नरसिंह जयंती कथा

नरसिंह जयंती कथा

दूर होते हैं शारीरिक व मानसिक कष्ट


नरसिंह जयंती कथा (Narasimha Jayanti Katha)

प्राचीन समय में कश्यप नाम का एक राजा था, जिसकी पत्नी का नाम दिति था। राजा कश्यप के दो पुत्र थे। एक का नाम हिरण्यकश्यप और दूसरे पुत्र का नाम हिरण्याक्ष था।हिरण्याक्ष के बुरे कर्मों और अत्याचार से लोगों को मुक्त करने के लिए भगवान विष्णु ने उसका वध कर दिया था। तभी से हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु को अपना शत्रु मानने लगा। हिरण्यकश्यप ने अपने भाई की मौत का बदला लेने के लिए अमरता की कामना लेकर कठिन तपस्या की।

हिरण्यकश्यप की कठोर तपस्या से भगवान ब्रह्मा जी प्रसन्न हुए। जिसके बाद ब्रह्मा जी ने प्रकट होकर हिरण्यकश्यप को दर्शन दिए और वर मांगने को कहा। तभी उसने ब्रह्मा जी से अमरता का वरदान मांग लिया, लेकिन इस वरदान को देने में ब्रह्मा जी सक्षम नहीं थे। उन्होंने कोई अन्य वर मांगने के लिए कहा। जिसके बाद हिरण्यकश्यप ने एक विशेष वर मांगा, जिसपर ब्रह्मा जी तथास्तु कहकर चले गए।

वरदान की प्राप्ति के उपरांत हिरण्यकश्यप स्वयं को अमर मानने लगा और अपनी प्रजा को भगवान विष्णु की पूजा करने से रोकने लग गया। कुछ दिनों बाद उसका पुत्र हुआ जिसका नाम प्रहलाद था।प्रहलाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। जिससे नाराज हिरण्यकश्यप अपने ही बेटे को मारने का प्रया स करने लगा, लेकिन वह उसमें लगातार असफल रहा। इन प्रयासों के कारण ही उसकी बहन होलिका भी आग में जलकर भस्म हो गई।

एक दिन क्रोध में आकर हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को श्री हरि का अस्तित्व सिद्ध करने की चुनौती दे दी। जिसपर प्रहलाद ने कहा कि वह हर जगह विराजमान हैं। तभी स्तंभ की ओर इशारा कर राजा ने कहा कि क्या इस स्तंभ में भी तुम्हारे हरि हैं। जिसपर प्रहलाद ने कहा, जी पिता जी। इसके बाद राजा ने उस स्तंभ को तोड़ दिया। जिससे भगवान नरसिंह अवतार में प्रकट हुए। उसके बाद ब्रह्मा जी के वरदान को ध्यान में रखते हुए नरसिंह अवतार ने हिरण्यकश्यप का वध कर दिया। इस दिन के बाद ही इस तिथि को नरसिंह जयंती के रूप में मनाया जाता है।

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