नवरात्रि का चौथा दिन | Fourth Day of Navratri

नवरात्रि का चौथा दिन

देवी की कृपा प्राप्त करने के लिए इस दिन के विशेष उपाय और अनुष्ठान के बारे में जानें।


नवरात्रि का चौथा दिन (Fourth Day of Navratri)

एक वर्ष में कुल चार नवरात्रि मनाई जाती है। चैत्र नवरात्रि, आषाढ़ नवरात्रि, आश्विन नवरात्रि और माघ नवरात्रि। ये सभी नवरात्र प्रतिपदा तिथि से शुरू होकर नवमी तिथि तक चलती हैं। इन चारों नवरात्रों को चार ऋतुओं के आगमन के रूप में भी देखा जाता है। जहां, चैत्र नवरात्र के साथ ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत होती है। वहीं, आषाढ़ नवरात्र के साथ वर्षा ऋतु, आश्विन नवरात्र के साथ शरद ऋतु, और माघ नवरात्र के साथ वसंत ऋतु की शुरुआत मानी जाती है।

Navratri 4 Day

नवरात्रि पर्व माँ आदिशक्ति भगवती को समर्पित है। हर नवरात्र के यह नौ दिन और रातें माता के भक्तों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। इन नौ रात्रिओं का सम्बन्ध सिद्धि से होता है। इसीलिए माता की आराधना की यह नौ रातें आपके कई कार्यों को सरलता से सिद्ध कर सकती हैं। आइए, जानते हैं नवरात्र के चौथे दिन का महत्व, पूजा विधि और इससे जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी।

नवरात्रि के चौथे दिन का महत्व (Importance of the Fourth Day of Navratri)

“सुरासम्पूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥”

माँ दुर्गा के चौथे शक्ति स्वरूप को कूष्माण्डा के नाम से जाना जाता है, और शारदीय नवरात्रि का चौथा दिन माँ कूष्माण्डा को समर्पित है। इस वर्ष शारदीय नवरात्रि के चौथे दिन अर्थात 06 अक्टूबर 2024, रविवार को माँ कूष्माण्डा की साधना की जाएगी।

देवी कूष्माण्डा सिंह पर सवार रहती हैं और उनकी आठ भुजाएं हैं, इसीलिए उन्हें दुर्गा का अष्टभुजा अवतार भी कहा जाता है। माता के शरीर की कांति और ऊर्जा सूर्य के समान हैं, क्योंकि केवल माता कूष्माण्डा के पास ही वो शक्ति है, जिससे वे सूर्य के केंद्र में निवास कर सकती हैं।

नवरात्रि के चौथै दिन का शुभ मुहूर्त (Auspicious Time of Fourth Day of Navratri)

नवरात्र के चौथे दिन माँ दुर्गा के चौथे स्वरूप मां कूष्माण्डा की पूजा का बहुत महत्व है। इस वर्ष नवरात्रि का चौथा दिन 06 अक्टूबर 2024 को है।

चतुर्थी तिथि प्रारम्भ: 06 अक्टूबर, रविवार 07:49 AM चतुर्थी तिथि समापन: 07 अक्टूबर, सोमवार 09:47 AM

माँ कूष्मांडा की पूजा सामग्री और विधि (Mata Kushmanda Puja Samagri and Puja Vidhi)

