योगेश्वर द्वादशी 2024: जानें शुभ मुहूर्त, व्रत कथा और पूजा विधि। इस पावन दिन पर श्री कृष्ण की उपासना से पाएं विशेष आशीर्वाद!
योगेश्वर द्वादशी कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाई जाती है। यह पूजा भगवान विष्णु को समर्पित होती है और इस दिन भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी की एक साथ पूजा करने का विधान है। ऐसा करने से मनुष्य को भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
कार्तिक का पूरा महीना ही भगवान विष्णु को समर्पित है। ऐसे में द्वादशी तिथि के दिन व्रत पूजा करना बहुत लाभकारी होता है। इस दिन विधि विधान से भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी की व्रत और पूजा करने से सभी पाप नष्ट होते हैं तथा मनुष्य को धन, स्वास्थ्य और वैभव के साथ सभी सुखों की प्राप्ति होती है।
योगेश्वर द्वादशी के दिन भगवान विष्णु, लक्ष्मी जी और ब्रह्मा जी सहित वृंदावन में पधारते हैं। वृंदावन उस स्थान को माना जाता है जहां तुलसी जी विराजित होती है तथा जहाँ उनकी पूरे भक्ति भाव से सेवा की जाती है।
यह भी माना जाता है कि श्री हरि विष्णु का शालिग्राम रूप में माता तुलसी के साथ विवाह इसी दिन हुआ था।
एक और मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु ने इसी तिथि पर तुलसी के पौधे में अपना निवास स्वीकार किया था।
कुछ मान्यताओं के अनुसार विष्णु जी का विवाह तुलसी जी के साथ योगेश्वर द्वादशी के दिन ही हुआ था। इस पावन तिथि पर देवलोक में विभिन्न उत्सव हुए थे, जिन्हें हर वर्ष मनाना सौभाग्य की बात होती है
द्वादशी तिथि में पूजा करने के लिए आपको निम्न वस्तुओं की आवश्यकता होगी:
भगवान श्री कृष्ण को ही योगेश्वर कहा जाता है। उन्होंने सदैव अपने से ज्यादा अपने भक्तों के वचनों का मान रखा इसलिए वह योगेश्वर कहलाए।
महाभारत से जुड़े एक प्रसंग में बताया गया है, कि युद्ध के दौरान एक दिन अर्जुन और दुर्योधन दोनों ही श्री कृष्ण को अपनी सेना में आने का निमंत्रण देने के लिए उनके पास गए। तब श्री कृष्ण ने उनसे कहा, कि वह इस युद्ध के दौरान शस्त्र नहीं उठाएंगे। ऐसे में, अर्जुन ने श्री कृष्ण को चुना और दुर्योधन ने उनकी सेना को। दूसरी और भीष्म पिता कौरवों की सेना का नेतृत्व कर रहे थे।
दुर्योधन चाहता था, कि वह पांडवों पर विजय प्राप्त करें और इस इच्छा को पूर्ण करने के लिए उसने भीष्म पितामह को कई अपशब्द भी कहें। इस कारण भीष्म पितामह ने प्रण लिया, कि वह इस युद्ध के दौरान श्री कृष्ण को हथियार उठाने के लिए विवश कर देंगे।
युद्ध में एक समय आया जब भीष्म पितामह शेर की तरह गरज रहे थे और कोई भी उन्हें वश में नहीं कर पा रहा था। तब श्री कृष्ण ने उन्हें रोकने के लिए अपनी कसम तोड़ दी और एक रथ के पहिए को शस्त्र के रूप में अपने हाथ में उठा लिया। इस प्रसंग के बाद ऐसा कहा गया कि अपने भक्तों की रक्षा करने के लिए श्री कृष्ण ने अपने वचन को तोड़ा था, इसलिए सही अर्थों में वहीं योगेश्वर हैं, क्योंकि उन्होंने योगी होने के तीनों गुण - कर्म योग, भक्ति योग तथा गण योग को सार्थक किया था।
योगेश्वर द्वादशी की पुण्य तिथि पर ही भगवान विष्णु के शालिग्राम अवतार के साथ तुलसी जी का विवाह करने का भी विधान है।
इस दिन घर के आंगन या मंदिर को अच्छी तरह से स्वच्छ और शुद्ध करके आप सुंदर रंगोली बनाएं। देवी तुलसी को साड़ी और आभूषण पहना कर सजायें और उनके निकट भगवान विष्णु के रूप श्री शालिग्राम जी या भगवान विष्णु की मूर्ति रखें। अब इन दोनों का मौली या कलावा से गठबंधन करके इन्हें विवाह के बंधन में जोड़ें। इस तरह तुलसी विवाह की रस्में की जाती हैं। इस दौरान, फल, फूल तथा मिठाई चढ़ाई जाती है और सभी को प्रसाद बांटकर इस विवाह उत्सव को धूमधाम से मनाते हैं।
यह थी योगेश्वर द्वादशी की संपूर्ण जानकारी। उम्मीद है यह जानकारी आपके लिए महत्वपूर्ण साबित होगी। ऐसे ही अन्य पौराणिक तथ्यों के विषय में जानने के लिए जुड़ें रहिये श्री मंदिर से।
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