नासिक में घूमने की जगह तलाश रहे हैं? जानिए इस पवित्र नगरी के उन खास स्थलों के बारे में, जहां हर श्रद्धालु और पर्यटक को एक बार ज़रूर जाना चाहिए।
गोदावरी नदी के तट पर बसे इस पुण्य नगरी में स्थित मंदिर न केवल आध्यात्मिक ऊर्जा से भरपूर हैं, बल्कि इनकी वास्तुकला, लोककथाएं और धार्मिक महत्व भी अद्वितीय हैं। आइए इस लेख में हम नासिक के प्रसिद्ध मंदिरों के बारे में जानते हैं।
भारत के पवित्रतम तीर्थों में शामिल नासिक केवल एक नगर नहीं, बल्कि सनातन संस्कृति का जीवंत प्रतीक है। यहाँ की हवाओं में गूंजते हैं रामायण काल के पदचिन्ह, और शिव के ध्यान में रमे धूप-दीप। यह वह भूमि है, जहाँ गोदावरी का पावन स्पर्श आत्मा को निर्मल कर देता है, और जहां त्र्यंबकेश्वर के ज्योतिर्लिंग से लेकर कालाराम के मंदिर तक हर स्थल दिव्यता से सराबोर है। नासिक न केवल आध्यात्मिक खोज का मार्ग है, बल्कि वह द्वार है जहाँ मोक्ष, भक्ति, और संस्कृति एक साथ यात्रा करती हैं।
यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। जहाँ भगवान शिव ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीन स्वरूपों में पूजे जाते हैं।
यह मंदिर त्र्यंबक नामक पर्वतीय क्षेत्र में गोदावरी नदी के उद्गम स्थल के पास स्थित है और इसे मोक्ष प्राप्ति का द्वार माना जाता है। यहाँ स्थित ज्योतिर्लिंग की विशेषता यह है कि यह एक पिंड के रूप में नहीं, बल्कि तीन प्राकृतिक लिंगों के रूप में विद्यमान है। इसके कारण इसे त्र्यंबकेश्वर कहा जाता है। इस मंदिर में हर 12 वर्षों में कुंभ मेला का आयोजन भी होता है। तांत्रिक साधना, रुद्राभिषेक, कालसर्प दोष निवारण आदि के लिए यह स्थान अत्यंत प्रसिद्ध है। महाशिवरात्रि के समय लाखों की संख्या में भक्त यहाँ भगवान शिव के दर्शन करने के लिए आते हैं।
नासिक के पंचवटी क्षेत्र में स्थित कालाराम मंदिर भगवान राम को समर्पित एक प्रमुख हिन्दू मंदिर है। इस मंदिर का नाम 'कालाराम' भगवान राम की काले रंग की प्रतिमा के कारण पड़ा है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान राम के साथ माता सीता और लक्ष्मण की भी काले पत्थर से निर्मित मूर्तियाँ स्थापित हैं।
माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 1792 में सरदार रंगराव ओढेकर द्वारा किया गया था। उन्होंने अपने स्वप्न में भगवान राम की काले रंग की प्रतिमा को गोदावरी नदी में देखा, जिसके बाद उन्होंने इस मंदिर का निर्माण करवाया। मंदिर का निर्माण काले पत्थर से किया गया है और इसकी ऊँचाई लगभग 70 फीट है। मंदिर तक पहुँचने के लिए 14 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं, जो भगवान राम के 14 वर्षों के वनवास का प्रतीक हैं। इसके अलावा, मंदिर में 84 स्तंभ हैं, जो 84 लाख योनियों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
नासिक रोड के उपनगर में स्थित मुक्तिधाम मंदिर एक प्रमुख हिंदू मंदिर परिसर है, जो अपनी उत्कृष्ट संगमरमर की वास्तुकला और धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर परिसर में बारह ज्योतिर्लिंगों की सटीक प्रतिकृतियां स्थापित हैं, जिन्हें उनके मूल तीर्थ स्थलों से पवित्र करके लाया गया है। यहाँ भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित एक मंदिर है, जिसकी दीवारों पर महाभारत और श्रीकृष्ण के जीवन से संबंधित दृश्य चित्रित हैं। इन चित्रों को प्रसिद्ध चित्रकार रघुबीर मुलगांवकर ने बनाया है।
मंदिर की दीवारों पर भगवद गीता के अठारह अध्याय अंकित हैं, जो भक्तों को आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करते हैं। मंदिर परिसर में विष्णु, लक्ष्मी, राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, दुर्गा और गणेश सहित अन्य प्रमुख हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां भी स्थापित हैं।
नासिक के पंचवटी क्षेत्र में गोदावरी नदी के तट पर स्थित नारोशंकर मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। इसका निर्माण 1747 ईस्वी में पेशवा शासनकाल के दौरान सरदार नारोशंकर राजेबहादुर द्वारा किया गया था। मंदिर की वास्तुकला 'माया' शैली में निर्मित है, जो अपनी जटिल नक्काशी और अद्वितीय शिल्पकला के लिए प्रसिद्ध है।
मंदिर की बाहरी दीवारों पर सुंदर नक्काशी की गई है, जिसमें मोर, हाथी, और विभिन्न संतों की मूर्तियाँ शामिल हैं। मंदिर के प्रवेश द्वार पर स्थित यह विशाल कांस्य घंटा वसई किले से लाया गया था, जिसे मराठा सेना ने पुर्तगालियों पर विजय प्राप्त करने के बाद यहाँ स्थापित किया।
नासिक के पंचवटी क्षेत्र में गोदावरी नदी के तट पर स्थित कपालेश्वर महादेव मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक प्राचीन और विशिष्ट मंदिर है। इस मंदिर की सबसे अनोखी विशेषता यह है कि यहाँ शिवलिंग के सामने नंदी की प्रतिमा स्थापित नहीं है।
मान्यताओं के अनुसार जब भगवान शिव ने ब्रह्मा के पांचवें मुख का संहार किया था, जिससे उन्हें ब्रह्महत्या का पाप लगा। इस पाप से मुक्ति पाने के लिए वे गोदावरी नदी के रामकुंड में स्नान करने गए, जहाँ नंदी ने उन्हें इस उपाय का सुझाव दिया। इससे प्रभावित होकर, शिव ने नंदी को अपना गुरु माना और उनके सम्मान में इस मंदिर में नंदी की प्रतिमा स्थापित नहीं की गई। बता दें कि कपालेश्वर मंदिर को बारह ज्योतिर्लिंगों के बाद सबसे श्रेष्ठ मंदिरों में से एक माना जाता है।
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