रबीन्द्रनाथ टैगोर जयंती 2025 कब है? जानिए इस प्रेरणादायक दिन की तारीख, टैगोर जी का योगदान और उन्हें याद करने का महत्व।
रबीन्द्रनाथ टैगोर जयंती महान कवि, लेखक, और नोबेल पुरस्कार विजेता गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर की जन्मतिथि पर मनाई जाती है। यह जयंती 7 मई को (बांग्ला पंचांग के अनुसार 25 बैशाख) को मनाई जाती है। इस दिन उनकी रचनाओं, कविताओं और गीतों के माध्यम से उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है।
अनसुनी करके तेरी बात
न दे जो कोई तेरा साथ
तो तुही कसकर अपनी कमर
अकेला बढ़ चल आगे रे
अरे ओ पथिक अभागे रे।।
गुरुदेव रबिन्द्रनाथ टैगोर एक ऐसे अद्भुत प्रतिभा के धनी व्यक्तित्व थे, जिनके सम्पूर्ण जीवन से हम प्रेरणा ले सकते हैं। वे एक ऐसे विरले साहित्यकार रहे हैं, जो कई युगों के बाद इस दुनिया में जन्म लेते हैं, और इस धरती को धन्य कर जाते हैं। इसी महान व्यक्तित्व को समर्पित दिन है 'रबिन्द्रनाथ टैगोर जयंती'।
कोलकाता के जोड़ासाकों की ठाकुरबाड़ी मे, कई समृद्ध बंगाली परिवारों मे से एक टैगोर परिवार था, जिसके मुखिया देवेन्द्रनाथ टैगोर थे। देवेन्द्रनाथ ब्रम्ह समाज के वरिष्ठ नेता हुआ करते थे। वह एक सामाजिक और बहुत ही सुलझे हुए व्यक्ति थे। उनकी पत्नी शारदादेवी घर गृहस्थी संभालती थीं। 7 मई, सन् 1861 को इन टैगोर दंपत्ति को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, जिनका नाम रबिन्द्रनाथ रखा गया। रबिन्द्रनाथ अपने सभी भाई-बहनों में सबसे छोटे थे।
रबिन्द्रनाथ टैगोर बचपन से ही बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे, इनकी प्रारंभिक शिक्षा कोलकाता के एक जाने- माने स्कूल सेंट जेवियर स्कूल मे हुई। रबिन्द्रनाथ के पिता समाज के उत्थान से जुड़े कार्यों में रुचि रखते थे, इस कारण वह चाहते थे कि रबिन्द्रनाथ जी बैरिस्टर बनें। हालांकि उनका रुझान साहित्य की तरफ था, इसलिए पिता जी के कहने पर सन् 1878 में उन्होंने लंदन के विश्वविद्यालय में दाखिला तो ले लिया, परन्तु बैरिस्टर की पढ़ाई में मन न लगने के कारण सन् 1880 में वे बिना डिग्री लिये ही घर वापस आ गये।
रवीन्द्रनाथ टैगोर का विवाह 9 दिसंबर, सन् 1883 में मृणालिनी देवी से हुआ। विवाह के समय मृणालिनी मात्र 9 साल की थीं। रबिन्द्रनाथ टैगोर और मृणालिनी की पांच संतानें हुईं।
रबिन्द्रनाथ टैगोर सिर्फ़ साहित्य ही नहीं, बल्कि अन्य कई क्षेत्रों में रुचि रखते थे। इसी कारण वे एक महान कवि, साहित्यकार, लेखक, चित्रकार, और एक बहुत अच्छे समाजसेवी के तौर पर जाने जाते हैं। कहा जाता है कि बाल्यावस्था में जब बालक खेल कूद में रुचि लेते हैं, उस आयु में रबिन्द्रनाथ टैगोर ने अपनी प्रथम कविता लिखी थी। पहली कविता लिखते समय उनकी उम्र मात्र 8 वर्ष थी। इतना ही नहीं, किशोरावस्था में कदम रखते ही सन् 1877 में रबिंद्र ने अपनी पहली लघुकथा लिखी, उस समय उनकी उम्र केवल सोलह वर्ष थी। रबिन्द्रनाथ टैगोर ने लगभग 2230 गीतों की रचना की। उनकी प्रमुख रचनाओं में गीतांजलि, गीताली, गीतिमाल्य, कथा ओ कहानी, शिशु, शिशु भोलानाथ, कणिका, क्षणिका, आदि प्रमुख हैं।
रबिन्द्रनाथ टैगोर अपने कार्य व लक्ष्य के प्रति निरंतर प्रयासरत रहने पर विश्वास रखते थे। उन्होंने समाज कल्याण के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किए, जिनमें से एक है शांतिनिकेतन की स्थापना। शान्तिनिकेतन की स्थापना करना गुरुदेव का सपना था जो उन्होंने 1901 मे पूरा किया। वह चाहते थे कि प्रत्येक विद्यार्थी की शिक्षा प्रकृति के बीच रह कर हो, जिससे शिक्षा ग्रहण करते समय उनके मस्तिष्क में शांति रहे। इसी कारण गुरुदेव रबिन्द्रनाथ टैगोर ने शान्तिनिकेतन मे पेड़-पौधों व प्राकृतिक माहोल में एक पुस्तकालय की स्थापना की। हालांकि बाद में रबिन्द्रनाथ टैगोर के अथक प्रयत्न के पश्चात् शान्तिनिकेतन को विश्वविद्यालय का दर्जा प्राप्त हुआ। इस विश्वविद्यालय में साहित्य कला के अनेकों विद्यार्थियों ने शिक्षा ग्रहण की।
रबिन्द्रनाथ टैगोर को उनके जीवनकाल में कई उपलब्धियां व सम्मान मिले, परन्तु सन् 1913 में रबिंद्र जी की प्रमुख रचना गीतांजलि के लिये उन्हें 'नोबेल पुरुस्कार' से सम्मानित किया गया। टैगोर नोबेल पुरस्कार जीतने वाले पहले एशियाई व्यक्ति थे।
रबिन्द्रनाथ टैगोर ने भारत को और बांग्लादेश के राष्ट्रगान की, जिसे भारतवासी व बांग्लादेश के लोग बड़े ही सम्मान के साथ गाते हैं। इसमें भारत का 'जन-गण-मन है' व बांग्लादेश का 'आमार सोनार बांग्ला' है।
रबिन्द्रनाथ टैगोर का निधन 7 अगस्त 1941 को कोलकाता मे हुआ। उस समय उनकी आयु 80 वर्ष थी। वैसे तो उनकी मृत्यु होने की बहुत स्पष्ट वजह सामने नहीं आई है लेकिन कई जानकारों के अनुसार एवं कई रिपोर्ट के मुताबिक उनकी मृत्यु की वजह प्रोस्टेट कैंसर बताई जाती है। हालांकि उनके द्वारा लिखी गई रचनाओं के ज़रिए वो आज भी हमारे बीच अमर हैं।
दोस्तों ये तो थी गुरुदेव रबिन्द्रनाथ टैगोर जयंती से जुड़ी संपूर्ण जानकारी। ऐसे ही व्रत, त्यौहार व अन्य धार्मिक जानकारियों के लिए जुड़े रहिए 'श्री मंदिर' ऐप पर।
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