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मोक्षदा एकादशी कथा

मोक्षदा एकादशी व्रत से करें भगवान विष्णु की उपासना, पाएं पापों से मुक्ति और मोक्ष का आशीर्वाद।

मोक्षदा एकादशी व्रत के बारे में

मोक्षदा एकादशी व्रत को मोक्ष एवं सांसारिक मोह से मुक्ति दिलाने का मार्ग माना गया है, लेकिन क्या आपको पता है कि इससे जुड़ी हुई पौराणिक कथा क्या है और आखिरकार क्यों इसे मोक्षदायनी माना जाता है? आइए इस आर्टिकल में हम मोक्षदा एकादशी व्रत से जुड़ी रोचक और पौराणिक कथा को विस्तार से जानते हैं।

मोक्षदा एकादशी व्रत कथा

चिरकाल में जब भगवान श्रीकृष्ण युधिष्ठिर जी को वर्ष में आने वाली सभी एकादशियों के महात्म्य के बारे में बता रहे थे, तब युधिष्ठिर जी उनसे मोक्षदा एकादशी की विशेषता और महत्व के बारे में पूछते हैं। युधिष्ठिर जी के प्रश्न के उत्तर में श्रीकृष्ण उन्हें बताते हैं कि-

“हे राजन, मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली परमकल्याणकारी एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहते हैं, इस दिन भगवान दामोदर के विग्रह की पूजा करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है, और अंत में उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके श्रवणमात्र से ही व्यक्ति को अश्वमेघ यज्ञ के समान पुण्यफल की प्राप्ति होती है, अब मैं तुम्हें इस एकादशी से जुड़ी हुई पौराणिक कथा के बार में बताता हूँ”-

प्राचीनकाल में वैखासन नामक महान राजा का राज हुआ करता था। वह एक धर्म निष्ठ एवं न्याय प्रिय राजा थे, जिन्होंने अपना जीवन अपनी प्रजा की सेवा के लिए समर्पित कर दिया था।

एक दिन की बात है, राजा जब रात में सो रहे थे, तो उन्होंने सपने में अपने पिताजी को नर्क की यातना झेलते हुए देखा, यह देखकर वह अत्यंत विचलित हो उठे।

अगले दिन सुबह उठकर उन्होंने अपने महल में सभी ब्राह्मणों को बुलाया और अपने दुःस्वप्न के बारे में बताते हुए, अपनी व्यथा का वर्णन किया। इसके पश्चात् राजा ने ब्राह्मणों से कहा कि, “अपने पिता को इस प्रकार नरक की यातना सहते हुए देखकर, मेरा मन विचलित हो गया है। एक पुत्र का दायित्व पूरा करते हुए, मैं उन्हें इस अवस्था से मुक्ति दिलाना चाहता हूँ। आप सभी तो परमज्ञानी हैं, कृपया कर मेरा मार्गदर्शन करें।”

राजा की प्रार्थना सुनकर ब्राह्मणों ने उन्हें बताया कि, “हे राजन हम आपकी अवस्था को समझ सकते हैं, इस परेशानी से निकलने का मार्ग आपको पर्वत मुनि दिखा सकते हैं, क्योंकि वह त्रिकालदर्शी हैं। वह पर्वतों से घिरे जंगल में तपस्या कर रहे हैं, आप उनकी शरण में जाएं।”

ब्राह्मणों का सुझाव मानकर राजा जंगल में पर्वत मुनि से भेंट करने के लिए निकल पड़ते हैं। आश्रम पहुंचकर राजा वैखासन, पर्वत मुनि को दंडवत प्रणाम करते हैं। ऋषि-मुनि उन्हें आशीर्वाद देते हुए, उनके आने का कारण पूछते हैं।

इस प्रश्न के उत्तर में राजा पर्वत मुनि को अपनी व्यथा के बारे में बताते हुए कहते हैं कि, “हे ऋषिवर, मैंने स्वप्न में अपने पिताजी को नरक की यातनाएं भोगते हुए देखा, उन्हें मुक्ति नहीं मिली है और इस बात से मुझे अत्यंत दुख हुआ। आप तो महान तपस्वी है, त्रिकालदर्शी हैं, कृपया कर मेरी समस्या का समाधान करें और मेरे पिताजी को मुक्ति दिलाने का उपाय बताएं।”

राजा की बात सुनकर ऋषि-मुनि ध्यान अवस्था में चले जाते हैं, और अपने योगबल से राजा के भूत, वर्तमान और भविष्य को देख लेते हैं। इसके पश्चात् वह राजा से कहते हैं कि, “हे राजन, आपके पिता अपने पूर्व जन्म के दुष्कर्मों के कारण नरक में यातना भुगत रहे हैं।”

यह सुनकर राजा बोलते हैं कि, “हे मुनिवर! इसका निवारण क्या, मैं किस प्रकार अपने पिताजी को इन पाप कर्मों से मुक्ति दिला सकता हूँ?”

पर्वत मुनि कहते हैं कि, “मार्गशीर्ष माह की शुक्ल पक्ष में मोक्षदा एकादशी आती है, आप इस एकादशी का पूरी आस्था एवं निष्ठापूर्वक पालन करें, और इसके द्वारा अर्जित पुण्यफल अपने पिताजी को प्रदान कर दें, इससे आपके पिताजी को मुक्ति मिल जाएगी।”

राजा ऋषि को प्रणाम कर वापिस अपने महल में आ जाते हैं, और उनका सुझाव मानकर पूरे विधि-विधान से अपने परिवार के साथ मोक्षदा एकादशी के व्रत का पालन करते हैं। उससे अर्जित किया गया पुण्यफल वह जैसे ही अपने पिता को अर्पित करते हैं, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है और स्वर्गलोक जाते हुए वह राजा के सपने में आते हैं, और उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहते हैं कि, “पुत्र तुमने मुझे मुक्ति दिलाई है, तुम्हारा और तुम्हारे परिवार का कल्याण हो”।

इस कथा के बाद भगवान श्रीकृष्ण युधिष्ठिर से कहते हैं कि, “हे धर्मराज, यह एकादशी चिंतामणि के समान है, जो व्यक्ति इसका नियम व श्रद्धापूर्वक पालन करता है, उसके पितरों का उद्धार होता है और उस व्यक्ति को आध्यात्मिक लोक की प्राप्ति होती है।”

तो दोस्तों, यह थी मोक्षदा एकादशी की पावन व्रत कथा, इसको सुनने मात्र से ही व्यक्ति को पुण्यफल की प्राप्ति होती है।

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Published by Sri Mandir·February 19, 2025

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