रावण के भाई का नाम
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रावण के भाई का नाम

इस लेख में आपको रावण के भाईयों के बारे में जानकारी मिलेगी, जिन्होंने महाभारत और रामायण में अपनी अलग पहचान बनाई।

रावण के भाई का नाम

रामायण की अमर कथा में रावण सबसे बड़ा खलनायक है, लेकिन उसके परिवार के अन्य सदस्य भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं। दशानन रावण के दादा महर्षि पुलस्त्य एक महान ऋषि थे । रावण के पिता विश्रवा और माता कैकसी थी, जिनके गर्भ से रावण, कुंभकर्ण, विभीषण और शूर्पणखा पैदा हुए थे।

कुंभकर्ण – बलशाली योद्धा और महान तपस्वी

कुंभकर्ण को रामायण में एक विशालकाय और अतुलनीय योद्धा के रूप में दर्शाया गया है। वह अपने अद्वितीय बल, ज्ञान और भक्ति के लिए प्रसिद्ध था।

जन्म और विशेषता

  • कुंभकर्ण रावण का छोटा भाई था, लेकिन वह रावण के बराबर ही बलशाली माना जाता था।
  • उसका शरीर इतना विशाल था कि जब वह चलता था, तो पृथ्वी कांपने लगती थी।
  • वह असाधारण बुद्धिमान भी था और देवताओं से वरदान प्राप्त करने की क्षमता रखता था।

कुंभकर्ण की तपस्या और ब्रह्मा जी का वरदान

कुंभकर्ण ने अपने भाइयों के साथ कठोर तपस्या की और ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया। जब वह वरदान मांगने गया, तो देवता भयभीत हो गए, क्योंकि यदि वह अमरत्व मांग लेता, तो देवताओं के लिए बड़ा संकट उत्पन्न हो जाता।

  • इंद्र के कहने पर सरस्वती जी ने कुंभकर्ण की जिह्वा पर नियंत्रण कर लिया, जिससे वह "इंद्रासन" (इंद्र का सिंहासन) के बजाय "निद्रासन" (सोने का स्थान) मांग बैठा।
  • ब्रह्मा जी ने उसे यह वरदान दिया कि वह छह महीने सोएगा और केवल एक दिन जागेगा।
  • इस वरदान के कारण वह अधिकांश समय निद्रा में ही रहता था और जब जागता था, तो प्रचंड शक्ति के साथ युद्ध करता था।

लंका युद्ध और कुंभकर्ण का अंत

  • जब श्रीराम और रावण के बीच युद्ध हुआ, तो रावण ने कुंभकर्ण को जगाया।
  • कुंभकर्ण ने रावण को धर्म का पालन करने और माता सीता को लौटाने की सलाह दी, लेकिन रावण ने इसे अस्वीकार कर दिया।
  • अपने भाई का साथ निभाने के लिए कुंभकर्ण युद्ध में गया और श्रीराम के साथ भीषण युद्ध किया।
  • अंततः, श्रीराम ने ब्रह्मास्त्र से उसका वध कर दिया।

कुंभकर्ण का चरित्र

  • वह केवल बलशाली नहीं, बल्कि धर्मनिष्ठ और विवेकशील भी था।
  • उसने रावण को उचित सलाह दी, लेकिन भाई-भक्ति के कारण उसके साथ युद्ध में गया।
  • उसकी मृत्यु एक सच्चे योद्धा के रूप में हुई, जिसने अपने कर्तव्यों का पालन किया।

विभीषण – धर्मनिष्ठ और श्रीराम के परम भक्त

विभीषण रावण का सबसे छोटा भाई था, लेकिन उसका स्वभाव राक्षसों से बिल्कुल अलग था। वह अत्यंत धार्मिक और नीति का पालन करने वाला व्यक्ति था।

जन्म और स्वभाव

  • विभीषण बचपन से ही भगवान विष्णु के भक्त थे।
  • उनका स्वभाव सत्यनिष्ठ, शांत और बुद्धिमान था, जो राक्षसों के स्वभाव से बिल्कुल अलग था।

