क्या आप तंत्र, साधना और आध्यात्मिक उन्नति की राह पर हैं? महाविद्या कवच आपको दसों महाविद्याओं की शक्ति से संरक्षण और सिद्धि प्रदान करता है। जानें इसकी पाठ विधि और गहरे रहस्य।
महाविद्या कवच दस महाविद्याओं की शक्ति और सुरक्षा प्रदान करने वाला दिव्य स्तोत्र है। इसका पाठ साधक को तांत्रिक बाधाओं, भय, रोग और शत्रुओं से रक्षा देता है। यह आत्मबल, साधना-सिद्धि और मानसिक शांति को बढ़ाता है। श्रद्धा से पाठ करने पर देवी महाविद्याओं की कृपा प्राप्त होती है
महाविद्या कवच एक अत्यंत शक्तिशाली और प्रभावी कवच है, जो साधक को माता सती के दस विभिन्न रूपों का आशीर्वाद प्रदान करता है। इस कवच में महाविद्या के दस प्रमुख रूपों – काली, तारा, छिन्नमस्ता, षोडशी, भुवनेश्वरी, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला – की सारी शक्तियाँ समाहित होती हैं।
महाविद्या कवच का पाठ करने से यह दस महाविद्याएँ मिलकर साधक की रक्षा करती हैं। उदाहरण के लिए, महाविद्या धूमावती शत्रुओं का नाश करती हैं, महाविद्या बगलामुखी बड़े कोर्ट केसों में विजय दिलाने में सहायक हैं, और महाविद्या भुवनेश्वरी शारीरिक एवं आर्थिक लाभ प्रदान करती हैं।
यदि कोई साधक महाविद्या कवच का पाठ करता है, तो उसे केवल एक नहीं, बल्कि दस महाविद्याओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसके परिणामस्वरूप साधक को धन, प्रसिद्धि, विजय, समृद्धि और बल प्राप्त होते हैं। साथ ही, यह ब्रह्मज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग भी प्रशस्त करता है।
ॐ अस्य श्रीमहा-विद्या-कवचस्य श्रीसदा-शिव ॠषि:,
उष्णिक छन्द:
श्रीमहा-विद्या-देवता, सर्व-सिद्धी-प्राप्त्यर्थे पाठे विनियोग: ।
श्रीसदा-शिव-ॠषये नम: शिरसी, उष्णिक-छन्दसे नम: मुखे, श्रीमहा-विद्या-देवतायै नम: ह्रीदी, सर्व-सिद्धी-प्राप्त्यार्थे पाठे विनियोगाय नम: सर्वाङ्गे।
ॐ पृथ्वी-तत्त्वात्मकं गन्धं श्रीमहा-विद्या-प्रीत्यर्थे समर्पयामी नम: ।
ॐ हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं श्रीमहा-विद्या-प्रीत्यर्थे समर्पयामी नम:।
ॐ यं वायु-तत्त्वात्मकं धुपं श्रीमहा-विद्या-प्रीत्यर्थे घ्रापयामी नम: ।
ॐ रं अग्नी-तत्त्वात्मकं दीपं श्रीमहा-विद्या-प्रित्यर्थे दर्शयामी नम: ।
ॐ वं जल-तत्त्वात्मकं नैवेधं श्रीमहा-विद्या-प्रीत्यर्थे निवेदयामी नम: ।
ॐ सं सर्व-तत्त्वात्मकं ताम्बुलं श्रीमहा-विद्या-प्रित्यर्थे निवेदयामी नम:।
ॐ प्राच्यां रक्षतु मे तारा कामरूपनिवासिनी ।
आग्नेय्यां षोडशी पातु याम्यां धूमावती स्वयम् ॥ १॥
कामरूप में निवास करने वाली भगवती तारा पूर्व दिशा में, पोडशी देवी अग्निकोण में तथा स्वयं धूमावती दक्षिण दिशा में रक्षा करें।।
नैरृत्यां भैरवी पातु वारुण्यां भुवनेश्वरी ।
वायव्यां सततं पातु छिन्नमस्ता महेश्वरी ॥ २॥
नैऋत्यकोण में भैरवी, पश्चिम दिशा में भुवनेश्वरी और वायव्यकोण में भगवती महेश्वरी छिन्नमस्ता निरंतर मेरी रक्षा करें।।
कौबेर्यां पातु मे देवी श्रीविद्या बगलामुखी ।
ऐशान्यां पातु मे नित्यं महात्रिपुरसुन्दरी ॥ ३॥
उत्तरदिशा में श्रीविद्यादेवी बगलामुखी तथा ईशानकोण में महात्रिपुर सुंदरी सदा मेरी रक्षा करें।।
ऊर्ध्वं रक्षतु मे विद्या मातङ्गीपीठवासिनी ।
सर्वतः पातु मे नित्यं कामाख्या कालिका स्वयम् ॥ ४॥
भगवती कामाख्या के शक्तिपीठ में निवास करने वाली मातंगी विद्या ऊध्र्वभाग में और भगवती कालिका कामाख्या स्वयं सर्वत्र मेरी नित्य रक्षा करें।।
ब्रह्मरूपा महाविद्या सर्वविद्यामयी स्वयम् ।
शीर्षे रक्षतु मे दुर्गा भालं श्रीभवगेहिनी ॥ ५॥
ब्रह्मरूपा महाविद्या सर्व विद्यामयी स्वयं दुर्गा सिर की रक्षा करें और भगवती श्री भवगेहिनी मेरे ललाट की रक्षा करें।।
त्रिपुरा भ्रुयुगे पातु शर्वाणी पातु नासिकाम् ।