  • सर्वप्रथम सुबह नित्यकर्मों से निवृत्त होकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • चौकी को साफ करके, वहां गंगाजल का छिड़काव करें, चौकी पर आपने एक दिन पहले जो पुष्प चढ़ाए थे, उन्हें हटा दें।
  • आपको बता दें, चूंकि चौकी की स्थापना प्रथम दिन ही की जाती है, इसलिए पूजन स्थल पर विसर्जन से पहले झाड़ू न लगाएं।
  • इसके बाद आप पूजन स्थल पर आसन ग्रहण कर लें।
  • इसके बाद माता की आराधना शुरू करें- सबसे पहले दीपक प्रज्वलित करें।
  • अब ॐ गं गणपतये नमः का 11 बार जाप करके भगवान गणेश को नमन करें।
  • इसके बाद अब ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः॥ मन्त्र के द्वारा माँ कूष्माण्डा का आह्वान करें।
  • साथ ही माता को नमन करके निम्नलिखित मन्त्र के साथ माँ कूष्माण्डा का ध्यान करें-
  • प्रथम पूज्य गणेश जी और देवी माँ को कुमकुम का तिलक लगाएं।
  • कलश, घट, चौकी को भी हल्दी-कुमकुम-अक्षत से तिलक करके नमन करें।
  • इसके बाद धुप- सुगन्धि जलाकर माता जी को फूल-माला अर्पित करें। आप देवी जी को लाल और पीले पुष्प अर्पित कर सकते हैं।
  • नर्वाण मन्त्र ‘ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाऐ विच्चे’ का यथाशक्ति अनुसार 11, 21, 51 या 108 बार जप करें।
  • एक धुपदान में उपला जलाकर इस पर लोबान, गुग्गल, कर्पूर या घी डालकर माता को धुप दें, और इसके बाद इस धुप को पूरे घर में दिखाएँ। आपको बता दें कि कई साधक केवल अष्टमी या नवमी पर हवन करते हैं, वहीं कई साधक इस विधि से धुप जलाकर पूरे नौ दिनों तक साधना करते हैं। आप अपने घर की परंपरा या अपनी इच्छा के अनुसार यह क्रिया कर सकते हैं।
  • अब भोग के रूप में मिठाई या फल माता को अर्पित करें।
  • इसके बाद माँ कूष्माण्डा की आरती गाएं।
  • आप श्रीमंदिर पर भी माँ कूष्माण्डा के दर्शन कर सकते हैं। साथ ही माता की आरती का लाभ भी ले सकते हैं।
  • अब माँ दुर्गा की आरती करें। माँ अंबे की भी आरती श्रीमंदिर पर उपलब्ध है।
  • इस तरह आपकी पूजा का समापन करें सबको प्रसाद वितरित करके स्वयं प्रसाद ग्रहण करें।

माँ कूष्मांडा को क्या भोग लगाएं और उनका बीज मंत्र

माँ दुर्गा के कूष्मांडा स्वरूप की पूजा नवरात्रि के चौथे दिन की जाती है। इस दिन मालपुए का भोग लगाया जाता है। यदि आप किसी कारणवश मालपुए का भोग न लगा पाएं तो मातारानी को गुड़ का भोग भी लगाया जा सकता है।

मालपुए बनाने के लिए, सबसे पहले दूध में चीनी डालकर एक घंटे के लिए रख दें। इसके बाद, एक बर्तन में आटा छानें। फिर इसमें सौंफ, इलायची और नारियल का बुरादा डालकर मिलाएं। जब दूध में चीनी घुल जाए, तो इसको आटे में डालें और मिलाएं। इसके बाद एक कड़ाही में घी डालकर उसको गर्म करें, फिर उसे पूरी के आकार में घी में डालें। मालपुआ को दोनों तरफ से पलट कर लाल होने तक सेकें और फिर माता को इसका भोग लगाएं।

मां कूष्मांडा का बीज मंत्र: ऐं ह्री देव्यै नम:।

माँ कूष्मांडा की पूजा से होने वाले लाभ (Benefits of Mata Kushmanda Puja)

शारदीय नवरात्र के चौथे दिन माँ कूष्माण्डा की पूजा करने से साधक के समस्त रोग-शोक मिट जाते हैं। कूष्माण्डा माता भक्तों के छोटे-छोटे प्रयासों से भी प्रसन्न हो जाती हैं और उन्हें आयु, यश, बल और आरोग्य का आशीर्वाद देती हैं। माँ कूष्माण्डा को लाल रंग अतिप्रिय है। और इस बार शारदीय नवरात्रि के चौथे दिन माँ कूष्माण्डा की पूजा के लिए शुभ रंग पीला है।

माँ कूष्मांडा की कथा (Story of Mata Kushmanda)

