
श्री संकष्टनाशन स्तोत्रम्: दुखों और बाधाओं से मुक्ति दिलाने वाला अद्भुत स्तोत्र। इस आर्टिकल में आप जानेंगे श्री गणेश जी को समर्पित संकष्टनाशन स्तोत्र का पूरा पाठ, इसका महत्व, पाठ विधि और इससे मिलने वाले चमत्कारिक लाभ।
श्री संकष्टनाशन स्तोत्रम् भगवान गणेश को समर्पित वो प्यारा स्तोत्र है, जो हमारे जीवन की मुश्किलों और बाधाओं को दूर करने में मदद करता है। “संकष्ट” मतलब कष्ट और “नाशन” यानी उसे खत्म करने वाला। इस स्तोत्र में गणेश जी की उन दिव्य खूबियों का वर्णन है, जिनसे वे अपने भक्तों के दुख हर लेते हैं। इसे रोज पढ़ने से मन को शांति, घर में सुख-समृद्धि और हर काम में सफलता मिलती है। खासकर संकष्टी चतुर्थी पर इसका पाठ बहुत शुभ माना जाता है।
कहा जाता है, जो भी श्रद्धा से इस स्तोत्र का पाठ करता है, उसके जीवन की मुश्किलें खुद-ब-खुद दूर होने लगती हैं। गणेश जी उसके सारे विघ्न हर लेते हैं और मन में अटूट भरोसा व शांति भर देते हैं। चाहे काम में अड़चनें हों या मन में डर, इस स्तोत्र का जप सुख-समृद्धि और सफलता की राह आसान कर देता है।
संकट नाशन गणेश स्तोत्र के नियम बहुत कठिन नहीं हैं। यदि संकट नाशन गणेश स्तोत्र का पाठ पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ करें तो इसका फल शुभ होता है। संकट नाशन गणेश स्तोत्र का पाठ आप किसी भी दिन से शुरू कर सकते हैं, लेकिन यदि इसे शुक्ल पक्ष के बुधवार से शुरू करें तो यह और भी शुभ माना जाता है। पाठ की शुरुआत वाले दिन प्रातःकाल जल्दी उठें। इसके बाद स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें और भगवान गणेश की प्रतिमा या चित्र को स्थापित कर दें। फिर धूप, दीप, फल-फूल, मिठाई आदि अप्रित करें। इन सब कार्य के बैद संकट नाशन स्तोत्र का पाठ करना शुरू करें। पाठ के बाद भगवान से संकटों से मुक्ति के लिए प्रार्थना करें। पूरे नियम, भक्ति और निष्ठा के साथ इस स्तोत्र का पाठ करने से जीवन में आ रही परेशानियां दूर हो जाती हैं।
संकटों से मुक्ति: संकट नाशन गणेश स्स्तोत्र जीवन में आने वाले सभी प्रकार के कष्टों, बाधाओं और परेशानियों को दूर करता है।
मानसिक शांति: इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से तनाव, चिंता और भय दूर होते हैं।
स्वास्थ्य में सुधार: ॉह स्तोत्र मानसिक और शारीरिक रूप से व्यक्ति मजबूत और स्वस्थ महसूस करता है।
धन-समृद्धि का आगमन: संकट नाशन गणेश स्तोत्र पढ़ने से घर में लक्ष्मी का वास होता है और आर्थिक स्थिति मजबूत होती है।
विद्यार्थियों को विशेष लाभ: अघर विध्यार्थी इस स्तोत्र को नियमिक पढ़ते हैं को उनकी बुद्धि और एकाग्रता बढ़ती है, जिससे पढ़ाई में उन्हें सफलता मिलती है।
संतान प्राप्ति में सहायक: संतान की इच्छा रखने वाले दंपतियों को इसका विशेष लाभ मिलता है।
नकारात्मक ऊर्जा का नाशः यह स्तोत्र बुरी शक्तियों और बुरी नजर से रक्षा करता है।
घर में सुख-शांति: संकट नाशन गणेश स्तोत्र का रोजाना पाठ करने से परिवारिक जीवन में सौहार्द और शांति बनी रहती है।
श्री गणेशाय नमः॥
अर्थ: श्री गणेश को मेरा प्रणाम है।
नारद उवाच, प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम्। भक्तावासं स्मरेन्नित्यमायुःकामार्थसिद्धये॥
अर्थ: नारद जी कहते हैं- पहले मस्तक झुकाकर गौरीपुत्र विनायका देव को प्रणाम करके प्रतिदिन आयु, अभीष्ट मनोरथ और धन आदि प्रयोजनों की सिद्धि के लिए भक्त के हृदय में वास करने वाले गणेश जी का स्मरण करें ।
प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम्। तृतीयं कृष्णपिङ्गाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम्॥ लम्बोदरं पञ्चमं च षष्ठं विकटमेव च। सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्णं तथाष्टमम्॥ नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम्। एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम्॥
अर्थ: जिनका पहला नाम ‘वक्रतुण्ड’ है, दूसरा ‘एकदन्त’ है, तीसरा ‘कृष्णपिङ्गाक्षं’ है, चौथा ‘गजवक्त्र’ है, पाँचवाँ ‘लम्बोदर’, छठा ‘विकट’, सातवाँ ‘विघ्नराजेन्द्रं’, आठवाँ ‘धूम्रवर्ण’, नौवां ‘भालचंद्र’, दसवाँ ‘विनायक’, ग्यारहवाँ ‘गणपति’, और बारहवाँ नाम ‘गजानन’ है।
द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्यं यः पठेन्नरः। न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो॥
अर्थ: जो मनुष्य सुबह, दोपहर और शाम-तीनों समय प्रतिदिन इन बारह नामों का पाठ करता है, उसे संकट का भय नहीं होता। यह नाम-स्मरण उसके लिए सभी सिद्धियों का उत्तम साधक है।
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्। पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम्॥
अर्थ: इन नामों के जप से विद्यार्थी को विद्या, धन की कामना रखने वालों को धन, पुत्र की कामना रखने वालों को पुत्र और मोक्ष की कामना रखने वालो को मोक्ष में गति प्राप्त हो जाती है।
जपेद्गणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासैः फलं लभेत्। संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशयः॥
अर्थ: इस गणपति स्तोत्र का नित्य जप करें। इसके नित्य पठन से जपकर्ता को छह महीने में अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। एक वर्ष तक जप करने से मनुष्य सिद्धि को प्राप्त कर लेता है, इसमें संशय नहीं है।
अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा यः समर्पयेत्। तस्य विद्या भवेत् सर्वा गणेशस्य प्रसादतः॥
अर्थ: जो इस स्तोत्र को भोजपत्र पर लिखकर आठ ब्राह्मणों को दान करता है, गणेश जी की कृपा से उसे सम्पूर्ण विद्या की प्राप्ति होती है।
॥ इति श्री नारदपुराणं संकटनाशनं महागणपति स्तोत्रम् संपूर्णम्॥
संकटनाशन स्तोत्र में गणेश जी के 12 नामों का उल्लेख मिलता है। इस स्तोत्र का जो भी विधिपूर्वक पाठ करता है, उसकी हर इच्छा पूरी होती है। यह संकट को हरने वाला स्तोत्र है। इस स्तोत्र को विघ्ननाशक गणेश स्तोत्र भी कहते हैं।
संकटनाशन स्तोत्र संसार में सर्वप्रथम पूजनीय भगवान श्री गणेश को समर्पित सबसे प्रभावशाली नारद जी द्वारा कथन किया हुआ स्तोत्र है। इसे सबसे पहले श्री नारद जी ने सुनाया है।
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