विभीषण की नीति और रामायण में भूमिका

  • जब रावण ने माता सीता का हरण किया, तो विभीषण ने उसे बार-बार चेतावनी दी कि यह अधर्म का कार्य है और श्रीराम से शत्रुता नहीं करनी चाहिए।
  • रावण ने उसकी बातों को अनसुना किया और उसे लंका से निकाल दिया।
  • इसके बाद, विभीषण श्रीराम की शरण में चले गए और राम को लंका युद्ध में महत्वपूर्ण सलाह दी।

लंका का राजा और विभीषण की नीतियाँ

  • जब श्रीराम ने रावण का वध कर दिया, तो उन्होंने विभीषण को लंका का राजा बनाया।
  • विभीषण के शासनकाल में लंका में धर्म और न्याय की स्थापना हुई।
  • उनका नाम आज भी नीति और धर्म के प्रतीक के रूप में लिया जाता है।

विभीषण का चरित्र

  • उन्होंने यह सिद्ध किया कि रक्त संबंधों से बढ़कर धर्म का पालन करना आवश्यक होता है।
  • वे सत्य के प्रतीक माने जाते हैं और श्रीराम की भक्ति के कारण आज भी पूजनीय हैं।

शूर्पणखा – रामायण युद्ध की जड़

  • शूर्पणखा रावण की इकलौती बहन थी, जिसने रामायण के युद्ध की नींव रखी।

स्वभाव और विशेषताएँ

  • वह मायावी शक्तियों से संपन्न थी और किसी भी रूप में बदल सकती थी।
  • वह राक्षसी स्वभाव की थी और युद्ध व छल-कपट में निपुण थी।
  • अपने भाइयों की तरह वह भी शक्ति और विजय की पक्षधर थी।

शूर्पणखा और श्रीराम

  • जब श्रीराम, लक्ष्मण और माता सीता वनवास में थे, तब शूर्पणखा उनकी सुंदरता पर मोहित हो गई।
  • उसने श्रीराम को विवाह का प्रस्ताव दिया, लेकिन श्रीराम ने विनम्रता से मना कर दिया।
  • इसके बाद, उसने लक्ष्मण से विवाह करने की इच्छा जताई, लेकिन लक्ष्मण ने भी इनकार कर दिया।

नाक काटने की घटना और युद्ध की शुरुआत

  • जब शूर्पणखा ने माता सीता पर हमला करने की कोशिश की, तो लक्ष्मण ने क्रोधित होकर उसकी नाक और कान काट दिए।
  • अपमानित होकर वह अपने भाई खर और दूषण के पास गई और उनसे श्रीराम से बदला लेने के लिए कहा।
  • जब खर और दूषण भी श्रीराम द्वारा मारे गए, तो वह रावण के पास गई और उसे माता सीता के सौंदर्य का वर्णन करके उकसाया।
  • इसी कारण रावण ने माता सीता का हरण किया और अंततः यह घटना राम-रावण युद्ध का कारण बनी।

निष्कर्ष

रावण के तीन सगे भाई-बहनों का स्वभाव और उनकी भूमिकाएँ एक-दूसरे से बिल्कुल अलग थीं। इन तीनों की कहानियाँ एक शाश्वत सत्य को दर्शाती हैं - शक्ति बिना विवेक के विनाश लाती है, धर्म का साथ देने से विजय मिलती है, और क्रोध की ज्वाला पूरे साम्राज्य को भस्म कर सकती है। रामायण केवल युद्ध की कथा नहीं, बल्कि जीवन की गूढ़ शिक्षा भी है, और रावण के ये तीन भाई-बहन हमें यह सिखाते हैं कि जीवन में सही निर्णय कितना महत्वपूर्ण होता है। शक्ति, नीति, और प्रतिशोध की इस तिकड़ी ने इतिहास को अमर बना दिया, और उनकी गाथाएँ युगों-युगों तक मानवता का मार्गदर्शन करती रहेंगी।

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Published by Sri Mandir·February 14, 2025

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