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बलराम जयंती व्रत कथा

बलराम जयंती के दिन व्रत और पूजन करने से मिलती है बल-पराक्रम और सुख-समृद्धि की प्राप्ति! जानें व्रत कथा और विधि।

पौराणिक कथा के अनुसार, बलराम जी का जन्म पृथ्वी पर धर्म की स्थापना और अधर्म के नाश के लिए हुआ था। उनकी कथा हमें परिश्रम, निष्ठा और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है। आइए उनसे जुड़ी दिलचस्प कथा को विस्तार से जानते हैं।

बलराम जयंती की व्रत कथा

बहुत समय पहले की बात है, एक गर्भवती ग्वालिन हुआ करती थी, जो दूध बेचकर अपना जीवन यापन करती थी। उस ग्वालिन का प्रसवकाल निकट आ चुका था, इसलिए उसे आवाजाही करने में बहुत कठिनाई होती थी। परंतु यदि वह दूध नहीं बेचेगी, तो उसकी गृहस्थी का गुज़ारा किस प्रकार हो पाएगा? यही सोचकर वह ग्वालिन, ऐसी अवस्था में भी दूर-दूर तक दूध बेचने जाया थी।

एक दिन, जब ग्वालिन दूध बेचने के लिए निकली, तो बीच रास्ते में उसे असहनीय प्रसव पीड़ा होने लगी। एक तरफ़ ग्वालिन अपनी पीड़ा से व्याकुल थी। वहीं दूसरी तरफ़, वह अपने मन ही मन इस सोच में डूब गई थी, कि अगर प्रसव हो गया, तो आज का दूध बेकार चला जाएगा। अगर दूध बेकार चला गया, तो उसे पैसे नहीं मिलेंगे, और उसकी गृहस्थी का गुज़ारा नहीं हो पाएगा। यह सब सोचते हुए, ग्वालिन धीरे-धीरे आगे बढ़ी, लेकिन कुछ दूर जाते ही, उसको प्रसव पीड़ा होने लगी। जिसके बाद उसने वहीं पास में एक झाड़ी के पीछे अपने बच्चे को जन्म दिया।

उस ग्वालिन ने एक बालक को जन्म दिया और उस नवजात को, उसी झाड़ी के पास सुलाकर, पुनः दूध बेचने के लिए निकट के एक गाँव पहुंची। वहाँ पहुंचते ही ग्वालिन ने देखा, कि सम्पूर्ण गाँव उत्सव मग्न हुआ पड़ा है। तभी ग्वालिन को आभास हुआ, कि यह तैयारियां हल षष्ठी के व्रत की हैं। अब ग्वालिन मन ही मन यह सोचने लगी, कि हल षष्ठी के दिन तो कोई भी गाय के दूध का उपयोग नहीं करता, तो इस कारण उस गाँव में भी कोई उसका लाया दूध नहीं खरीदेगा। अगर उस गाँव में उसका दूध नहीं बिका, तो उसका आज का सारा दूध बेकार हो जाएगा।

अंत में थोड़ा सोच-विचार कर, उसने सभी गाँव वालों से झूठ कह दिया, कि वह गाय का नहीं, बल्कि भैंस का दूध बेचने आई है। फिर क्या था, गाँववालों ने उससे उसका लाया सारा दूध, एक पल में ही खरीद लिया। इधर, जिस झाड़ी के सामने ग्वालिन ने अपने बच्चे को सुला रखा था, उसके निकट एक खेत था, जहाँ एक किसान हल चलाकर उसे जोत रहा था। अचानक से उसके बैल भड़क गए और किसान का हल, उस नवजात शिशु की छाती पर जा लगा, और उसकी मृत्यु हो गई।

जब ग्वालिन वहाँ आई, तो अपने नवजात शिशु को मृत पाकर, उसका कलेजा कांप उठा। वह झट से समझ गई, कि यह उसके पापों का ही फल है। तब ग्वालिन को लगा, कि उसे तुरंत ही गाँववालों के पास जाकर, उन्हें सच्चाई बता देनी चाहिए। ऐसा सोचकर, वह ग्वालिन फिर एक बार उस गाँव की तरफ़ गई और वहाँ जाकर, सभी को दूध की सच्चाई बताते हुए, उनसे क्षमा याचना करने लगी। ग्वालिन को इस तरह से रोता-बिलखता देख, गाँववालों को उस पर दया आई, और उन्होंने ग्वालिन को क्षमा कर दिया।

गाँववालों से क्षमा पाकर जब ग्वालिन, फिर एक बार झाड़ी के पास पहुंची, तो जो दृश्य उसने देखा, वह देखकर मानो उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ। ग्वालिन ने देखा, कि उसका नवजात बालक जीवित हो गया है और बिल्कुल स्वस्थ है। तब उसने माँ षष्ठी से अपने कुकर्म के लिए क्षमा मांगी, और फिर कभी झूठ ना बोलने का प्रण लिया।

तो हल षष्ठी व्रत से जुड़ी व्रत कथा यहीं समाप्त होती है। आशा करते हैं, कि माँ षष्ठी और भगवान बलराम की कृपा आप पर सदा बनी रहे।

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Published by Sri Mandir·February 19, 2025

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