
मदन मोहन अष्टकम श्रीकृष्ण के सुंदर, मधुर और आकर्षक स्वरूप की स्तुति है। इसके पाठ से मानसिक शांति, मनोकामना पूर्ति और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।
मदन मोहन अष्टकम भगवान श्रीकृष्ण के मदनमोहन रूप की स्तुति में रचित एक मधुर और भक्तिमय अष्टक है। इसमें श्रीकृष्ण की दिव्य सौंदर्य, प्रेम, करुणा और आकर्षण शक्ति का सुंदर वर्णन मिलता है। इसका पाठ मन को शांत करता है, भक्ति बढ़ाता है और हृदय में प्रेम व आनंद का संचार करता है।
श्री कृष्ण भगवान विष्णु जी के ही अवतार हैं। जिसे कई नामों ने जाना जाता है जैसे - बांके बिहारी, कान्हा, गोपाल, श्याम, केशव आदि । उन्ही का एक नाम है मदन मोहन। भगवान श्री कृष्ण की सुंदरता और उनकी अदाएं गोपियों का मन मोह लिया करती थी। जिस कारण गोपियाँ उन्हें मोहन कह कर पुकारती थीं। इस तरह भगवान श्री कृष्ण का नाम मोहन पड़ा था।और मदन मोहन श्री कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए मदन मोहन अष्टकम स्त्रोत पाठ किया जाता है। इस स्त्रोत में श्री कृष्ण की महिमा का वर्णन किया गया है। इस स्त्रोत का नित्य पाठ करने से भक्त भगवान के बहुत नजदीक आने लगता है। और भक्त की भक्ति में निरंतर वृद्धि होती रहती है। भक्ति में वृद्धि के कारण भक्त भगवान के प्रति ज्यादा समर्पित हो जाते हैं।
भगवान श्री कृष्ण की पूजा अर्चना करना बहुत ही सरल है। श्री कृष्ण अपने भक्तों पर जल्दी प्रसन्न होते है। भक्त उनके रूप और भक्ति में इस कदर डूब जाते हैं कि, उन्हें खुद का भी कोई ध्यान नहीं रहता है। मदन मोहन अष्टकम स्त्रोत भगवान श्री कृष्ण को आसानी से प्रसन्न करने वाला मंत्र है। यदि कोई भक्त इस स्त्रोत का नियमित रूप से पाठ करता है तो इससे श्री कृष्ण की कृपा अति शीध्र मिलती है। श्री कृष्ण जमाष्टमी के समय इस स्त्रोत का विशेष रूप से पाठ किया जाता है। जन्म अष्टमी के दौरान इस स्त्रोत का पाठ करने से विशेष लाभ मिलता है। मदन मोहन अष्टकम स्त्रोत का पाठ करने से मन को परम शांति का अनुभव प्राप्त होता है।
इस मंत्र का पाठ करने से तनाव दूर हो जाता है।
मानसिक शांति प्राप्त होती है। साथ ही मन को सुकून मिलता है।
नित्य इस स्त्रोत का पाठ करने से जीवन में सफलता प्राप्त होती है।
प्रत्येक कार्य में विजय प्राप्त होती है। उसका कोई कार्य रुकता नहीं है।
इस स्त्रोत का पाठ करने से शत्रुओं के प्रकोप से भी बचा जा सकता है।
यदि कोई व्यक्ति श्री कृष्ण का आशीर्वाद पाना चाहता है तो भगवान श्री कृष्ण की प्रतिमा के समक्ष उनके इस पाठ का जप करना चाहिए।
इससे मोहन जी की कृपा बनी रहती है। साथ ही सुख, समृद्धि और धन की प्राप्ति भी होती है। व्यक्ति का जीवन सुखमय हो जाता है।
जय शङ्खगदाधर नीलकलेवर पीतपटाम्बर देहि पदम् । जय चन्दनचर्चित कुण्डलमण्डित कौस्तुभशोभित देहि पदम् ॥1॥
अर्थात - जय शंखगदाधर नीलकलेवर मुझे एक पीला वस्त्र और एक कदम दीजिये । जय चन्दन-कुण्डलों से सुशोभित, कौस्तुभ मणि से सुशोभित अपना निवास मुझे दीजिये।
जय पङ्कजलोचन मारविमोहन पापविखण्डन देहि पदम् । जय वेणुनिनादक रासविहारक वङ्किम सुन्दर देहि पदम् ॥2॥
अर्थात - जय पंकजलोचन मारविमोहन मुझे पापों को विखंडित करने का साहस दीजिये। जय वेणुनिनादक रसविहारक, वंकिम, सुंदर मुझे पैर जमाने की हिम्मत दें।
जय धीरधुरन्धर अद्भुतसुन्दर दैवतसेवित देहि पदम् । जय विश्वविमोहन मानसमोहन संस्थितिकारण देहि पदम् ॥3॥
अर्थात - जय धीराधुरंधर अदभुत सुन्दर मुझे देवताओं द्वारा सेवित पद दीजिये। जय विश्वविमोहन, मानसमोहन मुझे अस्तित्व के कारण का स्थान दीजिये।
जय भक्तजनाश्रय नित्यसुखालय अन्तिमबान्धव देहि पदम् । जय दुर्जनशासन केलिपरायण कालियमर्दन देहि पदम् ॥4॥
अर्थात - जय भक्तजनाश्रय नित्यसुखालाय, मेरे आखिरी रिश्तेदार , मुझे अपने चरण दीजिये। जय दुर्जनशासन केलीपरायण, हे अँधेरे को कुचलने वाले, मुझे अपने चरण दीजिये।
जय नित्यनिरामय दीनदयामय चिन्मय माधव देहि पदम् । जय पामरपावन धर्मपरायण दानवसूदन देहि पदम् ॥5॥
अर्थात - जय नित्य निरामया, दीन दयामय, हे चिन्मय माधव, मुझे अपने चरण दीजिये। जय परम पावन धर्मपरायण, हे राक्षसों के विनाशक, मुझे अपने निवास पर स्थान दें।
जय वेदविदांवर गोपवधूप्रिय वृन्दावनधन देहि पदम् । जय सत्यसनातन दुर्गतिभञ्जन सज्जनरञ्जन देहि पदम् ॥6॥
अर्थात - जय वेदविदंवर गोपवधुप्रिया, हे वृन्दावन के धन, मुझे अपने चरण दीजिये। जय सत्यसनातन दुर्गतिभजन, हे धर्मियों की प्रसन्नता, मुझे अपने निवास पर स्थान दीजिये।
जय सेवकवत्सल करुणासागर वाञ्छितपूरक देहि पदम् । जय पूतधरातल देवपरात्पर सत्त्वगुणाकर देहि पदम् ॥7॥
अर्थात - जय सेवकवत्सल करुणासागर, मुझे वांछित पूरक पद दें। जय पूत धरातल, देव परात्पर,मुझे सतोगुण का निवास दें।
जय गोकुलभूषण कंसनिषूदन सात्वतजीवन देहि पदम् । जय योगपरायण संसृतिवारण ब्रह्मनिरञ्जन देहि पदम् ॥8॥
अर्थात - जय गोकुलभूषण कंसनिशुदाना, मुझे सात्वतजीवन का पद दें। जय योगपरायण संसृतिवरण,हे ब्रह्मानिरंजन, मुझे अपने निवास पर स्थान दें।
॥ इति श्रीमदनमोहनाष्टकं सम्पूर्णम् ॥
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