ऋण मोचक मङ्गल स्तोत्रम् (Rin Mochan Mangal Stotra)
ऋणमोचक मंगल स्तोत्र हनुमान जी को समर्पित स्तोत्र है। इस स्त्रोत के नियमित पाठ से केवल हनुमान जी ही प्रसन्न नहीं होते बल्कि साधक को राम जी की कृपा भी प्राप्त हो जाती है। जो लोग लम्बे समय से कर्ज में दबे हुए हैं उनके लिए भी यह स्त्रोत बहुत ही फलदायी होता है। यह स्त्रोत जल्द ही कर्ज मुक्ति दिलाता है। आर्थिक संकटों से मुक्ति पाने के लिए भी इस स्त्रोत का पाठ किया जा सकता है।
ऋण मोचक मङ्गल स्तोत्र का महत्व (Importance of Rin Mochan Mangal Stotra)
ऋणमोचक मंगल स्तोत्र व्यक्ति के जीवन में बहुत अधिक महत्त्व रखता है। इस स्त्रोत का पाठ मंगलवार के दिन या फिर प्रतिदिन भी कर सकते हैं। प्रातः काल जल्दी उठकर शुद्ध होकर इस स्त्रोत का पाठ करना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति इस पाठ की शुरुआत करना चाहता है तो उसे मंगलवार दिन से स्त्रोत का पाठ शुरू करने का नियम लेना चाहिए।
ऋण मोचक मङ्गल स्तोत्र पढ़ने के फायदे (Benefits of reading Rin Mochan Mangal Stotra)
यदि कोई व्यक्ति बहुत अधिक कर्ज में डूबा हुआ है तो उसे इस स्त्रोत का पाठ नियमित रूप से करना चाहिए। ऐसा करने से कर्ज धीरे धीरे करके कम होना शुरू हो जाता है।
जो लोग आर्थिक रूप से मजबूत बनना चाहते है वह भी स्त्रोत का नित्य पाठ कर हनुमान जी की कृपा प्राप्त कर सकते हैं।
मंगल दोष के मुक्ति पाने हेतु भी इस स्त्रोत का पाठ किया जाता है।
इस स्त्रोत का पाठ करने से हनुमान जी भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।
ऋण मोचक मङ्गल स्तोत्र का हिंदी अर्थ (Hindi meaning of Rin Mochan Mangal Stotra)
मङ्गलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रदः।
स्थिरासनो महाकयः सर्वकर्मविरोधकः।।1।।
अर्थात- हे मंगलदेव जी ! आपके जो नाम शास्त्रों में वर्णित है, उनमे से पहला नाम मंगल, दूसरा नाम भूमिपुत्र , तीसरा नाम ऋण हर्ता, चौथा नाम धनप्रद, पाँचवा नाम स्थिरासन, छठा नाम महाकाय, सातवां नाम सर्वकमारोधक समस्त तरह के कार्य की बाधा को हटाने वाले होते हैं।
लोहितो लोहिताक्षश्च सामगानां कृपाकरः। धरात्मजः कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दनः॥2॥
अर्थात - हे मंगलदेव जी! आपके नामों में आठवाँ नाम लोहित, नवा नाम लोहितांग, दशवा नाम सामगाना, कृपाकर यानि सामग ब्राह्मणों के ऊपर अपनी कृपा दृष्टि को रखने वाले, ग्यारहवा नाम घरात्मज यानि पृथ्वी के गर्भ से उत्पन्न, बारहवां नाम कुज, तेहरवा नाम भौम, चौदहवाँ नाम भूतिद यानी कि ऐश्वर्य को देने वाले, पन्द्रहवां नाम भूमिनन्दन अर्थात् पृथ्वी को आनन्द देने वाले।
अङ्गारको यमश्चैव सर्वरोगापहारकः । दृष्टे कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रदः ॥3॥
अर्थात - हे मंगलदेव जी! आपके नामों में सोलहवाँ नाम अंगारक, सत्रवां नाम यम, अठहरवा नाम सर्व रोगापहारक यानि समस्त तरह की व्याधियों को दूर करने वाले, उन्नीसवाँ नाम वृष्टिकर्ता अर्थात् दृष्टि करने वाले या फिर वर्षा के जल को कराने वाले, बीसवाँ नाम वृष्टिर्ता अर्थात् दृष्टिकोन कर अकाल डालने वाले और इक्कीसवाँ नाम सर्वकामफलप्रद अर्थात् सम्पूर्ण कामनाओं के फल को देने वाले होते हैं।
एतानि कुजनामानि नित्यं यः श्रद्धया पठेत्। ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्नुयात् ।।4।।
अर्थात- जो मनुष्य मंगलदेव के उपर्युक्त बताए गए इक्कीस नाम का वांचन सच्चे मन से एवं विश्वास से करते हैं, उन मनुष्य को ऋण कर्ज नहीं होता है और उन मनुष्य को धन की प्राप्ति जल्दी हो जाती है।
धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्ति-समप्रभम्। कुमारं शक्तिहरतं च मङ्गलं प्रणमाम्यहम्।।5।।
