गुड़ी पड़वा की कथा में छुपा है भगवान राम से जुड़ा एक रोचक रहस्य! पढ़ें और जानें इसका आध्यात्मिक महत्व।
गुड़ी पड़वा मराठी नववर्ष का प्रतीक है और इसका संबंध प्रभु श्रीराम के विजय उत्सव से है। कहा जाता है कि इस दिन भगवान राम ने रावण पर विजय प्राप्त करने के बाद अयोध्या में प्रवेश किया था। इसी खुशी में घरों के बाहर गुड़ी (ध्वज) फहराया जाता है, जो समृद्धि और शुभता का प्रतीक माना जाता है।
गुड़ी पड़वा से जुड़ी कई कथाएं एवं मान्यताएं प्रचलित है। इन्हीं में से कुछ प्रमुख कथाएं आज हम आपको सुना रहे हैं।
हमारी सबसे पहली कथा के अनुसार गुड़ी पड़वा पर्व भगवान राम से जुड़ा हुआ है। ऐसी मान्यता है कि त्रेता युग में भारत के दक्षिणी राज्यों पर सुग्रीव का भाई बाली राज करता था। दरअसल वो राज्य सुग्रीव का था, परंतु बाली ने उसे छल पूर्वक छीन लिया था। इतना ही नहीं, बाली ने सुग्रीव की पत्नी का भी अपहरण कर लिया था।
ऐसे में राम के वनवास के बाद जब सीता का हरण हुआ और वो उनकी तलाश में दक्षिण भारत पहुंचे, तो सुग्रीव ने अपने भाई के अत्याचारों के बारे में बताया और भगवान से सहायता मांगी। सुग्रीव की विनती सुन कर भगवान राम ने बाली का वध कर दिया और सुग्रीव का राज्य उसे वापस मिल गया। माना जाता है कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही भगवान राम ने बाली का वध किया था। तब से हर वर्ष दुष्ट बाली के वध और सुग्रीव की विजय की याद में गुड़ी पड़वा का यह पर्व मनाया जाता है, और विजय पताका के रूप में गुड़ी लगाई जाती है।
एक और कथा के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि गुड़ी पड़वा के दिन ही भगवान ब्रह्मा ने इस समूचे ब्रह्मांड का निर्माण किया था। यह निर्माण सफल होने के बाद ब्रह्मा जी ने विजय का उद्घोष के रूप में गुड़ी फहराई, इसलिए गुड़ी को ब्रह्म ध्वज भी कहा जाता है।
गुड़ी पड़वा से संबंधित एक कथा इस प्रकार भी है कि सातवाहन राजवंश में शालिवाहन नामक एक अत्यंत प्रतापी राजा हुए। लेकिन जब वो बालक थे, तभी उनके पिता का राज्य उनके सामंतों द्वारा छीन लिया गया था। इतना ही नहीं, सामंतों ने उनके परिवार पर आक्रमण कर दिया और शालिवाहन का वध करने का प्रयास किया। तब कुमार शालिवाहन अपने प्राणों की रक्षा हेतु वहां से भाग गए और एक जंगल में किसी कुम्हार के घर जा पहुंचे। कुम्हार ने अपने घर में शालिवाहन को आश्रय दिया और उनका पालन पोषण किया।
क्योंकि शालिवाहन का लालन-पालन एक कुम्हार के घर हुआ था, इस कारण उन्हें लोग कुम्हार मानने लगे हालांकि वो क्षत्रिय कुल में जन्मे थे। कहते हैं कि शालिवाहन को देवताओं से वरदान प्राप्त था कि वह किसी निर्जीव मूर्ति में प्राण डाल सकते थे। धीरे-धीरे कुछ समय बीता और एक दिन ऐसा आया जब शालिवाहन को यह पता चला कि वो एक राजसी परिवार से संबंध रखते हैं और उन्हें यह भी ज्ञात हुआ कि किस तरह से सामंतों ने उनका सारा राजपाट हड़प लिया और वो एक कुम्हार के घर जीवन व्यतीत करने पर विवश हुए।
यह सब जानने के बाद शालिवाहन ने सामंतों पर आक्रमण करने का संकल्प लिया। खैर, शालिवाहन ने संकल्प तो ले लिया, परंतु युद्ध लड़ने के लिए उनके पास ना तो धन था और ना ही सेना थी। तब उन्हें स्वयं को प्राप्त वरदान का बोध हुआ, और उन्होंने मिट्टी की सेना बनाई। युद्ध का समय आने पर शालिवाहन ने मिट्टी की सेना पर पानी के छीटें डालकर उन्हें जीवित कर दिया और युद्ध जीतकर अपना राज्य पुन: प्राप्त किया। तबसे कुछ लोग शालिवाहन की विजय के उपलक्ष्य में गुड़ी पड़वा का ये पर्व मनाते हैं।
तो ये थी गुड़ी पड़वा से जुड़ी पौराणिक कथाऐं। ऐसी ही अन्य कथाओं व धार्मिक जानकारियों के लिए जुड़े रहिए श्री मंदिर पर
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