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श्री संकष्टनाशन स्तोत्रम्

श्री संकष्टनाशन स्तोत्रम्

अर्थ के साथ संकटनाशन गणेश स्तोत्र


श्री संकटनाशन गणेश स्तोत्र

श्री संकटनाशन गणेश स्तोत्र का वर्णन नारद पुराण के साथ-साथ गणेश पुराण में भी हुआ है। नारद पुराण में नारद जी के द्वारा जबकि गणेश पुराण में देवताओं के द्वारा गणेश जी की स्तुति की गयी है।

पाठकों की सुविधा के लिए दोनों ही संस्करण हिंदी अर्थ के साथ उपलब्ध किया गया है, आशा है पाठक इसका लाभ जरूर उठाएंगे।

लेख में-

  1. श्री संकटनाशन गणेश स्तोत्र पाठ की विधि।
  2. श्री संकटनाशन गणेश स्तोत्र से लाभ।
  3. श्री संकटनाशन गणेश स्तोत्र एवं अर्थ।

1. श्री संकटनाशन गणेश स्तोत्र पाठ विधि:

  • जातक को सुबह स्नान करने के बाद भगवान गणेश की मूर्ति या तस्वीर के सामने बैठ कर संकटनाशन गणेश स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
  • इस स्तोत्र के पाठ की विधि अत्यंत सरल है। इस स्तोत्र को सुबह, दोपहर और शाम - तीनों समय प्रतिदिन पाठ किया जा सकता है।

2. श्री संकटनाशन गणेश स्तोत्र पाठ से लाभ:

  1. संकटनाशन गणेश स्तोत्र का नियमित पाठ करने से जातक को शांति मिलती है और जीवन से सभी प्रकार की बुराइयां दूर होती है।
  2. इस स्तोत्र के पाठ से स्वास्थ्य लाभ के साथ धन की वृद्धि होती है। मनुष्य भयमुक्त होता है।
  3. इस स्तोत्र के नित्य पठन से छह महीने में मनुष्य को इच्छित फल की प्राप्ति होती है।
  4. विद्यार्थी को विद्या तथा धन की कामना रखने वाले को धन और पुत्र की कामना रखने वालों को पुत्र की प्राप्ति होती है।
  5. एक साल तक नियमित पाठ करने से मनुष्य सिद्धि को प्राप्त कर लेता है।

3. श्री संकटनाशन गणेश स्तोत्र एवं अर्थ:

संकटनाशन गणेश स्तोत्

श्री गणेशाय नमः॥

अर्थ: श्री गणेश को मेरा प्रणाम है।

नारद उवाच,
प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम्।
भक्तावासं स्मरेन्नित्यमायुःकामार्थसिद्धये॥

अर्थ:
नारद जी कहते हैं- पहले मस्तक झुकाकर गौरीपुत्र विनायका देव को प्रणाम करके प्रतिदिन आयु, अभीष्ट मनोरथ और धन आदि प्रयोजनों की सिद्धि के लिए भक्त के हृदय में वास करने वाले गणेश जी का स्मरण करें ।

प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम्।
तृतीयं कृष्णपिङ्गाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम्॥

लम्बोदरं पञ्चमं च षष्ठं विकटमेव च।
सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्णं तथाष्टमम्॥

नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम्।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम्॥

अर्थ:
जिनका पहला नाम ‘वक्रतुण्ड’ है, दूसरा ‘एकदन्त’ है, तीसरा ‘कृष्णपिङ्गाक्षं’ है, चौथा ‘गजवक्त्र’ है, पाँचवाँ ‘लम्बोदर’, छठा ‘विकट’, सातवाँ ‘विघ्नराजेन्द्रं’, आठवाँ ‘धूम्रवर्ण’, नौवां ‘भालचंद्र’, दसवाँ ‘विनायक’, ग्यारहवाँ ‘गणपति’, और बारहवाँ नाम ‘गजानन’ है।

द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्यं यः पठेन्नरः।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो॥

अर्थ:
जो मनुष्य सुबह, दोपहर और शाम-तीनों समय प्रतिदिन इन बारह नामों का पाठ करता है, उसे संकट का भय नहीं होता। यह नाम-स्मरण उसके लिए सभी सिद्धियों का उत्तम साधक है।

विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम्॥

अर्थ:
इन नामों के जप से विद्यार्थी को विद्या, धन की कामना रखने वालों को धन, पुत्र की कामना रखने वालों को पुत्र और मोक्ष की कामना रखने वालो को मोक्ष में गति प्राप्त हो जाती है।

जपेद्गणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासैः फलं लभेत्।
संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशयः॥

अर्थ:
इस गणपति स्तोत्र का नित्य जप करें। इसके नित्य पठन से जपकर्ता को छह महीने में अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। एक वर्ष तक जप करने से मनुष्य सिद्धि को प्राप्त कर लेता है, इसमें संशय नहीं है।

अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा यः समर्पयेत्।
तस्य विद्या भवेत् सर्वा गणेशस्य प्रसादतः॥

अर्थ:
जो इस स्तोत्र को भोजपत्र पर लिखकर आठ ब्राह्मणों को दान करता है, गणेश जी की कृपा से उसे सम्पूर्ण विद्या की प्राप्ति होती है।

॥ इति श्री नारदपुराणं संकटनाशनं महागणपति स्तोत्रम् संपूर्णम्॥

संकटनाशन स्तोत्र में गणेश जी के 12 नामों का उल्लेख मिलता है। इस स्तोत्र का जो भी विधिपूर्वक पाठ करता है, उसकी हर इच्छा पूरी होती है। यह संकट को हरने वाला स्तोत्र है। इस स्तोत्र को विघ्ननाशक गणेश स्तोत्र भी कहते हैं।

संकटनाशन स्तोत्र संसार में सर्वप्रथम पूजनीय भगवान श्री गणेश को समर्पित सबसे प्रभावशाली नारद जी द्वारा कथन किया हुआ स्तोत्र है। इसे सबसे पहले श्री नारद जी ने सुनाया है।

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