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कार्तिक पूर्णिमा कथा

कार्तिक पूर्णिमा व्रत से करें भगवान शिव और विष्णु की उपासना, पाएं सुख-समृद्धि और जीवन में शांति का आशीर्वाद।

कार्तिक पूर्णिमा कथा के बारे में

जितना महत्वपूर्ण कार्तिक पूर्णिमा का पर्व होता है, उतनी ही खास इससे जुड़ी हुई पौराणिक कथा भी है। इस कथा का उल्लेख शिव पुराण में मिलता है, तो चलिए इस पावन कथा के बारे में विस्तार से जानते हैं।

कार्तिक पूर्णिमा कथा

दैत्य तारकासुर के तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली नाम के तीन पुत्र थे। जब भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर दिया तो उसके पुत्रों को बहुत दुःख हुआ।

क्रोधित होकर उन्होंने देवताओं से प्रतिशोध लेने के लिए ब्रह्माजी की तपस्या करने का निर्णय लिया। अपनी घोर तपस्या से तीनों भाइयों ने ब्रह्म देव को प्रसन्न कर लिया और उनसे अमर होने का वरदान मांगा। ब्रह्माजी ने कहा क‍ि वह अमरत्व का वरदान तो नहीं दे सकते, इसलिए वह कोई अन्य वरदान मांग लें।

ब्रह्माजी के दूसरे वर मांगने की बात पर तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली ने तीन नगरों का वरदान मांगा। साथ ही उन्होंने कहा क‍ि, “हे ब्रह्मदेव आप हमारे लिए ऐसे तीन नगरों का निर्माण करवाएं, ज‍िनमें हम तीनों अलग-अलग बैठकर पूरी पृथ्‍वी का आकाश मार्ग से एक हजार साल तक भ्रमण कर सकें। इसके बाद जब हम तीनों एक हजार साल बाद ज‍िस स्‍थान पर म‍िलें उसी समय हमारे तीनों नगर म‍िलकर एक होकर त्रिपुर कहलाएं।

तीनों ने खूब विचार कर, ब्रह्मा जी से वरदान मांगा - “हे प्रभु! हमारे पास कोई दृढ़ दुर्ग नहीं है जिसमें शत्रु न प्रवेश कर सकें, आप हमें ऐसा कोई सुरक्षित तीन पुरों का निर्माण दीजिये। उसमें धन-सम्पत्ति के सुखदायक सभी साधनों के अतिरिक्त अस्त्र-शस्त्र की भी सभी सामग्रियाँ उपलब्ध हों और जो किसी से भी ध्वस्त न हो पाए।”

यह कह कर तारकाक्ष ने अपने लिए सुवर्ण का, कमलाक्ष ने चाँदी का और विद्युन्माली ने लोहे का पुर निर्माण कर देने की प्रार्थना की। ब्रह्माजी ने कहा- “तथास्तु, ऐसा ही होगा परन्तु शिवजी के हाथों ही तुम सब मारे जाओगे और अन्य कोई भी तुम्हें न मार सकेगा।”

इस प्रकार तीनों भाइयों के लिए उनके कहे अनुसार तीन नगरों का निर्माण किया गया, इनमें से एक आकाश में, एक स्वर्ग में और एक पृथ्वी में स्थित था। इस प्रकार वे तीनों अपने-अपने नगरों में रहकर आनन्द भोगने लगे।

इन नगरों के बाद तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली ने अपनी शक्ति से तीनों लोकों पर आक्रमण करके अपना अध‍िपत्‍य जमा ल‍िया। सभी देवता, तीनों भाइयों के अत्याचारों से परेशान होकर भोलेनाथ जी की शरण में पहुंचे और अपनी रक्षा के लिए प्रार्थना करने लगे।

देवताओं की करुण पुकार सुनकर भगवान शिव त्रिपुरों का नाश करने के लिए तैयार हो गए। तब भगवान विश्वकर्मा ने भोलेनाथ के लिए एक दिव्य रथ का निर्माण किया। ज‍िसमें चंद्रमा और सूर्य उसके पहिए बने एवं इंद्र, वरुण, यम और कुबेर आदि लोकपाल उस रथ के घोड़े बने। हिमालय धनुष बनें। वहीं शेषनाग उसकी प्रत्यंचा बनें। यही नहीं स्वयं भगवान विष्णु बाण तथा अग्निदेव उसकी नोक बनें। उस दिव्य रथ पर सवार होकर भोलेनाथ त्रिपुरों का नाश करने चल दिए, लेकिन असुर निर्भय थे।

शिव जी ने तत्काल ही करोड़ों सूर्य के समान प्रकाशमान अपने उस बाण को असुरों पर चला दिया।

उन दिव्य और विनाशकारी बाणों ने उड़ कर त्रिपुरवासियों का वध कर दिया। देवताओं के देखते-देखते चारों ओर से समुद्र द्वारा घिरे हुए दैत्यों के तीनों नगर ध्वस्त होकर भूमि पर गिर पड़े। इस प्रकार तीनों भाई भी नगरों के साथ भस्म हो गए, साथ ही सभी अन्य दैत्यों का विनाश हो गया।

त्रिपुरों का नाश होते ही सभी देवता भोलेनाथ की जय-जयकार करने लगे और उसी समय सभी देवी-देवताओं द्वारा भोलेनाथ को त्रिपुर का अंत करने वाले त्रिपुरारी के नाम से पुकारा जाने लगा। यह युद्ध कार्तिक पूर्णिमा के दिन हुआ था, माना जाता है तभी से इस दिन शिव जी की पूजा-अर्चना करने की परंपरा शुरू हो गई।

तो यह थी कार्तिक पूर्णिमा की पौराणिक कथा, ऐसी ही कथाओं के लिए आप श्रीमंदिर से जुड़ रहें।

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Published by Sri Mandir·February 18, 2025

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