Brahmacharini Mata | ब्रह्मचारिणी माता, दुर्गा माता का दूसरा अवतार

ब्रह्मचारिणी माता

ब्रह्मचारिणी माता, जोकि तपस्या, धैर्य और ज्ञान की प्रतीक हैं


ब्रह्मचारिणी माता | Brahmacharini Mata

देवी दुर्गा के नौ अवतारों में से दूसरे अवतार को, माता ब्रह्मचारिणी के नाम से जाना जाता है। देवी के इस अवतार की पूजा नवरात्रि के दूसरे दिन की जाती है। मां का नाम 'ब्रह्मचारिणी' दो शब्द ‘ब्रह्म’ और ‘चारिणी’ से मिलकर बना है। जहां ‘ब्रह्म’ का अर्थ है तपस्या, वहीं ‘चारिणी’ का अर्थ है आचरण करने वाली। अर्थात, ब्रह्मचारिणी का शाब्दिक अर्थ है, ‘तप का आचरण करने वाली’। महादेव को अपने पति के रूप में पाने के लिए की गई कठोर तपस्या के कारण ही देवी के ब्रह्मचारिणी स्वरूप का आविर्भाव हुआ था। तो आइए जानते हैं, माँ ब्रह्मचारिणी के तप की अनन्य कथा-

ब्रह्मचारिणी माता कथा | Brahmacharini Mata Katha

देवी ब्रह्मचारिणी का स्वरूप अत्यंत शांत एवं मनोरम है। उनके दाएं हाथ में जप की अक्षयमाला और बाएं हाथ में कमंडल सुसज्जित है। इस स्वरूप में माता बिना किसी वाहन के नज़र आती हैं। नवरात्रि के पावन त्योहार के दूसरे दिन माता ब्रह्मचारिणी की विधिपूर्वक पूजा होती है। देवी ब्रह्मचारिणी के माहात्म्य की कथा, महादेव के प्रति उनके प्रेम और निष्ठा से जुड़ी हुई है। मां दुर्गा का यह अवतार मनुष्य को निष्ठा और वैराग्य की सीख देता है। उनकी महिमा की इस कथा का वर्णन देवी भागवत माहात्म्य और मार्कंडेय पुराण के कुछ अंशों में मिलता है।

धार्मिक कथाओं के अनुसार, प्रजापति दक्ष ने कनखल में एक विराट यज्ञ का आयोजन किया था। महादेव के प्रति मन में विरोध और ईर्ष्या का भाव होने के कारण, उन्होंने महादेव और देवी सती के अलावा उस यज्ञ में सभी को आमंत्रित किया। जब देवी सती को इस यज्ञ के बारे में पता चला, तो उन्होंने यज्ञ में पहुंचकर अपने पिता से ऐसा करने का कारण पूछा। इस पर प्रजापति दक्ष ने अपनी पुत्री और महादेव को अपशब्द कहे और इस अपमान से व्यथित होकर देवी सती ने भगवान शिव का ध्यान करते हुए योगाग्नि द्वारा अपना शरीर त्याग दिया।

माता सती के आत्मदाह के बाद, समस्त सृष्टि जैसे श्रीहीन हो गई थी और महादेव भी उदासीन हो गए थे। देवताओं ने महादेव की ऐसी हालत और दानवों के उपद्रव से त्रस्त होकर, आदिशक्ति का ध्यान किया। तब देवी आदिशक्ति ने सभी देवगणों को आश्वस्त किया, कि वह बहुत जल्द पर्वतराज हिमालय के घर कन्या रूप में अवतरित होंगी। यही कारण है, कि कालांतर में देवी ने हिमालय और मैना के घर जन्म लिया। पर्वतराज की पुत्री होने के कारण देवी पार्वती, शैलपुत्री कहलाईं।

ऐसी मान्यता है, कि एक बार हिमालय ने देवर्षि नारद से देवी पार्वती की जन्मपत्रिका को ठीक से जांच करने का आग्रह किया था। देवर्षि ने देवी पार्वती की जन्मपत्रिका देखकर यह बताया, कि आगे जाकर वह त्रिलोक के स्वामी महादेव की संगिनी बनेंगी। जब इस बात का पता देवी पार्वती को चला, तो उन्होंने वन में जाकर महादेव की कठोर तपस्या करना शुरू कर दिया। इस कठोर तपस्या के दौरान, देवी ने भोजन स्वरूप सिर्फ़ फल और फूलों पर निर्वाह किया। तत्पश्चात, उन्होंने सूखे बिल्व पत्रों को ग्रहण करते हुए, अपनी तपस्या को जारी रखा। एक समय ऐसा भी आया, जब देवी निर्जला और निराहार महादेव की तपस्या में लीन थीं।

महादेव को पाने के लिए, देवी की इतनी कठिन तपस्या के साक्षी सभी देवी, देवता एवं ऋषि-मुनि बने और उन्होंने देवी पार्वती की इस तपस्या को अभूतपूर्व बताया। जब देवी की कठिन तपस्या के कारण उनका शरीर कमज़ोर हो गया था। तब सभी देवताओं और ऋषियों ने इस तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें यह आशीर्वाद दिया, कि उनकी सभी इच्छाएं पूरी होंगी और उनका विवाह, महादेव के साथ ही संपन्न होगा।

मान्यता तो यह भी है, कि देवी का यह स्वरूप भक्तों को अनंत फल प्रदान करने वाला है। उनके इस स्वरूप को समस्त विद्याओं की जननी माना गया है और इस स्वरूप में देवी सफेद वस्त्रों में नज़र आती हैं। नवरात्रि के दूसरे दिन, देवी ब्रह्मचारिणी की विधिवत पूजा की जाती है। इस दौरान, कुंजिका स्तोत्र का पाठ करने के बाद, दुर्गा सप्तशती का पाठ करते रहना भी अत्यंत हितकारी माना जाता है।

इसके साथ ही भक्त माता के विशेष मंत्र के द्वारा भी देवी ब्रह्मचारिणी की आराधना करते हैं।

ब्रह्मचारिणी की आराधना का मंत्र | Brahmacharini Mata Mantra

माता ब्रह्मचारिणी की आराधना का मंत्र है-

"ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नम:"

अर्थात, जिन देवी का ओमकार स्वरूप है, उन सर्वोत्तमा देवी ब्रह्मचारिणी को हम सभी नमस्कार करते हैं। मान्यता है कि देवी ब्रह्मचारिणी की आराधना करने वाले भक्त शीघ्र ही समस्त भोगों के सुख को भोग कर अपनी आत्मा का कल्याण करते हैं और ब्रह्म तत्व की प्राप्ति करते हैं। हमें भी माता की शरण प्राप्त हो ऐसी भावना भानी चाहिए। विशेष: देवी दुर्गा के ब्रह्मचारिणी अवतार की कहानी हमें ये सीख देती है, कि तप, त्याग, सदाचार, परिश्रम और संयम का मनुष्य के जीवन में कितना महत्व होता है। मनुष्य अगर कठोर परिश्रम करते हुए अपना जीवन यापन करें, तो उसे अपने मनोवांछित फल की प्राप्ति अवश्य होती है। जिस प्रकार अत्यंत मुश्किल परिस्थियों में भी देवी ब्रह्मचारिणी ने अपनी तपस्या का पथ नहीं छोड़ा, उसी प्रकार मनुष्य को भी परिश्रम का पथ नहीं छोड़ना चाहिए।

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