
गुरु पादुका स्तोत्रम् के पाठ से साधक को ज्ञान, भक्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह स्तोत्र गुरु के प्रति श्रद्धा और समर्पण को प्रकट करता है तथा जीवन में अज्ञान, भय और बाधाओं का नाश करता है। जानिए इसका सम्पूर्ण पाठ और महत्व।
गुरु पादुका स्तोत्रम् आदि शंकराचार्य द्वारा रचित एक अत्यंत पवित्र स्तोत्र है, जो गुरु के चरणों की महिमा का वर्णन करता है। इसका पाठ श्रद्धा और विनम्रता से करने पर ज्ञान, भक्ति, और जीवन में सफलता की प्राप्ति होती है। यह स्तोत्र साधक को अज्ञानता से मुक्त कर आत्मज्ञान की ओर प्रेरित करता है। इस लेख में जानिए गुरु पादुका स्तोत्रम् का महत्व और इसके पाठ से मिलने वाले लाभ।
हिंदू धर्म में व्यक्ति के जीवन में गुरु की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। सनातन धर्म के ग्रंथों में भी गुरु और भगवान में गुरु को सबसे पहले पूजनीय बताया गया है। गुरु ही व्यक्ति को सत्य मार्ग का रास्ता दिखाते हैं। जीवन में उनके आशीर्वाद से ही व्यक्ति को सफलता मिलती है। ऋषि संदीपन के शिष्य भगवान कृष्ण और विश्वामित्र के शिष्य भगवान राम अपने गुरु के बताए रास्ते पर चलकर एक महान व्यक्ति बने और भगवान के जैसे पूजनीय बने। इसलिए गुरु हमेशा पूजनीय होता है।
गुरुओं की वंदना करने के लिए हिन्दू धर्म में कई सारे मंत्र और स्तोत्र लिखे गए हैं, लेकिन 'श्री गुरु पादुका स्तोत्रम्' का अपना अलग महत्व है। महान दार्शनिक एवं धर्म प्रवर्तक श्री आदि शंकराचार्य द्वारा रचित 'श्री गुरु पादुका स्तोत्रम्' को गुरु की आराधना के लिए सर्वोत्तम बताया जाता है, ऐसा कहा जाता है की इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से गुरु जल्दी प्रसन्न होते हैं और उनका आशीर्वाद मिलता है। पढ़ाई करने वाले सभी बच्चों को गुरु का ध्यान करके स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। अगर व्यक्ति की कुंडली में गुरु दोष है तो गुरु पादुका स्तोत्रम् का जाप करना चाहिए। इससे गुरु से संबंधित दोष ठीक हो जाते हैं। गुरु पादुका स्तोत्र का जाप करने से भाग्योदय होता है।
श्री गुरु पादुका स्तोत्रम् एक सुंदर प्रार्थना और मंत्रमुग्ध करने वाले मंत्रों का समूह है, जो "गुरु के स्वरूप" की महिमा के बारे बताता है। गुरु पादुका स्तोत्रम में गुरु की पादुका को प्रतीकात्मक रूप से 'जीवन के अंतहीन सागर को पार करने में मदद करने वाली नाव' के रूप में दर्शाया जाता है। श्री गुरु पादुका स्तोत्र न केवल व्यक्ति की रक्षा करता है बल्कि साधक को वैराग्य और वैराग्य के दायरे में स्थापित करने में मदद करता है। यह मंत्र सुनने वालों को गुरु की कृपा के प्रति ग्रहणशील बनने में सक्षम बनाएगा। गुरु पादुका स्तोत्रम् का पाठ करने से पढ़ाई में आ रही बाधा दूर हो जाती है।
अनंतसंसार समुद्रतार नौकायिताभ्यां गुरुभक्तिदाभ्याम् । वैराग्यसाम्राज्यदपूजनाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ 1 ॥
अर्थ - मेरे गुरु की पादुकाओं को नमस्कार, जो एक नाव है, जो मुझे जीवन के अनंत सागर को पार करने में मदद करती है, जो मुझे मेरे गुरु के प्रति समर्पण की भावना प्रदान करती है, और जिनकी पूजा से मुझे त्याग का प्रभुत्व प्राप्त होता है।
