देवुत्थान एकादशी व्रत कथा (Devutthana Ekadashi व्रत कथा )
एक समय की बात है, एक वैभवशाली राज्य में बहुत ही न्यायप्रिय और धर्मनिष्ठ राजा राज करते थे। उस राज्य में पूरी प्रजा अपने राजा से बहुत खुश थी और राज्य के लिए बनाए गए नियमों का पालन करती थी। चूँकि राजा बहुत धार्मिक थे और भगवान विष्णु के परम भक्त भी थे, इसीलिए वहां का एक विशेष नियम यह था कि पूरे वर्ष में आने वाली हर एकादशी के दिन उस राज्य का हर व्यक्ति व्रत का पालन करता था और इस दिन अन्न तथा किसी भी तरह के तामसिक भोजन का सेवन वहां वर्जित था।
भगवान विष्णु राजा के पूजा और अनुष्ठानों से बहुत प्रसन्न थे, फिर भी उन्होंने एक बार राजा की परीक्षा लेने का मन बनाया।
एक दिन राजा अपने रथ में बैठकर नगर भ्रमण के लिए निकले, तब उन्हें रास्ते में सड़क के किनारे एक बहुत ही सुन्दर स्त्री बैठी दिखाई थी। वह स्त्री और कोई नहीं बल्कि भगवान विष्णु थे, जो राजा की परीक्षा लेने के लिए वहां स्त्री रूप में बैठे थे। राजा ने अपने रथ को रुकवाया और उस स्त्री के पास गए। इतनी सुन्दर स्त्री को देखकर राजा उसपर मोहित हो गए और उनसे अपने महल में एक रानी के रूप में चलने का निवेदन किया। स्त्री ने कहा कि ‘मैं आपके साथ महल में आपकी रानी बनकर चलने के लिए तैयार हूँ, लेकिन आपको मेरी हर बात का पालन करना होगा, साथ ही मेरे द्वारा बनाए गए भोजन का सेवन करना होगा।’ राजा उनकी बात पर सहमत हो गए और नई रानी को महल ले आएं।
अगले दिन देवोत्थान एकादशी की तिथि थी। समस्त प्रजा के साथ राजा ने भी इस विशेष दिन पर व्रत किया था। वहीं नई रानी के रुप में भगवान विष्णु ने राजा के लिए भोज में मांसाहार पकाया और मध्यान्ह समय में उनसे भोजन करने का आग्रह करने लगी। राजा ने उस मांसाहारी भोजन को ग्रहण करने से मना कर दिया। यह सुनकर रानी को बहुत क्रोध आया और क्रोध में उन्होंने राजा से कहा कि ‘आपने मुझे वचन दिया था कि आप मेरी हर बात का पालन करेंगे। अगर आपने मेरे द्वारा पकाए गए भोजन का सेवन नहीं किया तो इसी क्षण इस राज्य के युवराज की मृत्यु हो जाएगी।
यह सुनकर राजा बहुत दुविधा में पड़ गए और अपनी बड़ी रानी के पास जाकर उन्हें सारी व्यथा सुनाई। बड़ी रानी ने राजा से कहा कि ‘राजन! आप अपने धर्म का पालन करें। एक पुत्र के जाने पर दूसरा पुत्र आ सकता है, लेकिन धर्म एक बार जाने के बाद दोबारा मनुष्य के पास लौटकर नहीं आता।
रानी और राजा आपस में बात कर ही रहे थे, कि तभी वहां युवराज आ गए, उन्होंने अपने माता पिता की बातचीत को सुन लिया था। युवराज ने पाने पिता से कहा कि पिताजी मैं प्राण त्यागने के लिए तैयार हूँ। आप कृपया अपना धर्म न छोड़ें।
इतना सुनकर राजा और रानी दोनों ही भावुक हो गए। युवराज प्राण त्यागने ही वाले थे कि रानी के रूप में भगवान विष्णु वहां प्रकट हुए और अपने असली रूप में उन तीनों को दर्शन दिए।
भगवान विष्णु ने कहा कि हे राजन! मैं तुम्हारी धर्मपरायणता से बहुत प्रसन्न हूँ। इस विशेष तिथि पर किये गए व्रत के प्रभाव से में तुम्हें मुक्ति और परम लोक में निवास करने का वरदान प्रदान करता हूँ।
भगवान विष्णु के दिए वरदान के प्रभाव से राजा ने शीघ्र ही युवराज का राजतिलक किया और उसे राज्य की बागडोर सौंपने के बाद एक विमान में बैठकर परम लोक में निवास करने के लिए चले गए।