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कंस वध क्या है?

कंस वध वह घटना है जिसमें भगवान श्रीकृष्ण ने अपने अत्याचारी मामा कंस का वध किया था। यह धर्म की स्थापना और अधर्म के अंत का प्रतीक मानी जाती है।

कंस वध के बारे में

कंस वध भगवान श्रीकृष्ण द्वारा किए गए सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र कार्यों में से एक माना जाता है। कंस मथुरा का अत्याचारी राजा था जिसने अपने प्रजा पर अत्याचार किए और भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्रीकृष्ण को मारने का प्रयास किया। जब श्रीकृष्ण बड़े हुए, तब उन्होंने मथुरा जाकर कंस को युद्ध में पराजित कर उसका वध किया। इस प्रकार, उन्होंने धर्म की स्थापना और अधर्म के अंत का संदेश दिया। कंस वध केवल एक युद्ध नहीं बल्कि सत्य, न्याय और धर्म की विजय का प्रतीक है।

कंस वध कब और क्यों मनाया जाता है?

कृष्ण जी ने कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को अपने अत्याचारों से सभी को कष्ट पहुंचाने वाले कंस का वध का वध किया था, और प्रजा को भयमुक्त किया था। कंस वध के बाद भगवान श्री कृष्ण ने कंस के पिता, यानि अपने नाना 'राजा उग्रसेन' को पुनः मथुरा का राजा बनाया था।

साल 2025 में 'कंस वध' कब पड़ रहा है?

  • कंस वध 01 नवम्बर 2025, शनिवार को पड़ रहा है।
  • दशमी तिथि प्रारम्भ - अक्टूबर 31, 2025 को 10:03 ए एम बजे
  • दशमी तिथि समाप्त - नवम्बर 01, 2025 को 09:11 ए एम बजे

इस दिन के अन्य शुभ मुहूर्त

मुहूर्त

समय

ब्रह्म मुहूर्त

04:23 ए एम से 05:14 ए एम

प्रातः सन्ध्या

04:49 ए एम से 06:06 ए एम

अभिजित मुहूर्त

11:19 ए एम से 12:04 पी एम

विजय मुहूर्त

01:33 पी एम से 02:18 पी एम

गोधूलि मुहूर्त

05:17 पी एम से 05:43 पी एम

सायाह्न सन्ध्या

05:17 पी एम से 06:34 पी एम

अमृत काल

11:17 ए एम से 12:51 पी एम

निशिता मुहूर्त

11:16 पी एम से 12:07 ए एम, नवम्बर 02

कंस वध का महत्व क्या है?

पौराणिक कथाओं में कंस को मथुरा के दुष्ट और अत्याचारी राजा के रूप में मान्यता दी गई है। भगवान विष्णु ने अपने आठवें अवतार कृष्ण के रूप में जन्म लिया और कंस का वध करके अपने माता, पिता को कारागार से मुक्त कराया। तभी से 'कंस वध' का पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत के तौर पर मनाया जाता है। ये दिन उत्तर प्रदेश और मथुरा में विशेष रूप से मनाया जाता है, और कई विशेष कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं।

क्यों मनाते हैं कंस वध?

कंस वध का पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। कंस मथुरा का निर्दयी राजा था, जिसने अपनी बहन देवकी और उसके पति वसुदेव को कारागार में डाल दिया था। भगवान विष्णु ने आठवें अवतार श्रीकृष्ण के रूप में जन्म लेकर न केवल अपने माता-पिता को मुक्त किया, बल्कि समस्त मथुरा को भी कंस के अत्याचार से आज़ादी दिलाई।

कंस वध के दिन किसकी पूजा करें?

  • इस दिन भगवान श्रीकृष्ण और बलराम जी की विशेष पूजा करनी चाहिए।
  • कुछ स्थानों पर भगवान विष्णु के रूप में श्रीकृष्ण की आराधना की जाती है।
  • मथुरा में इस दिन विशेष मंदिरों में कंस वध उत्सव भी मनाया जाता है।

कंस वध के दिन पूजा कैसे करें?

  • प्रातः स्नान के बाद भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र को स्नान कराएं।
  • पीले वस्त्र पहनाकर तुलसी दल, माखन-मिश्री, फल और फूल अर्पित करें।
  • श्रीकृष्ण चालीसा या गोविंद नाम संकीर्तन करें।
  • दीपक जलाएं और “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः” मंत्र का जप करें।
  • अंत में भगवान से अपने जीवन में धर्म और सद्गुण की वृद्धि की प्रार्थना करें।

कंस वध के दिन क्या उपाय करने चाहिए?

  • श्रीकृष्ण के नाम का स्मरण करने से शत्रुओं पर विजय मिलती है।
  • तुलसी दल अर्पण से मानसिक शांति और घर में समृद्धि आती है।
  • गाय को गुड़ और रोटी खिलाने से पापों का नाश होता है।
  • इस दिन दान-पुण्य करने से पितरों की कृपा प्राप्त होती है।

कंस वध मनाने के लाभ

  • यह दिन जीवन से नकारात्मकता, भय और अन्याय को दूर करता है।
  • श्रीकृष्ण की कृपा से घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
  • जो व्यक्ति इस दिन व्रत या पूजा करता है, उसे अपने सभी कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।

क्यों किया गया था कंस का वध?

