महाभारत का असली नाम और इसके पौराणिक महत्व के बारे में विस्तृत जानकारी।
महाभारत का असली नाम "जयसंहिता" या "जय" था, जिसे बाद में "भारत" और फिर "महाभारत" के नाम से जाना गया। इसे महर्षि वेदव्यास ने रचा था और इसमें कुल 1,00,000 श्लोक हैं, जो इसे विश्व का सबसे बड़ा महाकाव्य बनाते हैं।
सनातन धर्म में दो ऐसे महाकाव्य है जिन्हें बहुत धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। ये दोनों ही ग्रंथ धर्म को पुनः स्थापित करने के लिए लड़े गए युद्धों पर आधारित है। इनमें से पहला महाकाव्य है रामायण, और दूसरा है महाभारत। महाभारत की रचना महर्षि वेद व्यास ने की थी। मान्यता है कि वेद व्यास ने भगवान गणेश को इस काव्य की रचना में लेखनी का दायित्व सौंपा था।
वेद व्यास जी की शर्त थी कि वे श्लोक का उच्चारण लगातार करेंगे और भगवान श्री गणेश बिना रुके वे सारे श्लोक लिखेंगे। और ऐसा ही हुआ। वेदव्यास ने जब इस महाकाव्य की पहली बार रचना की तब इसमें कुछ 8800 श्लोक थे और इन श्लोकों का नाम उन्होंने जय रखा था। महर्षि व्यास ने जय श्लोकों के संकलन को नाम दिया जय संहिता, जो महाभारत का पहला और असली नाम है।
चूँकि जय का अर्थ है विजय या सफलता, यह नाम इस महाकाव्य के लिए सत्य और धर्म की विजय का प्रतीक है। कई धार्मिक दस्तावेजों में इस महाकाव्य का प्रथम नाम जयम् भी बताया गया है।
महाभारत का यह नाम राजा भरत के नाम पर पड़ा। राजा भरत पांडवों और कौरवों के पूर्वज थे। कहा जाता है कि इन्हीं के नाम पर हमारे देश का नाम भी भारत रखा गया।
आगे चलकर इस काव्य में कुछ और श्लोक भी जोड़े गए और जब यह महान काव्य बनाकर पूर्ण हुआ तो इसमें कुछ श्लोकों की संख्या 1 लाख से ज्यादा थी। इसलिए इसका नाम भारत से बदलकर महाभारत रखा गया। महाभारत दो शब्दों से मिलकर बना है -महा अर्थात महान और भारत अर्थात भारतवर्ष अथवा भारत का इतिहास। यह नाम इसकी विशालता को दर्शाता है।
महाभारत और ऐसे ही अन्य धार्मिक ग्रंथों के बारे में जानने के लिए जुड़े रहिये श्री मंदिर के साथ।
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