद्ध, शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को किया जा सकता है। त्रयोदशी श्राद्ध के लिए, पंचांग में अभिजीत मुहूर्त देखकर श्राद्ध करना चाहिए।
त्रयोदशी श्राद्ध कब है? (Trayodashi Shradh Date)
पितृ पक्ष की तिथियां हर साल बदलती रहती हैं। इस साल पितृ पक्ष में त्रयोदशी तिथि का श्राद्ध 30 सितंबर, 2024 दिन सोमवार को रखा जाएगा। इस दिन पितरों का तर्पण किया जाता है। ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है और उन्हें दान दिया जाता है।
त्रयोदशी श्राद्ध मुहूर्त (Trayodashi Shradh Muhurat)
- कुतुप मूहूर्त - 11:24 AM से 12:11 PM, अवधि - 48 मिनट्स
- रौहिण मूहूर्त - 12:11 PM से 12:59 PM, अवधि - 48 मिनट्स
- अपराह्न काल - 12:59 PM से 03:22 PM, अवधि - 02 घण्टे 23 मिनट्स
- त्रयोदशी तिथि प्रारम्भ - सितंबर 29, 2024 को 04:47 PM बजे
- त्रयोदशी तिथि समाप्त - सितंबर 30, 2024 को 07:06 PM बजे
त्रयोदशी श्राद्ध कैसे करें? (Trayodashi Shradh Kaise Kare)
- त्रयोदशी श्राद्ध के लिए, पितृ पक्ष में आने वाली त्रयोदशी को चुना जाता है।
- अगर किसी बच्चे की मृत्यु त्रयोदशी को हुई थी, तो उसका श्राद्ध भी इसी दिन किया जाता है।
- अगर बच्चे की मृत्यु की तारीख पता न हो, तो त्रयोदशी को ही पूर्ण विधि-विधान से श्राद्ध किया जा सकता है।
- त्रयोदशी श्राद्ध के दिन, पितरों को अन्न-जल का भोग लगाया जाता है।
- त्रयोदशी श्राद्ध के दिन, पूर्वजों के लिए मोक्ष की कामना की जाती है और मंत्रों का जाप किया जाता है।
- श्राद्ध करने वाले जातक पहले स्वयं स्नान करके शुद्ध हो जाएं, उसके बाद श्राद्ध कर्म करने वाले स्थान को भी शुद्ध कर लें।
- कुश, जल, तिल, गंगाजल, दूध, घी, शहद की जलांजलि देने के बाद दीपक, अगरबत्ती, धूप जलाएं।
- श्राद्ध से पहले पितरों का स्मरण करें और उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करें।
- तिल के पिंड बनाकर पितरों को अर्पित किए जाते हैं।
- अब पितरों की पसंद का भोजन बनाकर उसमें से गाय, कौवा, चींटी, कुत्ते जैसे जीवों के लिए एक-एक अंश निकालें।
- इस दौरान पितरों का आह्वान कर उनसे भोजन ग्रहण करने की प्रार्थना करें।
- इसके बाद ब्राह्मण को भी भोजन कराएं। श्राद्ध के अवसर पर यदि दामाद, भतीजा या भांजा भी भोजन करें, तो इससे पितृ विशेष प्रसन्न होते हैं।
त्रयोदशी श्राद्ध का महत्व (Trayodashi Shradh Ka Mahatav)
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, त्रयोदशी तिथि का विशेष महत्व होता है। यह तिथि चंद्रमा की स्थिति से जुड़ी होती है और माना जाता है कि चंद्रमा का प्रभाव पितृ लोक पर होता है। इसलिए, इस दिन पितृ देवों को समर्पित करके उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है। अलग-अलग स्थानों पर त्रयोदशी श्राद्ध तिथि को अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है। गुजरात की तरह इसे काकबली और बलभोलनी तेरस के नाम से भी जाना जाता है। कई स्थानों पर इसे तेरस श्राद्ध भी कहा जाता है।
मृत बच्चों का श्राद्ध करने के लिए त्रयोदशी तिथि शुभ मानी जाती है। हालांकि, पितृ पक्ष में केवल शिशु की मृत्यु तिथि पर ही श्राद्ध किया जाता है, लेकिन यदि तिथि ज्ञात न हो तो त्रयोदशी के दिन पूरे विधि-विधान से श्राद्ध किया जा सकता है। इस तिथि पर किए गए श्राद्ध से बच्चों की मृत आत्माओं को शांति मिलती है।