सकट चौथ व्रत से करें गणेश जी की उपासना, पाएं संतान सुख, समृद्धि और संकटों से मुक्ति का आशीर्वाद।
सकट चौथ एक विशेष हिंदू व्रत है जो माघ माह (जनवरी-फरवरी) के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी (चौथी तिथि) को मनाया जाता है। इसे सकट चौथ व्रत या सकट चौथ कथा भी कहा जाता है। इस दिन विशेष रूप से गणेश जी की पूजा की जाती है, और इसे विशेष रूप से महिलाओं द्वारा रखा जाता है। यह व्रत संतान सुख की प्राप्ति और घर में सुख-शांति के लिए किया जाता है।
सतयुग की बात है राजा हरीशचंद्र के नगर में पूरी प्रजा सुखपूर्वक निवास करती थी। वहां पर ऋषि शर्मा नामक एक ब्राह्मण अपनी धर्मपत्नी और पुत्र के साथ निवास करते थे। जब उनका पुत्र छोटा होता है, तभी उस ब्राह्मण की मृत्यु हो जाती है और उसकी पत्नी अपने पुत्र का पालन-पोषण करने लगती है।
ब्राह्मणी भगवान गणेश की परम भक्त थी, इसलिए वह हर सकट चौथ पर व्रत रखती और गणपति जी की पूजा-अर्चना करती थी।
एक दिन उनका पुत्र पूजन स्थल पर पहुंच जाता है, और वहां पर रखी भगवान गणेश की प्रतिमा को खिलौना समझ पर खेलने लगता है। वह खेलते-खेलते घर से बहुत दूर निकल जाता है और शाम को घर वापिस नहीं लौटता है।
उस नगर में एक कुम्हार भी रहता था, जो ऐसे ही एक छोटे बच्चे को ढूंढ रहा होता है। वह कुम्हार मिट्टी के बर्तनों को बनाने के लिए काफी मेहनत करता था लेकिन उसका आवाँ गरम ही नहीं रहता था। आँवा यानी आग की भट्टी, जिसमें बर्तन पकाते हैं।
कुम्हार उस आवाँ में जब भी आग जलाता था तो वह कुछ समय बाद बुझ जाती थी, जिसके कारण उसके मिट्टी के बर्तन कच्चे रह जाते थे। चूंकि इसी से उसकी रोज़ी रोटी चलती थी, इसलिए वह काफी परेशान, दुखी और चिंतित रहने लगा।
इस समस्या को दूर करने के लिए वह एक तांत्रिक के पास जाता है, और उससे इस समस्या का हल पूछता है। तब वह तांत्रिक उसे बोलता है कि तुम उस आवाँ के बीच में किसी छोटे बालक की बलि दे दो, इससे उसमें आग जलती रहेगी और तुम्हारे बर्तन पक जाएंगे।
संयोगवश, उसे ब्राह्मणी का खोया हुआ पुत्र मिल जाता है और वह उसे पकड़ लाता है। इसके पश्चात् वह उस बालक को आवाँ के बीच में बैठा देता है और अपने बर्तनों को रखकर आग जला देता है।
जब सुबह वह कुम्हार अपने बर्तनों को देखने लिए आँवे के पास जाता है तो आश्चर्यचकित रह जाता है। उस बच्चे को एक खरोंच तक नहीं आती है और वह भगवान गणेश जी की प्रतिमा के साथ खेल रहा होता है। उस आँवे के सारे बर्तन भी पक जाते हैं, लेकिन बच्चा बिल्कुल सुरक्षित बच जाता है।
इस घटना के बाद कुम्हार डर जाता है और राजा के समक्ष अपने इस कृत्य के बारे में बता देता है। उधर बालक की माँ भी उसे परेशान होकर ढूंढ रही होती है और अत्यंत दुखी हो जाती है।
जब राजा के माध्यम से माँ को अपने पुत्र की खबर मिलती है तो वह राजा के दरबार में पहुंच जाती है। राजा उससे पूछते हैं कि तुम्हारा बच्चा किस प्रकार सुरक्षित बच गया तो वह बताती है कि, “हे राजन मैं कोई टोटका नहीं करती। भगवान गणेश में मेरी अपार आस्था है और मैं उनका पूजन करती हूँ, और सकट चौथ का व्रत रखती हूँ।”
तब लोगों को इस व्रत की महिमा समझ में आ जाती है और तभी से महिलाएं अपनी संतान और परिवार के सौभाग्य और लंबी आयु के लिए इस व्रत को करने लगती हैं।
तो दोस्तों यह थी सकट चौथ की व्रत कथा, हम आशा करते हैं कि सभी माताओं की संतानों को दीर्घायु का आशीष मिले और उनके परिवार में सुख-समृद्धि का वास हो।
आप ऐसी ही कथाओं के लिए श्री मंदिर के साथ बने रहें।
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