अर्थात - हे अंगारक आप की उत्पत्ती पृथ्वी के गर्भ से हुई हैं, आपकी आभा तो आकाश में कड़कने वाली दामिनी के समान होती हैं, समस्त तरह की शक्ति को धारण करने वाले कुमार मंगलदेव को नतमस्तक होकर अभिवादन करता हूँ।
स्तोत्रमङ्गारकस्येतत् पठनीयं सदा नृभिः । न तेषी भीमजा पीड़ा स्वल्पाऽपि भवति कचित्।।6।।
अर्थात- हे मंगलदेवजी आपके मंगल स्तोत्र का पाठ मनुष्यों को हमेशा अपने मन में किसी भी तरह के विकार से एवं अपनी पूर्ण श्रद्धा एवं आस्था से नियमित रूप करना चाहिए। जो भी मनुष्य इस मंगल स्तोत्र का पाठ करते हैं और दूसरों को सुनाते हैं, उनको मंगल से प्राप्त विपत्ति की थोड़ी सी पीड़ा नहीं होती है। अङ्गारक महाभाग भगवन्भक्तवत्सल। त्वां नमामि ममाशेषगुणमाथ विनाशय ।।7।।
अर्थात- हे अंगारक अर्थात् अग्नि की ज्वाला से जलने वाले महाभाग अर्थात् पूजनीय हो, भगवान या ऐश्वर्यशाली, भक्तों के प्रति वात्सल्य या प्रेम रखने वाले भौम आपको हम नतमस्तक होकर अभिवादन करते हैं। आप हमारे ऊपर किसी दूसरे से लिया हुआ उधार को पूर्ण करवा कर उस कर्ज को सदैव के लिए दूर कीजिए।
ऋणरोगादि-दारिद्रये ये चाऽन्ये हापमृत्यवः । भय-क्लेश-मनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा ।।8।।
अर्थात- हे मंगलदेव! मेरे ऊपर किसी दूसरे का कोई बकाया को समाप्त कीजिए, किसी भी तरह की व्याधि हो तो उसको भी दूर कीजिए। मेरी गरीबी को दूर कीजिए एवं अकति मृत्यु को दूर कीजिए। मुझे किसी भी तरह का डर, क्लेश तथा मन में दुःख हो तो उसे भी हमेशा के लिए दूर कीजिए।
अतिवक्त्र दुरारार्ध्य भोगमुक्त जितात्मनः। तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुश्टो हरसि तत्ख्शणात्॥9॥
अर्थात- हे मंगलदेवा आप बहुत ही टेढ़ी प्रकृति को, आपको सन्तुष्ट करना बहुत ही कठिन होता है, आप तो मुश्किल से प्रसन्न होने वाले भगवान मंगल देव, आप जब किसी पर अपनी कृपा की बारिश करते हो तो उसको सभी तरह के सुख-समृद्धियों से युक्त सार्वभौम सत्ता दे सकते हो, आप जब किसी पर नाराज होते हो तब उसकी सार्वभौम सत्ता को तहस-नहस करके समाप्त कर देते हो।
विरिच एक विष्णूना मनुष्याणां तु का कथा। तेन त्वं सर्वसत्त्वेन ग्रहराजी महाबलः ।।10।।
अर्थात- हे महाराजा आप जब भी किसी से अप्रसन्न होते है, तब किसी पर भी अपनी अनुकृपा दृष्टि से हीन कर देते हो। आप नाखुश होने पर ब्रह्माजी, इन्द्र देव एवं विष्णुजी के भी साम्राज्य-सम्पत्ति को नष्ट कर सकते हो फिर मेरे जैसे मनुष्य की तो बात ही क्या है। इस तरह के शोर्य से सम्मिलित होने के कारण आप सबसे शक्तिशाली तथा सबसे बड़े राजा हो।
पुत्रान् देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गताः। ऋणदारिद्र्यदुःखेन शत्रूणां च भयात्ततः।।11।।
अर्थात- हे भगवन! आप से अरदास करता हूँ कि आप मुझे सन्तान के रूप में पुत्र प्रदान करें, में आपके द्वार पर आया हूँ आप मेरी मनोकामना को पूर्ण करे। किसी तरह से भी मेरे ऊपर किसी दूसरे द्वारा उधार लिया हुआ धन नहीं रहे, मुझे दूसरों के आगे हाथ फैलाना नहीं पड़े, मेरी गरीबी को दूर कीजिए, मेरे समस्त कष्ट या क्लेश को दूर कीजिए और जो मेरे दुश्मन बन चुके हैं उनके डर से मुझे आप मुक्त कराएं।
एभिर्द्वादश तोकेयः स्तीति च परासुतम्। महती श्रियमाप्नोति ह्यपरो धनदो युवा ।।12।।
अर्थात- जो भी मनुष्य इन बारह श्लोकों वाले ऋण मोचन मंगल स्तोत्र से भीम ग्रह की वंदना करते हैं, उन मनुष्य पर मंगल भगवान खुश होकर उस मनुष्य को बहुत ही ज्यादा मात्रा में रुपये पैसों को प्रदान कराते हैं, वह मनुष्य जिससे इस पृथ्वी लोक में सबसे ज्यादा रुपये पैसों से परिपूर्ण होकर सभी तरह के सुख-सम्पत्ति को प्राप्त करके दूसरे कुबेर भगवान की भाँति धन-संपत्ति का स्वामी बन जाता है और वह मनुष्य उम्र अधिक होने पर भी हमेशा युवा बना रहता है उस पर आयु का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
**|| इति श्री ऋणमोचक मङ्गलस्तोत्रम् सम्पूर्णम् ||**