
क्या आप जानते हैं कुष्मांडा देवी कवच के नियमित पाठ से साधक को अद्भुत ऊर्जा और मानसिक बल प्राप्त होता है? जानें विधि और इसके लाभ विस्तार से।
कुष्मांडा देवी कवच वह दिव्य रक्षा कवच है, जो साधक को असीम ऊर्जा, बल और विजय प्रदान करता है। इस कवच का नित्य पाठ करने से जीवन के सभी संकट दूर होते हैं और आत्मा में शक्ति का संचार होता है। देवी की कृपा से सफलता निश्चित होती है।
जब भी जीवन में अंधकार गहराने लगे, मन विचलित हो जाए और बाधाओं से मार्ग अवरुद्ध हो जाए, तब एक शक्ति है जो अंधकार को चीरकर प्रकाश फैलाती है औऱ वो शक्ति है मां कुष्मांडा देवी की।
मां दुर्गा के अष्टम स्वरूप के रूप में पूजित कुष्मांडा देवी को ब्रह्मांड की सृजनहार कहा जाता है। ‘कु’ का अर्थ है ‘थोड़ा’, ‘उष्मा’ का अर्थ है ‘ऊर्जा’ और ‘अंड’ का मतलब है ‘ब्रह्मांड’। यानी, जो थोड़ी सी ऊर्जा से ही पूरे ब्रह्मांड की रचना कर दे, वही हैं मां कुष्मांडा। वो अनंत ऊर्जा की स्रोत, स्वास्थ्य, समृद्धि और शक्ति की देवी हैं। मां कुष्मांडा का कवच साधक के जीवन में सुरक्षा, शांति और सफलता का ऐसा घेरा रचता है, जिसे कोई भी नकारात्मक शक्ति भेद नहीं सकती।
ऐसी दिव्य माता की उपासना करने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, स्वास्थ्य, सुख, समृद्धि और निर्भयता का संचार होता है। मां कुष्मांडा के आशीर्वाद का विशेष साधन है कुष्मांडा देवी कवच। यह कवच शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक सभी स्तरों पर साधक को सुरक्षा प्रदान करता है। चलिए अब विस्तार से इसके लाभ और कुष्मांडा देवी कवच पाठ की विधि जानते हैं
कवच का अर्थ है सुरक्षा कवच - एक ऐसा आध्यात्मिक कवच, जो साधक के चारों ओर अदृश्य सुरक्षा घेरा बनाता है। कुष्मांडा देवी कवच में मां के विभिन्न रूपों और अंगों का ध्यान करके शरीर के प्रत्येक भाग की रक्षा का आह्वान किया जाता है।
ॐ अस्य श्री कुष्माण्डा कवचस्य
महाकाली ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, कुष्माण्डा देवता।
सर्वरोगोपशमनार्थं जपे विनियोगः।
सिंहासनस्था चतुर्भुजा कुष्माण्डा च शुभा प्रिया।
दिव्यायुधा धारिणी च सर्वाभय प्रदायिनी॥
जपाकुसुमसंकाशा रक्तवस्त्रां सुस्मितानना।
हसन्तीं च ब्रह्मांडजननीं ध्यानं मे मनसि स्थिता॥
ऊँ कुष्माण्डा मे शिरः पातु, भालं पातु महेश्वरी।
नेत्रे पातु सुरेशानीं, कर्णौ पातु सुखप्रदा॥
नासिका पातु कल्याणीं, वदनं वन्दितां सदा।
जिह्वां पातु जगन्माता, ग्रीवा पातु महाबला॥
भुजौ पातु चन्द्रकान्ति:, हस्तौ पातु वरप्रदा।
हृदयं पातु श्रीकान्ति:, नाभिं पातु सुरेश्वरी॥
कटिं पातु जगद्धात्री, गुप्तं पातु शिवप्रिया।
ऊरू पातु महाशक्ति:, जानुनी भुवनेश्वरी॥
पादौ पातु सुराराध्या, सर्वाङ्गं पातु पार्वती।
एवं स्तवेन कवचं, यः पठेच्छ्रद्धयान्वितः॥
सर्वरोग निवारणं, सर्वशत्रु विनाशनम्।
धनधान्य समृद्धिं च, लभते नात्र संशयः॥
कुष्मांडा देवी के कवच का पाठ साधक के मन से हर प्रकार का भय और चिंता दूर करता है। मन स्थिर और शांत रहता है। नकारात्मक विचार और मानसिक तनाव स्वतः समाप्त हो जाते हैं।
कवच में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि यह सर्वरोग निवारणकारी है। जिन व्यक्तियों को बार-बार बीमारियाँ होती हैं या शारीरिक दुर्बलता महसूस होती है, उनके लिए यह कवच अत्यंत लाभकारी है। रोग प्रतिरोधक शक्ति में वृद्धि होती है।
यह कवच साधक के चारों ओर एक ऐसा ऊर्जात्मक सुरक्षा घेरा बना देता है, जिससे शत्रु, बुरी दृष्टि, काले जादू या अन्य नकारात्मक शक्तियाँ साधक का कुछ नहीं बिगाड़ सकतीं।
मां कुष्मांडा को समृद्धि, ऐश्वर्य और धन की देवी कहा गया है। कवच का नियमित पाठ साधक के जीवन में आर्थिक संपन्नता, पारिवारिक सुख-शांति और व्यवसायिक सफलता लाता है।
मां कुष्मांडा का आशीर्वाद साधक को अदम्य आत्मबल और निर्भयता प्रदान करता है। जीवन के संघर्षों में साधक धैर्य और साहस के साथ आगे बढ़ता है।
कुष्मांडा देवी की उपासना से जन्मपत्री में विद्यमान ग्रह दोषों का शमन होता है। साथ ही, घर में वास्तु दोष अथवा नकारात्मक ऊर्जा हो तो वह समाप्त होकर घर में शांति और समृद्धि आती है।
शुद्धिकरण
आचमन और प्राणायाम
संकल्प
दीप प्रज्वलन
देवी का ध्यान
सिंहासना स्थितां देवीं, चतुर्भुजां त्रिलोचनाम्।
जपाकुसुम संकाशां, कुष्माण्डा देवीं नमाम्यहम्॥
कवच पाठ
समापन
मां कुष्मांडा का कवच साधक के लिए वह दिव्य ढाल है, जो उसे हर आपदा, भय और बाधा से सुरक्षित रखता है। यह कवच मां के उस मुस्कान की स्मृति है, जिससे ब्रह्मांड का सृजन हुआ। अगर, आप जीवन में स्थिरता, समृद्धि, स्वास्थ्य और आध्यात्मिक उन्नति की तलाश में हैं, तो मां कुष्मांडा का यह कवच आपकी हर समस्या का समाधान बन सकता है। श्रद्धा, विश्वास और नियमितता के साथ इसका पाठ करें और देखें कैसे आपके जीवन में अद्भुत सकारात्मक परिवर्तन आता है।
जय मां कुष्मांडा!
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