इस लेख में आप भारत के सबसे पुराना मंदिर और उसकी ऐतिहासिक और धार्मिक महत्वता के बारे में जानेंगे।
क्या आप भारत के सबसे पुराने मंदिर के बारे में जानते हैं। शायद ही कुछ लोगों को इसके बारे में पता हो, लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इस मंदिर को दुनिया का सबसे पुराना मंदिर भी माना जाता है। तो भारत के किस राज्य में है ये मंदिर, क्या है इसका इतिहास, महत्व और मंदिर की खासियत। इस मंदिर से संबंधित सभी जानकारी यदि आप जानना चाहते हैं तो जानिए इस लेख के माध्यम से।
बिहार, जिस राज्य ने विश्व को आयर्भट्ट जैसे महान गणितज्ञ, वाल्मीकि जो रामायण के रचनाकार थे, वात्स्यायन जिन्होंने कामसूत्र लिखा और चाणक्य जैसे राजनीतिज्ञ दिए, जिनका योगदान आज भी प्रेरणादायक है। वहीं, देश का सबसे पुराना मंदिर मुंडेश्वरी मंदिर है जो कैमूर जिले में स्थित है।
यह न केवल भारतीय संस्कृति का एक अहम हिस्सा है, बल्कि इसके ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के कारण यह बहुत प्रसिद्ध है। यहाँ की वास्तुकला, धार्मिक मान्यताएं, और ऐतिहासिक प्रमाण इसे विशेष बनाते हैं। इस मंदिर को दुनिया का सबसे पुराना मंदिर भी माना जाता है। वहीं, यह मंदिर न केवल भारतीयों के लिए, बल्कि श्रीलंका के श्रद्धालुओं के लिए भी एक तीर्थ स्थल रहा है। जानकारी के अनुसार, वहां से भी भक्त यहां दर्शन के लिए आते थे।
स्थान और निर्माण काल: मुंडेश्वरी मंदिर कैमूर जिले के मुंडेश्वरी पहाड़ी पर 608 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। इस मंदिर का निर्माण 108 ईस्वी के आसपास हुआ था, जोकि शिलालेखों से प्रमाणित होता है।
ऐतिहासिक महत्व: मंदिर के पुराने होने का प्रमाण महाराजा दुत्तगामनी की मुद्रा से भी होता है जो कि मंदिर में मिले थे। साथ ही इस मंदिर को शककालीन बताया जाता है। वहीं, मंदिर का जिक्र मार्कण्डेय पुराण में भी हुआ है। इसके अलावा यह मंदिर शिव-शक्ति मंदिर के नाम से भी प्रसिद्ध है। ये मंदिर 51 शक्तिपीठों में शामिल हैं।
पुरातात्त्विक प्रमाण: मंदिर के आस-पास के क्षेत्रों में पाए गए सिक्के और पत्थरों पर तमिल और सिंहली भाषा में लिखे अक्षर यह दर्शाते हैं कि इस मंदिर से श्रीलंका का भी गहरा संबंध रहा है। क्योंकि इस मंदिर में श्रीलंका से भी श्रद्धालु दर्शन करने आते थे।
अष्टकोणीय संरचना: इस मंदिर की वास्तुकला बेहद अद्भुत है। इसे अष्टकोणीय (आठ कोणीय) शैली में बनाया गया है, जो न केवल शास्त्रीय रूप से उत्कृष्ट है, बल्कि यह बिहार में नागर शैली का पहला उदाहरण भी है।
मूर्तियां और कलाकृतियां: मंदिर की दीवारों पर छोटे-छोटे स्वागत मूर्तियों और कलाकृतियों की साज-सज्जा की गई है। प्रवेशद्वार पर द्वारपाल, गंगा और यमुना की आकृतियाँ बनी हुईं हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, मुंडेश्वरी देवी का नाम दो असुरों—चंड और मुंड के वध से जुड़ा है। ये असुर अपने कृत्यों से लोगों को परेशान करते थे। असुरों से मुक्ति पाने के लिए लोगों ने माता शक्ति से प्रार्थना की। देवी भवानी ने पृथ्वी पर आकर इन असुरों का वध किया। युद्ध के समय मुंड जिस पहाड़ी पर छिपा था मां भवानी ने उसी पहाड़ी पर मुंड का वध किया, जिस कारण मुंडेश्वरी नाम पड़ा।
पंचमुखी शिवलिंग और रंग बदलने की मान्यता: मंदिर के गर्भगृह में एक पंचमुखी शिवलिंग और देवी मुंडेश्वरी की मूर्तियां स्थित हैं। इसके साथ ही मंदिर में विघ्नहर्ता भगवान गणपित, लक्ष्मी पति नारायण औऱ शिव की मूर्ती भी हैं। वहीं, मान्यता अनुसार, मंदिर में मौजूद शिवलिंग सूर्य की स्थिति के अनुसार दिन में तीन बार रंग बदलता है। इसके साथ ही यह सुबह, दोपहर औऱ शाम को अल-अलग रंगों में नजर आता है। इस शिवलिंग के रंग कब बदल जाते हैं यह आज तक रहस्मय बना हुआ है। चैत्र माह में मंदिर में भक्तों का सैलाब उमड़ता दिखता है।
तांत्रिक पूजा और बलि की प्रथाः इस मंदिर में तांत्रिक पूजा का विशेष महत्व है औऱ सात्विक बलि मंदिर की खासियत। यहाँ पर बलि की प्रक्रिया एक खास प्रकार से की जाती है, जिसमें बकरे को देवी की मूर्ति के सामने लाकर, उसे कुछ समय के लिए बेहोश किया जाता है और फिर उस पर अक्षत फेंका जाता और बकरा पुनः जीवित हो जाता है। यह प्रक्रिया एक धार्मिक मान्यता के रूप में स्थापित है।
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