नवधा भक्ति रामायण चौपाई
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नवधा भक्ति रामायण चौपाई

नवधा भक्ति के 9 प्रकार और रामायण चौपाईयों का महत्व।

नवधा भक्ति रामायण चौपाई के बारे में

नवधा भक्ति श्रीरामचरितमानस में भगवान राम द्वारा बताए गए भक्ति के नौ रूप हैं, जो भक्त को भगवान से जोड़ते हैं। तुलसीदासजी ने इसे सुंदर चौपाई में वर्णित किया है: **“नवधा भक्ति कहउँ तोहि पाहीं। सावधान सुनु धरु मन माहीं।।”** इसके अंतर्गत श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पादसेवन, अर्चन, वंदन, दास्य, सख्य और आत्मनिवेदन शामिल हैं। ये सभी भगवान की कृपा पाने के सरल मार्ग बताए गए हैं।

नौ प्रकार की भक्ति यानि नवधा भक्ति

गोस्वामी तुलसीदासजी ने श्रीरामचरितमानस में भगवान श्रीराम के माध्यम से नवधा भक्ति का वर्णन किया है। ये नौ प्रकार की भक्ति हैं, जो भक्त और भगवान के संबंध को गहराई से समझाने के साथ ही साधक को परमात्मा के समीप ले जाने का मार्ग दिखाती हैं। नवधा भक्ति का उल्लेख अरण्यकांड में आता है, जहां भगवान श्रीराम शबरी को इस पवित्र भक्ति का उपदेश देते हैं। चौपाई है:

प्रथम भगति संतन्ह कर संगा

प्रथम भक्ति: संतों का संग

पहली भक्ति संतों का संग है। संतों के साथ रहने से व्यक्ति अपने भीतर शुद्धता और सकारात्मकता का संचार करता है। उनके सान्निध्य से भगवान के गुण, चरित्र और लीलाओं के प्रति अनुराग बढ़ता है।

दूसरि रति मम कथा प्रसंगा

दूसरी भक्ति: भगवान की कथा में रुचि

दूसरी भक्ति भगवान की कथाओं को प्रेमपूर्वक सुनने और उनका चिंतन करने में है। रामायण, भागवत और अन्य धर्मग्रंथों का श्रवण करने से हृदय पवित्र होता है।

गुरु पद पंकज सेवा तीसरि भगति अमान

तीसरी भक्ति: गुरु की सेवा

गुरु को भगवान का रूप मानते हुए उनकी सेवा करना तीसरी भक्ति है। गुरु के चरणों में समर्पण से ज्ञान और आत्मिक उन्नति होती है।

चौथी भगति मम गुन गन करइ कपट तजि गान

चौथी भक्ति: भगवान के गुणगान

चौथी भक्ति है भगवान के गुणों का गान करना। भगवान के गुणों को गाने से मन और आत्मा शुद्ध होते हैं।

मंत्र जाप मम दृढ़ बिस्वासा, पंचम भजन सो बेद प्रकासा

पांचवीं भक्ति: मंत्रजाप और विश्वास

भगवान के नाम का जप करना और उनके प्रति दृढ़ विश्वास रखना पांचवीं भक्ति है। यह भक्ति साधक के भीतर अटल श्रद्धा को जन्म देती है।

छठ दम सील बिरति बहु करमा। निरत निरंतर सज्जन धरमा

छठी भक्ति: इंद्रियों का संयम

इंद्रियों को संयमित रखना, शील और वैराग्य का पालन करना छठी भक्ति है। यह साधक को सांसारिक मोह से मुक्त करती है।

सातवीं सम मोहि मय जग देखा। मोतें संत अधिक करि लेखा

सातवीं भक्ति: समभाव

सातवीं भक्ति में साधक भगवान को समस्त जगत में देखता है और संतों को भगवान से भी श्रेष्ठ मानता है।

आठवां जथालाभ संतोषा। सपनेहुँ नहिं देखइ परदोषा

आठवीं भक्ति: संतोष और परनिंदा का त्याग

आठवीं भक्ति है अपने भाग्य में संतोष रखना और परनिंदा से बचना। संतोष जीवन को सरल और सहज बनाता है।

नवम सरल सब सन छलहीना। मम भरोस हिय हरष न दीना

नौवीं भक्ति: सरलता और निश्चलता

नवम भक्ति है सरल और छलरहित स्वभाव रखना। भगवान पर पूर्ण विश्वास रखते हुए आनंद और शांति में स्थित रहना।

इस तरह नवधा भक्ति साधक को ईश्वर की ओर उन्मुख करती है। यह भक्त और भगवान के बीच प्रेमपूर्ण संबंध की स्थापना का मार्ग है। भगवान श्रीराम के अनुसार, नवधा भक्ति को अपनाने वाला साधक अवश्य ही मोक्ष को प्राप्त करता है। शबरी की भक्ति इसका जीवंत उदाहरण है। नवधा भक्ति हमें यह सिखाती है कि ईश्वर को पाने के लिए सरलता, प्रेम और समर्पण ही पर्याप्त हैं।

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Published by Sri Mandir·January 24, 2025

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