पितृ तर्पण विधि और मंत्र
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पितृ तर्पण विधि और मंत्र

पितृ तर्पण विधि और मंत्र का महत्व और सही प्रक्रिया जानिए।

पितृ तर्पण विधि और मंत्र के बारे में

पितृ तर्पण हिंदू धर्म में पूर्वजों की आत्मा की शांति और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए किया जाता है। इस विधि में तिल, जल, कुश, और अक्षत लेकर दक्षिण दिशा में मुख करके तर्पण किया जाता है। इसे अमावस्या, श्राद्ध पक्ष या पितृ पक्ष में करना शुभ माना जाता है। तर्पण के दौरान "ॐ पितृभ्यः स्वधा नमः" और "ॐ सर्वपितृभ्यः स्वधा नमः" मंत्रों का जाप किया जाता है, जिससे पितरों की कृपा प्राप्त होती है।

पितृ तर्पण विधि

हिंदू धर्म में पितरों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए तर्पण एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। यह विधि न केवल पितरों की आत्मा की शांति के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है, बल्कि यह हमारे जीवन में शांति और समृद्धि लाने में भी सहायक होती है। पितृ तर्पण श्राद्ध पक्ष के दौरान किया जाता है, जो अमावस्या और पूर्णिमा के समय विशेष महत्व रखता है। यह अनुष्ठान हमें हमारे पूर्वजों के प्रति जुड़ाव का अनुभव कराता है और पारिवारिक संस्कारों को जीवंत बनाए रखता है।

पितृ तर्पण का महत्व

पितृ तर्पण का उद्देश्य पूर्वजों की आत्मा को शांति प्रदान करना है। माना जाता है कि हमारे पितर हमारे जीवन में आने वाले कष्टों और बाधाओं को दूर करने में मदद करते हैं। तर्पण के माध्यम से हम अपने पितरों को जल अर्पित करते हैं, जिससे वे प्रसन्न होकर हमें आशीर्वाद प्रदान करते हैं। यह अनुष्ठान न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से बल्कि आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है।

पितृ तर्पण की तैयारी

पितृ तर्पण करने से पहले कुछ आवश्यक तैयारियां करनी होती हैं।

स्थान का चयन: पवित्र नदी, तालाब, या घर के आंगन में इसे करना शुभ माना जाता है। सामग्री का प्रबंध: कुशा, तांबे का पात्र, तिल, जल, फूल, चावल और दूध की आवश्यकता होती है। स्नान: तर्पण करने से पहले पवित्र स्नान करना आवश्यक है।

पितृ तर्पण विधि

आरंभिक मंत्र: सबसे पहले, "ॐ" का उच्चारण करके तर्पण की शुरुआत करें। आसन पर बैठें: कुशा के आसन पर बैठकर पवित्र जल से अपने हाथ धोएं। पितरों का आह्वान: "ॐ पितृभ्यः नमः" मंत्र का उच्चारण करते हुए अपने पितरों का स्मरण करें। जल अर्पण: तांबे के पात्र में जल, तिल और चावल मिलाकर पितरों को तीन बार अर्पित करें।

  • पहला अर्पण पिता के लिए- अस्मत्पिता (पिता) अमुकशर्मा अमुकसगोत्रो वसुरूपस्तृप्यताम् ।। इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः ॥
  • दूसरा दादा के लिए- अस्मत्पितामह (दादा) अमुकशर्मा अमुकसगोत्रो रुद्ररूपस्तृप्यताम् ।। इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः ॥
  • तीसरा परदादा के लिए- अस्मत्प्रपितामहः (परदादा) अमुकशर्मा अमुकसगोत्रो वसुरूपस्तृप्यताम् ।। इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः ॥
  • चौथा माँ के लिए- अस्मन्माता (माता) अमुकी देवी दा अमुक सगोत्रा गायत्रीरूपा तृप्यताम् ।। इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः ॥
  • इसके बाद दादी के लिए- अस्मत्पितामही (दादी) अमुकी देवी दा अमुक सगोत्रा सावित्रीरूपा तृप्यताम् ।। इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः ॥
  • अब परदादी के लिए- अस्मत्प्रत्पितामही (परदादी) अमुकी देवी दा अमुक सगोत्रा लक्ष्मीरूपा तृप्यताम् ।। इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः ॥

मंत्रों का जाप: "ॐ त्र्यंबकं यजामहे सुगंधिं पुष्टिवर्धनम्" मंत्र का जाप करते हुए तर्पण करें। आशीर्वाद की प्रार्थना: अंत में, अपने पितरों से आशीर्वाद मांगें और उनके लिए शांति की प्रार्थना करें।

पितृ तर्पण करते समय सावधानियां

  • तर्पण केवल श्रद्धा और समर्पण के साथ किया जाना चाहिए।
  • पवित्रता बनाए रखें और अनुष्ठान के दौरान अपशब्दों से बचें।
  • विधि को किसी विद्वान पंडित की देखरेख में करें यदि आप स्वयं पूरी प्रक्रिया से परिचित नहीं हैं।

पितृ तर्पण विधि हमारे पूर्वजों के प्रति आभार व्यक्त करने का एक पवित्र और प्रभावशाली साधन है। यह न केवल उनकी आत्मा की शांति के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमें हमारे जीवन में संतुलन और सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है। श्रद्धा और समर्पण के साथ किया गया यह अनुष्ठान हमारे जीवन में सुख, समृद्धि और शांति लाने में सहायक होता है। इसलिए, पितृ तर्पण को पूरी श्रद्धा और विधि-विधान के साथ करना चाहिए।

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Published by Sri Mandir·January 28, 2025

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