महागौरी पूजा विधि | Mahagauri Puja Vidhi

महागौरी पूजा विधि

इस पूजा के माध्यम से मां महागौरी की कृपा प्राप्त करें।


महागौरी पूजा विधि | Mahagauri Puja Vidhi

नवरात्रि का पावन पर्व समापन की ओर बढ़ रहा है और अष्टमी के शुभ अवसर पर देवी के आठवें स्वरूप महागौरी की पूजा-अर्चना करने का विधान है।

इस शारदीय नवरात्रि, अष्टमी तिथि 10 अक्टूबर को पड़ेगी। आप इस लेख में दी गई पूजन विधि से देवी महागौरी की पूजा-अर्चना कर उनका आशीष प्राप्त कर सकते हैं।

सबसे पहले जानते हैं कि अष्टमी तिथि का प्रारंभ और समापन कब होगा-

10 अक्टूबर, आठवां दिन- अष्टमी तिथि, मां महागौरी पूजा

अष्टमी तिथि का प्रारंभ: 10 अक्टूबर, गुरुवार 12:31 PM अष्टमी तिथि का समापन 11 अक्टूबर, शुक्रवार 12:06 PM

देवी जी का दिव्य स्वरूप कैसा है-

पुराणों में महागौरी के स्वरूप को चंद्र और कंद के फूल की तरह श्वेत बताया गया है, इस कारण इन्हें महागौरी कहा जाता है। देवी जी वृषभ की सवारी करती हैं और इनकी चार भुजाएँ हैं।

महागौरी पूजा विधि-

  • अष्टमी के दिन सर्वप्रथम सुबह नित्यकर्मों से निवृत्त होकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • चौकी को साफ करके, वहां गंगाजल का छिड़काव करें, चौकी पर आपने एक दिन पहले जो पुष्प चढ़ाए थे, उन्हें हटा दें।
  • आपको बता दें, चूंकि चौकी की स्थापना प्रथम दिन ही की जाती है, इसलिए पूजन स्थल पर विसर्जन से पहले झाड़ू न लगाएं।
  • इसके बाद आप पूजन स्थल पर आसन ग्रहण कर लें।
  • अब माता की आराधना शुरू करें- सबसे पहले दीपक प्रज्वलित करें।
  • अब ॐ गं गणपतये नमः का 11 बार जाप करके भगवान गणेश को नमन करें।
  • इसके बाद ॐ महागौर्यै नमः मन्त्र के द्वारा देवी महागौरी का आह्वान करें।
  • देवी जी के आह्वान के बाद, माता को नमन करके निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करें और माँ महागौरी का ध्यान करें-

वन्दे वाञ्छित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहारूढा चतुर्भुजा महागौरी यशस्विनीम्॥
पूर्णन्दु निभाम् गौरी सोमचक्रस्थिताम् अष्टमम् महागौरी त्रिनेत्राम्।
वराभीतिकरां त्रिशूल डमरूधरां महागौरी भजेम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वन्दना पल्लवाधरां कान्त कपोलाम् त्रैलोक्य मोहनम्।
कमनीयां लावण्यां मृणालां चन्दन गन्धलिप्ताम्॥

  • प्रथम पूज्य गणेश जी और देवी माँ को कुमकुम का तिलक लगाएं।
  • साथ ही, कलश, घट, चौकी को भी हल्दी-कुमकुम-अक्षत से तिलक करके नमन करें।
  • इसके बाद धुप- सुगन्धि जलाकर माता को फूल-माला अर्पित करें। आपको बता दें कि माता के महागौरी स्वरूप को सफेद रंग अतिप्रिय है, इसलिए उन्हें सफेद कनेर के पुष्प अर्पित करें। पुष्प माला पहनाएं और संभव हो पाए तो सफेद रंग के वस्त्र भी अर्पित करें।
  • नर्वाण मंत्र ‘ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाऐ विच्चे’ का यथाशक्ति अनुसार 11, 21, 51 या 108 बार जप करें।
  • एक धूपदान में उपला जलाकर इस पर लोबान, गुग्गल, कर्पूर या घी डालकर माता को धुप दें, और इसके बाद इस धुप को पूरे घर में दिखाएँ। आपको बता दें कि कई साधक केवल अष्टमी या नवमी पर हवन करते हैं, वहीं कई साधक इस विधि से धुप जलाकर पूरे नौ दिनों तक साधना करते हैं। आप अपने घर की परंपरा या अपनी इच्छा के अनुसार यह क्रिया कर सकते हैं।
  • आप भोग के रूप में ऋतु फल के साथ चावल की खीर का माता को अर्पित कर सकते हैं।
  • अब आप दुर्गा सप्तशती का पाठ पढ़ें।
  • इसके बाद देवी महागौरी जी की आरती गाएं। आप श्रीमंदिर पर भी देवी महागौरी जी के दर्शन कर सकते हैं, साथ ही माता की आरती भी सुन सकते हैं।

महागौरी जी की आरती

जय महागौरी जगत की माया। जय उमा भवानी जय महामाया॥
हरिद्वार कनखल के पासा। महागौरी तेरा वहा निवास॥
चन्द्रकली और ममता अम्बे। जय शक्ति जय जय माँ जगदम्बे॥
भीमा देवी विमला माता। कौशिक देवी जग विख्यता॥
हिमाचल के घर गौरी रूप तेरा। महाकाली दुर्गा है स्वरूप तेरा॥
सती (सत) हवन कुंड में था जलाया। उसी धुएं ने रूप काली बनाया॥
बना धर्म सिंह जो सवारी में आया। तो शंकर ने त्रिशूल अपना दिखाया॥
तभी माँ ने महागौरी नाम पाया। शरण आनेवाले का संकट मिटाया॥
शनिवार को तेरी पूजा जो करता। माँ बिगड़ा हुआ काम उसका सुधरता॥
भक्त बोलो तो सोच तुम क्या रहे हो। महागौरी माँ तेरी हरदम ही जय हो॥

इस प्रकार आपकी पूजा विधिपूर्वक संपूर्ण हो जाएगी।

महाष्टमी या नवमी के दिन होने वाले हवन और संधि आरती के लिए आप श्रीमंदिर पर इस वीडियो को अवश्य देखें।

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