अपनी मनमोहक मुस्कान से इस ब्रह्मांड का निर्माण करने के कारण इन्हें देवी कूष्माण्डा के नाम से विख्यात किया गया। जिस समय सृष्टि का निर्माण नहीं हुआ था तथा चारों ओर अंधकार का वास था तब देवी कूष्माण्डा ने ही अपने ईशत हास्य के माध्यम से ब्रह्मांड की सरंचना की। उनकी इस अद्भुत लीला की वजह से उन्हें सृष्टि की आदिस्वरूपा या आदिशक्ति का नाम दिया गया। देवी कुष्मांडा की अष्ट भुजाएं हैं इसलिए उन्हें अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है। देवी कूष्माण्डा अथवा अष्टभुजा के हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल पुष्प, अमृत पूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। इसके साथ ही देवी कूष्माण्डा के आठवें हाथ में सिद्धियों तथा निधियों को प्रदान करने वाली जप माला धारण हैं। देवी कूष्माण्डा का प्रिय वाहन सिंह है। देवी कूष्माण्डा को कुम्हड़े की बलि अत्यंत प्रिय है। संस्कृत भाषा में कुम्हड़े को कुष्मांड कहते हैं। इस कारण भी देवी को कूष्माण्डा कहते हैं। देवी कूष्माण्डा का सूर्यमंडल के अंदर लोक में निवास करती हैं। सूर्यमंडल में निवास करने की शक्ति मात्र इन्हीं देवी के पास है। इनका तेज़ सर्वव्यापी है। जगत का हर प्राणी, मनुष्य इन्हीं के तेज़ से उज्ज्वल है। इनकी कांति, ओज तथा दिव्य स्वरूप सर्व लोक में उजागर है। ब्रह्मांड का कण – कण देवी कूष्माण्डा की शक्ति का प्रतीक है। देवी कुष्मांडा की सच्चे मन से पूजा करने वाले भक्तों को शक्ति, तेज़ प्राप्त होता है। यह देवी भक्ति तथा सेवा से प्रसन्न होकर आशीर्वाद तथा मनोकामना को सिद्ध करती हैं।

माँ कूष्मांडा की की आरती (Aarti of Mata Kushmanda)

ॐ जय कूष्मांडा माँ मैया जय कूष्मांडा माँ शरण तिहारी आए शरण तिहारी आए कर दो माता दया जय जय कूष्मांडा माँ

ॐ जय कूष्मांडा माँ मैया जय कूष्मांडा माँ शरण तिहारी आए शरण तिहारी आए कर दो माता दया ॐ जय कूष्मांडा माँ

अष्टभुजा जय देवी आदिशक्ति तुम माँ मैया आदिशक्ति तुम माँ आदि स्वरूपा मैया आदि स्वरूपा मैया जग तुमसे चलता ॐ जय कूष्मांडा माँ

चतुर्थ नवरात्रों में भक्त करे गुणगान मैया भक्त करे गुणगान स्थिर मन से माँ की स्थिर मन से माँ की करो पूजा और ध्यान ॐ जय कूष्मांडा माँ

सच्चे मन से जो भी करे स्तुति गुणगान मैया करे स्तुति गुणगान सुख समृद्धि पावे सुख समृद्धि पावे माँ करे भक्ति दान ॐ जय कूष्मांडा माँ

शेर है माँ की सवारी कमंडल अति न्यारा मैया कमंडल अति न्यारा चक्र पुष्प गले माला चक्र पुष्प गले माला माँ से उजियारा ॐ जय कूष्मांडा माँ

ब्रह्माण्ड निवासिनी ब्रह्मा वेद कहे मैया ब्रह्मा वेद कहे दास बनी है दुनिया दास बनी है दुनिया माँ से करुणा बहे ॐ जय कूष्मांडा माँ

पाप ताप मिटता है दोष ना रह जाता मैया दोष ना रह जाता जो माता में रमता जो माता में रमता निश्चित फल पाता ॐ जय कूष्मांडा माँ

अष्ट सिद्धियां माता भक्तों को दान करें मैया भक्तों को दान करें व्याधि मैया हरती व्याधि मैया हरती सुखों से पूर्ण करे ॐ जय कूष्मांडा माँ

कुष्मांडा माता की आरती नित गाओ आरती नित गाओ माँ करेगी सब संभव माँ करेगी सब संभव चरण सदा ध्याओ ॐ जय कूष्मांडा माँ

ॐ जय कूष्मांडा माँ मैया जय कूष्मांडा माँ शरण तिहारी आए शरण तिहारी आए कर दो माता दया जय जय कूष्मांडा माँ

ॐ जय कूष्मांडा माँ मैया जय कूष्मांडा माँ शरण तिहारी आए शरण तिहारी आए कर दो माता दया जय जय कूष्मांडा माँ

ॐ जय कूष्मांडा माँ मैया जय कूष्मांडा माँ शरण तिहारी आए शरण तिहारी आए कर दो माता दया जय जय कूष्मांडा माँ

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