क्या आप जानते हैं जनेऊ मंत्र के छिपे हुए रहस्यों को? जानें इस शक्तिशाली मंत्र के अर्थ और धार्मिक महत्व को, और बदलें अपनी साधना की दिशा
जनेऊ मंत्र को उपनयन संस्कार के दौरान उच्चारित किया जाता है, जो हिंदू धर्म में पवित्र धागा धारण करने की महत्वपूर्ण विधि है। इस मंत्र का उच्चारण व्यक्ति को धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से जागरूक करता है। यह संस्कार ब्रह्मचर्य, ज्ञान और शुद्धता का प्रतीक माना जाता है।
जनेऊ (यज्ञोपवीत) भारतीय सनातन धर्म में एक पवित्र धागा है जिसे धारण करना धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। यह धागा केवल एक वस्त्र नहीं है, बल्कि यह व्यक्ति को उसके कर्तव्यों, धर्म और आध्यात्मिक मार्ग का अनुसरण करने का स्मरण कराता है।
जनेऊ धारण करना हिंदू धर्म के 16 संस्कारों में से एक प्रमुख संस्कार (यज्ञोपवीत संस्कार) है। यह व्यक्ति के जीवन में धार्मिक और नैतिक जिम्मेदारियों को निभाने का प्रतीक है।
जनेऊ में तीन सूत्र होते हैं, जो विभिन्न आध्यात्मिक और सामाजिक कर्तव्यों का प्रतीक हैं:
जनेऊ धारण करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक पवित्रता और धार्मिक चेतना का अनुभव होता है। यह व्यक्ति को सदैव शुद्ध विचार और कर्म करने की प्रेरणा देता है।
जनेऊ धारण करते समय या यज्ञोपवीत संस्कार के समय विशेष मंत्रों का उच्चारण किया जाता है। इनमें से प्रमुख मंत्र इस प्रकार हैं:
यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात्। आयुष्यं अग्र्यं प्रतिमुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः॥
(अर्थ: यह यज्ञोपवीत परम पवित्र, आयु बढ़ाने वाला, बल और तेज प्रदान करने वाला है। इसे धारण करना शुभ है।)
ॐ भूर्भुवः स्वः। तत्सवितुर्वरेण्यं। भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्॥
(अर्थ: हे देव, जो सभी का कल्याण करने वाला है, आपकी प्रेरणा हमारे विचारों को पवित्र और सही दिशा में ले जाए।)
ममोपात्तदुरितक्षयद्वारा श्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थं यज्ञोपवीतधारणं करिष्ये।
(अर्थ: मैं अपने पापों के नाश और भगवान की प्रसन्नता के लिए यज्ञोपवीत धारण करता हूं।)
इन मंत्रों के उच्चारण से यज्ञोपवीत धारण का आध्यात्मिक महत्व बढ़ता है और यह धार्मिक संस्कार को पूर्ण करता है।
ॐ आपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा। यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचिः॥
(अर्थ: चाहे कोई अपवित्र हो या पवित्र, किसी भी स्थिति में हो, जो भगवान विष्णु का स्मरण करता है, वह बाहरी और आंतरिक रूप से शुद्ध हो जाता है।)
उज्ज्वलं ब्रह्मसूत्रं विष्णोर्यज्ञोपवीतिने। नमः पारमेष्ठिने तुभ्यं त्रिविधं धर्म धारये।
(अर्थ: हे परमात्मा, मैं इस उज्ज्वल यज्ञोपवीत को धारण करता हूं, जो तीनों प्रकार के धर्मों (ज्ञान, कर्म और भक्ति) का प्रतीक है।)
ॐ यज्ञोपवीतं पुराणं जर्जरं कश्यपोद्भवम्। त्यजामि ब्रह्मनिर्यातं नित्यं सत्त्वगुणात्मकम्॥
(अर्थ: मैं पुराने और जीर्ण-शीर्ण यज्ञोपवीत का त्याग करता हूं, जो ब्रह्मा द्वारा निर्मित और सत्त्वगुण से युक्त है।)
यज्ञोपवीतं त्रिगुणं त्रिसूत्रम् त्रिधा धर्मं धर्मयुतं मयाहम्। ब्राह्मण्यदेवाय सदा प्रदातुम् ऊर्ध्वं प्राणं प्रपद्ये यज्ञोपवीतम्॥
(अर्थ: यह यज्ञोपवीत तीन गुणों (सत्व, रज, तम) और तीन सूत्रों का प्रतीक है। यह धर्मयुक्त है। इसे धारण करके मैं अपने प्राणों को ऊपर उठाने की प्रार्थना करता हूं।)
कृष्णवर्णं यज्ञसूत्रं ब्रह्मसूत्रं तदुच्यते। पुराणं ब्रह्मणः प्रोक्थं नित्यं पुण्यफलप्रदम्॥
(अर्थ: यज्ञोपवीत ब्रह्मसूत्र है, जो ज्ञान और धर्म का प्रतीक है। इसे धारण करने से पुण्य और ज्ञान की प्राप्ति होती है।)
इन मंत्रों का जाप करते समय श्रद्धा और ध्यान का होना बहुत आवश्यक है, क्योंकि ये मंत्र आत्मिक और आध्यात्मिक ऊर्जा को बढ़ाते हैं।
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