चक्षुषी चण्डिका पातु श्रोत्रे निलसरस्वती ॥ ६॥
त्रिपुरा दोनों भौंहों की, शर्वाणी नासिका की, देवी चंडिका आँखों की तथा नीलसरस्वती दोनों कानों की रक्षा करें।।
मुखं सौम्यमुखी पातु ग्रीवां रक्षतु पार्वती ।
जिह्वां रक्षतु मे देवी जिह्वाललनभीषणा ॥ ७॥
भगवती सौम्यमुखी मुख की, देवी पार्वती ग्रीवा की और जिव्हाललन भीषणा देवी मेरी जिव्हा की रक्षा करें।।
वाग्देवी वदनं पातु वक्षः पातु महेश्वरी ।
बाहू महाभुजा पातु कराङ्गुलीः सुरेश्वरी ॥ ८॥
वाग्देवी वदन की, भगवती महेश्वरी वक्ष: स्थल की, महाभुजा दोनों बाहु की तथा सुरेश्वरी हाथ की, अंगुलियों की रक्षा करें।।
पृष्ठतः पातु भीमास्या कट्यां देवी दिगम्बरी ।
उदरं पातु मे नित्यं महाविद्या महोदरी ॥ ९॥
भीमास्या पृष्ठ भाग की, भगवती दिगम्बरी कटि प्रदेश की और महाविद्या महोदरी सर्वदा मेरे उदर की रक्षा करें।।
उग्रतारा महादेवी जङ्घोरू परिरक्षतु ।
गुदं मुष्कं च मेढ्रं च नाभिं च सुरसुन्दरी ॥ १०॥
महादेवी उग्रतारा जंघा और ऊरुओं की एवं सुरसुन्दरी गुदा, अण्डकोश, लिंग तथा नाभि की रक्षा करें।।
पादाङ्गुलीः सदा पातु भवानी त्रिदशेश्वरी ।
रक्तमांसास्थिमज्जादीन् पातु देवी शवासना ॥ ११॥
भवानी त्रिदशेश्वरी सदा पैर की, अंगुलियों की रक्षा करें और देवी शवासना रक्त, मांस, अस्थि, मज्जा आदि की रक्षा करें।।
महाभयेषु घोरेषु महाभयनिवारिणी ।
पातु देवी महामाया कामाख्यापीठवासिनी ॥ १२॥
भगवती कामाख्या शक्तिपीठ में निवास करने वाली, महाभय का निवारण करने वाली देवी महामाया भयंकर महाभय से रक्षा करें।।
भस्माचलगता दिव्यसिंहासनकृताश्रया ।
पातु श्रीकालिकादेवी सर्वोत्पातेषु सर्वदा ॥ १३॥
भस्माचल पर स्थित दिव्य सिंहासन विराजमान रहने वाली श्री कालिका देवी सदा सभी प्रकार के विघ्नों से रक्षा करें।।
रक्षाहीनं तु यत्स्थानं कवचेनापि वर्जितम् ।
तत्सर्वं सर्वदा पातु सर्वरक्षणकारिणी ॥ १४॥
जो स्थान कवच में नहीं कहा गया है, अतएव रक्षा से रहित है उन सबकी रक्षा सर्वदा भगवती सर्वरक्षकारिणी करे।।
इदं तु परमं गुह्यं कवचं मुनिसत्तम।कामाख्या भयोक्तम् ते सर्वरक्षाकरं परम्।।
अनेन कृत्वा रक्षां तु निर्भय: साधको भवेत।न तं स्पृशेदभयं घोरं मन्त्रसिद्धि विरोधकम्।।
जायते च मन: सिद्घिर्निर्विघ्नेन महामते।इदं यो धारयेत्कण्ठे बाहौ वा कवचं महत्।
महामते! जो व्यक्ति इस महान कवच को कंठ में अथवा बाहु में धारण करता है उसे निर्विघ्न मनोवांछित फल मिलता है।
अव्याहताज्ञ: स भवेत्सर्वविद्याविशारद:।सर्वत्र लभते सौख्यं मंगलं तु दिनेदिने।
य: पठेत्प्रयतो भूत्वा कवचं चेदमद्भुतम्।स देव्या: पदवीं याति सत्यं सत्यं न संशय:।
॥ इति श्रीमुण्डमालातन्त्रे दशमपटले पार्वतीश्वरसंवादे मन्त्रसिद्धिस्तोत्रं कवचं (महाविद्याकवचं) सम्पूर्णम् ॥
महाविधा कवच के नियमित पाठ के अनेक लाभ होते हैं। यह केवल एक शारीरिक सुरक्षा कवच ही नहीं, बल्कि मानसिक और आत्मिक सुरक्षा का भी मार्ग प्रदान करता है। इसके पाठ से निम्नलिखित लाभ होते हैं:
महाविधा कवच का पाठ विधि शास्त्रों में दी गई है, जो अत्यन्त श्रद्धा और विश्वास के साथ करना चाहिए। यह विधि साधक के मन, वचन और क्रिया के पवित्र होने पर अत्यन्त प्रभावशाली होती है।
(सिद्धि स्थान का चयन)
महाविधा कवच एक अत्यन्त प्रभावी और अद्भुत दिव्य कवच है जो व्यक्ति को हर प्रकार के संकट, विघ्न, और रोग से मुक्ति प्रदान करता है। इसका पाठ करने से न केवल शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक लाभ होते हैं, बल्कि यह जीवन में सुख-शांति और समृद्धि भी लाता है। यह कवच भगवती के विभिन्न रूपों के आशीर्वाद से पूरी तरह सुरक्षित करता है और व्यक्ति के जीवन को सुखमय बनाता है।
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