द्वापर युग में हुई एक आकाशवाणी में कहा गया था कि “कंस की मृत्यु देवकी की आठवीं संतान के हाथों होगी।” यह सुनकर कंस ने देवकी की सभी संतानों को मार डाला, लेकिन आठवीं संतान — श्रीकृष्ण — वसुदेव द्वारा गोकुल पहुंचा दिए गए। बड़े होकर जब श्रीकृष्ण मथुरा लौटे, तो उन्होंने कंस द्वारा रचे सभी षड्यंत्रों को विफल किया और अंततः उसका वध कर सत्य और धर्म की स्थापना की।

कंस वध की पौराणिक कथा

द्वापर युग में हुई एक आकाशवाणी भगवान कृष्ण के जन्म कारण बनी थी। इस आकाशवाणी के अनुसार कंस की मृत्यु देवकी की आठवीं संतान से होनी थी। कंस को पता था कि कृष्ण ही देवकी की आठवीं संतान है, इसलिए उसने कृष्ण को मारने के लिए कई षडयंत्र रचे, लेकिन वे सब विफल होते गए। वह बार-बार राक्षसों को कृष्ण का वध करने के लिए गोकुल भेजा करता था, लेकिन कृष्ण सबको परलोक भेज देते थे।

कंस को अपनी मृत्यु का भय इतना था कि वह किसी भी तरह कृष्ण का वध कर देना चाहता था, इसलिए उसने एक योजना बनाई। उसने एक उत्सव का आयोजन किया और कृष्ण और बलराम को उस उत्सव में आमंत्रित करने के लिए अक्रूर जी को गोकुल भेजा। उसकी योजना थी कि वह उत्सव के बहाने कृष्ण और बलराम को मथुरा बुलाकर उन्हें आसानी से मार डालेगा।

कृष्ण और बलराम अक्रूर जी के साथ मथुरा आए। कंस ने उन्हें मारने का सारा इंतजाम कर लिया था। उसने द्वार पर कुवलयापिड़ा नाम का एक हाथी खड़ा कर रखा था, जो बहुत हिंसक था। कंस ने महावत को समझा रखा था कि कृष्ण और बलराम जब द्वार पर आएं, तो वह हाथी के द्वारा उन्हें मौत के घाट उतार दे।

कुछ देर बाद जब कृष्ण-बलराम द्वार पर पंहुचे तो देखा कि रास्ते में एक हाथी खड़ा है। कृष्ण हाथी के पास गए और उसकी आँखों में गौर से देखने लगे। लेकिन हाथी उन्हें अपनी सूंड से मारने की कोशिश करने लगा। तब कृष्ण ने उसकी सूंड को धीरे से थपथपाया, और ऐसा करते ही उसके प्राण निकल गए।

जब कंस को पता चला कि उसकी हाथी वाली चाल असफल हो गई है, तो उसने चाणूर और मुष्टिक को बुलाया। ये दोनों पूरे मथुरा में मल्लयुद्ध के सबसे श्रेष्ठ पहलवान थे। कंस ने इन दोनों को कृष्ण और बलराम से मल्ल युद्ध करने और उन्हें मारने के लिए कहा।

अब मल्ल युद्ध आरंभ होने वाला था और इसे देखने के लिए बहुत सारे लोग वहां पर एकत्रित हुए। चाणूर के साथ कृष्ण और मुष्टिक के साथ बलराम लड़ने लगे। कृष्ण ने चाणूर के दोनों हाथों को पकड़कर उसे हवा में घुमाया और जमीन पर पटक दिया। इससे पल भर में चाणूर के प्राण निकल गए।

बलराम ने मुष्टिक को एक जोरदार मुक्का मारा, जिससे उसके मुख से खून बहने लगा और वह जमीन पर गिरकर मर गया। यह देखकर वहां उपस्थित समस्त प्रजा को बड़ी प्रसन्नता हुई और वे कृष्ण-बलराम के नाम का जयघोष करने लगे।

कंस यह देखकर बहुर क्रोधित हुआ। उसने अपने सैनिकों से कहा- देखते क्या हो? इन दोनों के टुकड़े-टुकड़े कर दो। लेकिन वहां पर यादव वंश के लोग भी उपस्थित थे, जो कंस के सैनिकों से भिड़ गए। चारों तरफ भगदड़ मच गयी। कंस ने भी कृष्ण को मारने के लिए अपनी तलवार उठा ली। लेकिन इसी बीच श्री कृष्ण कंस के पास जा पहुंचे और उसके केश पकड़कर उसे जमीन पर पटक दिया। फिर उन्होंने कंस की छाती पर मुष्टिका से एक प्रहार किया जिससे उसी क्षण कंस की मृत्यु हो गई।

इसके बाद श्री कृष्ण ने उग्रसेन, जो कंस के पिता थे, उन्हें पुनः मथुरा का राजा बना दिया और अपने माता-पिता को भी कारागृह से मुक्त कराया।

जिस दिन कृष्ण ने कंस का वध किया था, वो कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि थी। तब से इस दिन को कंस वध के रूप में मनाया जाने लगा।

तो यह थी कंस वध से जुड़ी विशेष जानकारी एवं पौराणिक कथा। आइए हम सब इस दिन को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाएं और भगवान कृष्ण की पूजा करें। व्रत-त्यौहारों व अन्य धार्मिक जानकारियां लगातार पाते रहने के लिये जुड़े रहिये 'श्री मंदिर' पर।

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Published by Sri Mandir·October 27, 2025

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