चौथ माता की कथा और उनकी पूजा से जुड़ी परंपराओं के बारे में जानें।
चौथ माता की कथा राजस्थान, खासकर मारवाड़ क्षेत्र में प्रचलित है। माना जाता है कि देवी चौथ माता का जन्म समुद्र मंथन से हुआ था और वे एक शक्तिशाली देवी मानी जाती हैं। कहा जाता है कि एक बार मणि नामक असुर ने देवी को पराजित कर दिया था, लेकिन चौथ माता ने अपनी शक्तियों से उसे हराया। आइये जानते हैं इस कहानी के बारे में...
एक समय की बात है, एक सेठ-सेठानी का घर था, जिसमें उनके साथ उनका बेटा और बहू भी रहते थे। बहू का नियम था कि वह पहले सबको भोजन कराती और फिर खुद खाती। उसकी इस आदत को पड़ोस में भी सब जानते थे। पड़ोस की एक महिला रोज उससे पूछती, "आज क्या खाया?" बहू हर बार जवाब देती, "ठंडा बासी।”
यह सुनकर एक दिन सेठ का बेटा सोच में पड़ गया। उसने तय किया कि घर में स्वादिष्ट पकवान बनवाए जाएंगे और सब साथ बैठकर खाएंगे। उसने ऐसा ही किया, लेकिन जब उस दिन भी पड़ोसन ने पूछा तो बहू ने वही जवाब दिया, "ठंडा बासी।" बेटे ने अपनी पत्नी से इस बात का कारण पूछा। तब पत्नी ने उत्तर दिया, "हम जो खा रहे हैं, वह आपके माता-पिता की मेहनत की कमाई है। जब आप अपनी मेहनत से कमाएंगे, तभी मैं इसे ताजा भोजन मानूंगी।”
इस बात से प्रभावित होकर बेटे ने अपनी मां से कहा कि वह बड़े शहर जाकर खुद की कमाई करेगा। मां ने समझाने की कोशिश की कि घर में पर्याप्त धन है, लेकिन बेटे ने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा, "जब तक मैं अपनी मेहनत से कमाया धन लेकर न लौटूं, तब तक मैं संतुष्ट नहीं हो सकता।" जाते समय उसने अपनी पत्नी से कहा, "जब तक मैं वापस न आ जाऊं, चूल्हे की आग बुझने मत देना।”
कुछ समय बाद, घर में चूल्हे की आग बुझ गई। बहू को चिंता हुई कि कहीं यह कोई अशुभ संकेत तो नहीं। वह आग लेने पड़ोस में गई, जहां पड़ोसन चौथमाता का व्रत कर रही थी। बहू ने पूछा, "आप यह व्रत क्यों करती हैं?" पड़ोसन ने बताया कि इस व्रत से धन-धान्य और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
यह जानकर सेठ की बहू ने भी चौथमाता का व्रत करना शुरू कर दिया। उसने दीवार पर चौथमाता का चित्र बनाया और घी-गुड़ का चूरमा बनाकर चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत पूरा किया। उसने पूरे विश्वास और श्रद्धा के साथ यह व्रत कई दिनों तक किया। चौथमाता की कृपा से उसके पति को एक दिन सपना आया। सपने में चौथमाता ने कहा, "तेरी पत्नी तुझे बहुत याद कर रही है। घर लौट जा और दुकान खोलकर कंकू-केसर का व्यापार शुरू कर। तेरा भाग्य खुल जाएगा।”
पति ने चौथमाता की बात मानी और उसने दुकान खोलकर मेहनत से धन कमाया। जब वह धन लेकर घर लौट रहा था, तो रास्ते में एक विशाल नाग रास्ता रोककर खड़ा हो गया। नाग ने कहा, "तेरी आयु पूरी हो गई है। अब मैं तुझे डसूंगा।" पति ने नाग से विनती की, "मुझे एक बार घर जाकर अपनी पत्नी से मिल लेने दो। मैं लौटकर आऊंगा।" नाग ने वचन लेकर उसे जाने दिया। घर पहुंचकर पति ने अपनी पत्नी को पूरी घटना बताई। पत्नी ने उसे सांत्वना देते हुए कहा, "चिंता मत करो। मैं एक उपाय करती हूं।”
पत्नी ने सात चरणों में तैयारी की। पहली जगह रेत डाली, दूसरी पर इत्र रखा, तीसरी पर गुलाल और फूल सजाए, चौथी पर कंकू-केसर रखा, पांचवीं पर मिठाइयां रखीं, छठी जगह गद्दा बिछाया, और सातवीं जगह दूध का कटोरा रखा। आधी रात को नाग आया और एक-एक चरण पर रुकता हुआ आखिरकार कमरे तक पहुंचा। हर चरण पर वह आराम करता और कहता, "बहुत मान-सम्मान मिला, पर मैं वचन निभाने आया हूं।" जब नाग सातवें चरण पर पहुंचा, तो चौथमाता, गणेशजी और चंद्रमाजी ने सेठ के बेटे की रक्षा करने का निश्चय किया। चंद्रमा ने उजाला किया, चौथमाता ढाल बनकर खड़ी हो गईं, और गणेशजी ने तलवार से नाग का अंत कर दिया।
सुबह जब सबने यह दृश्य देखा, तो वे हैरान रह गए। मरा हुआ नाग, पास में तलवार और ढाल देखकर सबने समझा कि यह चौथमाता की कृपा का परिणाम है। पति-पत्नी ने चौथमाता का आभार व्यक्त किया, और दोनों सपरिवार ख़ुशी-ख़ुशी रहने लगे। हमारी कामना है कि जिस तरह चौथ माता ने सेठ की बहू की कामना पूरी की, वैसे ही वे श्रद्धा के साथ इस व्रत का पालन करने वाले सभी जातकों की मनोकामना पूर्ण करें।
चौथ माता की जय।
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