कवित्ववाराशिनिशाकराभ्यां दौर्भाग्यदावां बुदमालिकाभ्याम् । दूरिकृतानम्र विपत्ततिभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ 2 ॥
अर्थ - मेरे गुरु की पादुकाओं को नमस्कार, जो ज्ञान का सागर है, पूर्णिमा के चंद्रमा के समान है, जो जल है, जो दुर्भाग्य की आग को बुझा देता है और जो उसके सामने झुकने वालों के संकटों को दूर कर देता है। नता ययोः श्रीपतितां समीयुः कदाचिदप्याशु दरिद्रवर्याः।
मूकाश्र्च वाचस्पतितां हि ताभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ 3 ॥
अर्थ - मेरे गुरु की पादुकाओं को नमस्कार, जो उसके सामने झुकने वालों को महान धन का स्वामी बनाती हैं, भले ही वे बहुत गरीब हो और जो गूंगे लोगों को भी महान वक्ता बनाती हैं।
नालीकनीकाश पदाहृताभ्यां नानाविमोहादि निवारिकाभ्यां । नमज्जनाभीष्टततिप्रदाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ 4 ॥
अर्थ - मेरे गुरु की चरण पादुकाओं को नमस्कार, जो हमें आकर्षित करती हैं, हमारे गुरु के कमल जैसे चरणों की ओर, जो हमें अवांछित इच्छाओं से मुक्ति दिलाती हैं और जो नमस्कार करने वालों की इच्छाओं को पूरा करने में मदद करती हैं।
नृपालि मौलिव्रजरत्नकांति सरिद्विराजत् झषकन्यकाभ्यां । नृपत्वदाभ्यां नतलोकपंकते: नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ 5 ॥
अर्थ - मेरे गुरु के पादुकाओं को नमस्कार, जो राजा के मुकुट पर रत्नों की तरह चमकते हैं, जो मगरमच्छ से भरे झरने में दासी की तरह चमकते हैं और जो भक्तों को राजा का दर्जा दिलाते हैं।
पापांधकारार्क परंपराभ्यां तापत्रयाहींद्र खगेश्र्वराभ्यां । जाड्याब्धि संशोषण वाडवाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ 6 ॥
अर्थ - मेरे गुरु के पादुकाओं को नमस्कार, जो सूर्य की श्रृंखला के समान है, अंधकारमय पापों को दूर कर रहे हैं, जो बाजों के राजा के समान हैं, जो दु:खों के नाग को दूर कर रहे हैं, और जो भयानक अग्नि के समान अज्ञान के सागर को सुखा रहे हैं।
शमादिषट्क प्रदवैभवाभ्यां समाधिदान व्रतदीक्षिताभ्यां । रमाधवांध्रिस्थिरभक्तिदाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ 7 ॥
अर्थ - मेरे गुरु की पादुकाओं को नमस्कार, जो हमें शम जैसे गौरवशाली छह गुणों से संपन्न करती हैं, जो छात्रों को शाश्वत समाधि में जाने की क्षमता देती है और जो विष्णु के चरणों में शाश्वत भक्ति प्राप्त करने में मदद करती हैं।
स्वार्चापराणां अखिलेष्टदाभ्यां स्वाहासहायाक्षधुरंधराभ्यां । स्वांताच्छभावप्रदपूजनाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ 8 ॥
अर्थ - मेरे गुरु की पादुकाओं को नमस्कार, जो सेवा करने वाले शिष्यों की सभी इच्छाओं को पूरा करती हैं, जो हमेशा सेवा का बोझ उठाने में शामिल रहती हैं और जो साधकों को प्राप्ति स्थिति में मदद करती हैं।
कामादिसर्प व्रजगारुडाभ्यां विवेकवैराग्य निधिप्रदाभ्यां । बोधप्रदाभ्यां दृतमोक्षदाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ 9 ॥
अर्थ - मेरे गुरु की पादुकाओं को नमस्कार जो गरुड़ हैं, जो जूनून के सांप को दूर भगाते हैं, जो ज्ञान और त्याग का खजाना प्रदान करते हैं, जो व्यक्ति को प्रबुद्ध ज्ञान का आशीर्वाद देते हैं और साधक को शीघ्र मोक्ष का आशीर्वाद देते हैं।
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