गया पिंडदान के लिए क्यों प्रसिद्ध है | Why is Gaya Famous for Pind Daan
पितृ पक्ष के दौरान गया में पिंडदान का विशेष महत्व है। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, गया में पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष मिलता है। यह माना जाता है कि गया में किए गए पिंडदान का फल अन्य स्थानों की तुलना में अधिक प्रभावी होता है। विभिन्न पुराणों में गया का वर्णन पितरों के तर्पण और पिंडदान के लिए एक पवित्र स्थल के रूप में किया गया है।
मान्यता है कि भगवान राम और सीता ने भी अपने पिता राजा दशरथ की आत्मा की शांति के लिए गया में पिंडदान किया था। गया में कई पवित्र नदियां और तालाब हैं, जिनका धार्मिक महत्व है। इनमें से कुछ प्रमुख हैं: फल्गु नदी, रामशिला, और विष्णुपाद। गया में पिंडदान के लिए कई धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं, जिनमें पितरों का स्मरण, तर्पण और पिंडदान शामिल हैं।
गयाजी में पिंडदान से 108 कुल का होता है उद्धार
पितृ पक्ष में देश-विदेश से तीर्थयात्री पिंडदान और तर्पण करने के लिए गयाजी आते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सर्वपितृ अमावस्या के दिन गया में पिंडदान करने से 108 कुलों और 7 पीढ़ियों को मोक्ष मिलता है। इसके साथ ही पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है। ऐसा करने से उन्हें स्वर्ग में स्थान मिलता है।
गया श्राद्ध कब करना चाहिए इसके पीछे की कहानी क्या है?
जब राजा दशरथ के लिए श्राद्ध करने के दौरान राम और लक्ष्मण को देरी हो गई, तब माता सीता ने फल्गु नदी के किनारे मौजूद बालू से पिंड बनाए और पिंडदान किया। सीता जी ने वटवृक्ष, केतकी के फूल, और गाय को साक्षी मानकर पिंडदान किया। सीता जी की प्रार्थना सुनकर राजा दशरथ की आत्मा ने घोषणा की कि सीता ने ही उन्हें पिंडदान दिया है। इस घटना के बाद से ही गया में पिंडदान करने की परंपरा शुरू हो गई।
मान्यता है कि गया में पिंडदान करने से मृतक की आत्मा को स्वर्ग की प्राप्ति होती है। गया में पिंडदान करने से पितृ प्रसन्न होते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। शास्त्रों के मुताबिक, गया में हमेशा भगवान विष्णु निवास करते हैं। फल्गु नदी के जल में भगवान विष्णु का वास होता है।
गया में पिंडदान के लिए विशेष स्थान
फल्गु नदी : यह नदी गया में सबसे पवित्र मानी जाती है।
विष्णुपाद : यह वह स्थान है जहां भगवान विष्णु के पदचिन्ह हैं।
रामशिला : इस शिला पर भगवान राम ने अपने पिता का पिंडदान किया था।