निर्जला एकादशी की व्रत कथा

निर्जला एकादशी की व्रत कथा

मिलेगा सभी एकादशियों का फ़ल


निर्जला एकादशी की व्रत कथा (Nirjala Ekadashi Vrat Katha)

सभी एकादशी तिथियों में श्रेष्ठ ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी के दिन जो जातक निर्जल रहकर व्रत करते हैं, अन्न, वस्त्र, गाय आदि का दान करते हैं, और भक्तिपूर्वक इस दिन से जुड़ी कथा का पाठ करते हैं, उन्हें सुखमय जीवन के बाद स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

कथा

ये बात है महाभारत युग की। एक बार महर्षि व्यासजी भीम से कहने लगे कि हे पांडु पुत्र! यदि तुम नरक के दुख भोगने से बचना चाहते हो और जीवन के पश्चात् मोक्ष पाना चाहते हो तो तुम्हें हर मास की दोनों एकादशी तिथियों पर भगवान विष्णु का पूजन, दान, व उपवास करना चाहिए।

ये सुनकर भीमसेन नरक में जाने के नाम से भयभीत हो गए और व्यासजी से कहने लगे कि हे पितामह! भ्राता युधिष्ठिर, माता कुंती, द्रोपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव आदि सब एकादशी के व्रत का पालन करते हैं, मैं भी पूजन, दान आदि तो कर सकता हूं, परंतु समस्या ये है कि मैं अधिक समय तक भोजन किए बिना नहीं रह सकता। क्योंकि मेरे पेट में वृक नामक अग्नि है, जिसके कारण एक समय का भी अन्न त्याग करना कठिन है।

अतः हे पितामह! यदि कोई ऐसा व्रत हो, जिसे वर्षभर केवल एक बार ही रखना पड़े, और स्वर्ग की प्राप्ति हो जाए, तो मैं ऐसे व्रत का पालन करने का अवश्य प्रयास करूंगा। ये सुनकर श्री व्यासजी बोले- हे भीम! वृषभ और मिथुन की संक्रां‍‍ति के बीच ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में जो एकादशी पड़ती है, उसे निर्जला एकादशी कहते हैं।

ये एकादशी वर्ष भर में एक ही बार आती है, इसलिए तुम इसी व्रत का पालन करो। इस एकादशी व्रत में स्नान और आचमन के अलावा जल का प्रयोग करना वर्जित है। आचमन करते समय भी ध्यान रहे कि छ: मासे से अधिक जल नहीं होना चाहिए अन्यथा वह मदिरा पान के समान हो जाता है। इस व्रत में अन्न और जल का पूरी तरह से त्याग करना चाहिए।

यदि कोई जातक ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी को सूर्योदय से लेकर द्वादशी के सूर्योदय तक जल ग्रहण न करे तो उसे वर्षभर में आने वाली सभी 24 एकादशियों के व्रत का फल प्राप्त होता है। द्वादशी तिथि पर ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि करके ब्राह्मणों को दान अवश्य देना चाहिए। इस दिन ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करना चाहिए, साथ ही गौदान भी करना चाहिए। इसके पश्चात ब्राह्मण व किसी भूखे व्यक्ति को भोजन कराकर, स्वयं भोजन करना चाहिए। इस प्रकार निर्जला एकादशी के व्रत का पालन करने से मिलने वाला फल पूरे एक वर्ष की सभी एकादशियों के बराबर होता है।

व्यासजी कहने लगे कि हे पुत्र! इस एकादशी का महात्म्य भगवान ने स्वयं मुझे बताया है। इस दिन सच्चे मन से विष्णु उपासना करने पर जो पुण्यफल मिलता है, वो समस्त तीर्थों एवं दान से अधिक है। मनुष्य केवल एक दिन निर्जल रहने से जन्म जन्मांतर के पापों से मुक्त हो जाता है। जो जातक निर्जला एकादशी का व्रत करते हैं उनकी मृत्यु के समय उन्हें यमदूत की यातनाएं नहीं सहन करनी पड़तीं, बल्कि भगवान के दूत उन्हें पुष्पक विमान में बिठाकर स्वर्ग को ले जाते हैं।

इस प्रकार व्यासजी की आज्ञा के अनुसार भीम ने इस निर्जला एकादशी व्रत का पालन किया। इसी कारण ये एकादशी भीमसेनी एकादशी या पांडव एकादशी के नाम से भी जानी जाती है।

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