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5 पांडव के नाम

इस लेख में हम आपको पांडवों के पांच नामों और उनके कार्यों के बारे में विस्तार से बताएंगे।

पांडव के बारे में

पांडव महाभारत के प्रमुख पात्र थे, जो राजा पांडु और कुंती-माद्री के पुत्र थे। पांच पांडव – युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव – धर्म, शक्ति, वीरता, बुद्धि और निष्ठा के प्रतीक माने जाते हैं। उन्होंने अपने चचेरे भाइयों कौरवों के साथ कुरुक्षेत्र युद्ध लड़ा और धर्म की विजय स्थापित की।

5 पांडव के नाम

सनातन धर्म के सबसे विशाल महाकाव्य महाभारत की कथा में पांडवों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। यदि पांडवों को महाभारत का नायक कहा जाए तो यह कहना पूरी तरह गलत नहीं होगा, क्योंकि महाभारत पांडवों और कौरवों के बीच हुए धर्मयुद्ध की ही गाथा है। इस धर्म युद्ध में पांडव धर्म के पक्ष में थे और कौरव अधर्म के।

पांडवों के जन्म की कथा

महाभारत में इस कथा का वर्णन कुछ ऐसा है कि हस्तिनापुर के राजा महाराज पांडु की दो पत्नियां थी, रानी कुंती और रानी माद्री। रानी कुंती को महर्षि दुर्वासा से यह वरदान प्राप्त था कि वह एक दिव्य मंत्र का जाप करके कभी भी किसी देवता का आह्वान कर सकती हैं, और इसके फलस्वरूप उन्हें एक पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी।

जब राजा पांडु, रानी कुंती और रानी माद्री के साथ वनवास में थे, तब रानी कुंती ने इस दिव्य मंत्र का जाप किया। उन्होंने यमराज, वायुदेव और इंद्रदेव का आह्वान किया, जिससे उन्हें तीन पुत्रों की प्राप्ति हुई। यमराज के पुत्र हुए युधिष्ठिर, वायुदेव के तेज से जन्मे भीम और इंद्रदेव के आशीर्वाद से अर्जुन का जन्म हुआ।

इसके बाद, रानी माद्री ने इसी दिव्य मंत्र का जाप करके अश्विनीकुमारों का आह्वान किया और जिनसे नकुल तथा सहदेव का जन्म हुआ। हस्तिनापुर के राजा पांडु के पुत्र होने से इनका नाम पड़ा पांडव! दिव्य मंत्र की शक्ति और देवों के आशीष से जन्म होने के कारण पांडव अत्यंत शक्तिशाली हुए।

युधिष्ठिर

युधिष्ठिर पांडवों में सबसे बड़े हैं। युधिष्ठिर का अर्थ है वह जो युद्ध में स्थिर हो। युधिष्ठिर उनके नाम नाम की तरह ही स्थिर और निष्पक्ष थे। उनके लिए धर्म ही सर्वोपरि था, इसलिए उनका एक नाम धर्मराज भी है। युधिष्ठिर सत्य, धर्म और न्याय के प्रतीक माने जाते हैं। उनकी सत्यनिष्ठा और धर्मपरायणता के कारण उन्हें 'धर्मराज' भी कहा जाता है। महाभारत में उन्होंने अपनी नैतिकता और धर्म का पालन अपने अंतिम क्षण तक किया। अज्ञातवास में युधिष्ठिर, कंक नाम से राजा विराट को द्युत खेलना सिखाते थे।

भीम

भीम, पांडवों में दूसरे स्थान पर हैं। कुंती ने वायु देवता का आह्वान किया, जिससे भीम का जन्म हुआ। चूँकि हनुमान जी भी वायुदेव के ही पुत्र हैं, इसलिए भीम को हनुमान जी से विशेष आर्शीवाद प्राप्त हुआ था, जिससे वे युद्ध में अजेय बने। भीम अद्वितीय शक्तिशाली और पराक्रमी थे। अज्ञातवास में भीम ने वल्लभ नाम से एक रसोइए के रूप में राजा विराट के महल में शरण पाई थी।

अर्जुन

पांडवों में तीसरे भाई अर्जुन हैं। माता कुंती ने जब इंद्र देव का आह्वान किया, तो उन्हें पुत्र के रूप में अर्जुन की प्राप्ति हुई। महाभारत में अर्जुन श्रेष्ठ धनुर्धर हुए और उनका यह कौशल अद्वितीय था। इसी धनुर्विद्या के बल पर अर्जुन ने द्रोपदी का स्वयंवर जीता और द्रोपदी से विवाह किया। भगवान श्रीकृष्ण के साथ उनकी मित्रता अटूट थी। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कुरुक्षेत्र में भगवद्गीता का उपदेश उन्हें इस धर्म युद्ध के लिए प्रेरित किया था। पुराणों में अर्जुन को पार्थ के नाम से भी जाना जाता है। अपने अज्ञातवास में अर्जुन ने बृहन्नला के रूप में राजकुमारी उत्तरा को नृत्यकला सिखाई थी।

नकुल और सहदेव

नकुल, पांडवों में चौथे स्थान पर थे। उनकी माता माद्री थीं, जिन्होंने अश्विनी कुमारों का आह्वान किया, जिससे नकुल और सहदेव का जन्म हुआ। नकुल घुड़सवारी और तलवारबाजी में निपुण थे, और उनकी अनुपम सुंदरता और कौशल के लिए प्रसिद्ध थे। सहदेव, पांडवों में सबसे छोटे थे। सहदेव ज्योतिष और शास्त्रों में पारंगत थे, और बुद्धिमत्ता और ज्ञान के धनी थे। अज्ञातवास में नकुल ग्रंथिक नाम से राजा विराट के घोड़ों की देखभाल करते थे। जबकि सहदेव ने तंतिपाल नाम से महारज के यहां गायों की देखभाल की थी।

ये थी महाभारत में पांडवों के नामों से जुड़ी विशेष जानकारी। ऐसी ही अन्य धार्मिक जानकारियों के लिए जुड़े मंदिर के साथ।

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Published by Sri Mandir·February 17, 2025

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