गुरुवार व्रत कथा (Thursday Vrat Katha)
हमारे हिंदू धर्म में गुरूवार को भगवान बृहस्पति की पूजा का विधान है। बृहस्पति देवता को बुद्धि और शिक्षा का देवता माना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन व्रत रखने से बृहस्पति महाराज प्रसन्न होते हैं। इस व्रत के पीछे एक रोचक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है। तो चलिए पढ़ते हैं गुरूवार की यह पवन व्रत कथा
**कथा ** कुशीनगर में धनपतराय नाम का एक व्यक्ति रहता था। नाम के अनुसार ही भगवान की कृपा से उसके घर में धन - वैभव की कोई कमी नहीं थी। उसका हृदय भी बड़ा उदार था। वह गरीबों की बहुत सहायता करता था। उसकी पत्नी मालती का स्वभाव अपने पति के विपरीत था। वो अत्यंत लोभी और कंजूस स्वभाव की स्त्री थी। उसे दान -दक्षिणा देने में कोई रूचि नहीं थी। एक बार की बात है, संन्यासी के भेष में बृहस्पति देव उसके घर भिक्षा मांगने आए। मालती ने उन्हें कार्य का बहाना बनाकर लौटा दिया। कुछ दिनों बाद वो फिर से भिक्षा मांगने आए। इस बार भी मालती ने उन्हें ये कहकर भिक्षा देने से मना कर दिया कि 'आज भी मैं व्यस्त हूँ! आप किसी अवकाश वाले दिन आइये', इसपर बृहस्पति देव मन ही मन मुस्कुराए और बोले कि मैं तुम्हें एक ऐसा उपाय बताता हूं, जिससे तुम्हें अवकाश ही अवकाश प्राप्त हो जाएगा। तब तुम्हें कोई काम नहीं करना पड़ेगा। ये सुनकर वो बहुत खुश हुई और बोली, जल्दी से वो उपाय मुझे बताइए क्योंकि दान -दक्षिणा और घर के कार्य से मैं बहुत ज्यादा परेशान हो चुकी हूं।
साधू ने उससे कहा, बृहस्पतिवार के दिन तुम खूब देर में सोकर उठना, झाड़ू लगाने के बाद सारा कूड़ा घर के एक कोने में रखा देना, अपने पति से कहना उस दिन बाल - दाढ़ी बनाए, संध्या को अंधेरा होने के बाद दीपक जलाना और उस दिन पीले वस्त्र मत पहनना। यदि तुमने इन सारी बातों का पालन किया तो तुम्हें कोई काम नहीं करना पड़ेगा।
अगले बृहस्पति मालती ने ठीक वैसा ही किया जैसा साधु ने उसे बताया था। तीसरा बृहस्पति आते - आते उसके ऊपर मुसीबतों का पहाड़ टूट गया। उसके पति को व्यापार में बहुत बड़ा घाटा हुआ। धन के अभाव के कारण सारे नौकर घर छोड़कर चले गए और पूरे घर में दरिद्रता छा गई।
काफी दिनों के बाद फिर से साधू धनपतराय के घर पधारे। दरवाजे पर मालती उदास बैठी थी। उन्होंने उससे कहा, भगवान की कृपा से तुम्हें अब अवकाश मिल गया होगा। अतः अब जल्दी से मुझे भिक्षा प्रदान कर दो। उन्हें देखते ही मालती को पूरा मामला समझ में आ गया और वो साधू के चरणों में गिरकर बोली, 'महाराज! मुझे क्षमा करें, मैंने हर बार कार्य का बहाना बनाकर आपको भिक्षा देने से मना किया था। मेरी गलती की वजह से मुझसे बृहस्पति देव इतना रुष्ट हुए कि आज हम लोग दाने - दाने को तरस रहे। मेरे घर की धन -सम्पत्ति और वैभव सब समाप्त हो गया।
आगे उसने कहा, महाराज! 'कृपया आप मुझे कोई ऐसा उपाय बताइये , जिससे मेरे घर की स्थिति पहले की भांति हो जाए, मेरे घर का धन - वैभव सब लौट आए।' साधू ने उसे उठाते हुए कहा, हे देवी! आप मेरे चरणों को छोड़ो और मेरी बात को गंभीरता पूर्वक सुनो। इस स्थिति से तुम्हें बृहस्पति देव ही निकाल सकते हैं। तुम प्रत्येक बृहस्पतिवार को व्रत रखना करना प्रारंभ करो। उस दिन उनकी पूजा के दौरान पीले पुष्पों का प्रयोग करना। बृहस्पति वाले दिन घर के किसी सदस्य को बाल मत कटवाने देना। शाम को अंधेरा होने से पहले घर में घी का दीपक जलाना। ऐसा करने से तुम्हारे जीवन में फिर धन -समृद्धि लौट आएगी।
इतना बोलकर वो साधु वहां से अंतर्ध्यान हो गए। ये दृश्य देखकर मालती अचंभित रह गई। उनके जाने के बाद अगले बृहस्पतिवार को मालती ने पूरे विधि -विधान के साथ बृहस्पति वार का व्रत रखा और सच्चे मन से उनकी आराधना की। कुछ दिन बाद बृहस्पति देव की कृपा से उसके घर की स्थिति सुधरने लगी। धनपतराय का व्यवसाय फिर से फलने -फूलने लगा और मालती का परिवार फिर से खुशहाल हो गया। खोया हुआ मान -सम्मान भी वापस आ गया। तो इस प्रकार जो भी बृहस्पति वार को भक्ति भाव से बृहस्पति का व्रत रखता है। उसके घर में धन - धान्य की कोई कमी नहीं रहती।