यम दीपक: इस पावन पर्व पर यमराज की पूजा से पाएं सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य। जानें पूजा विधि और महत्व।
कार्तिक माह में आने वाले महापर्व दीपावली के दौरान त्रयोदशी तिथि अर्थात धनतेरस के दिन माता लक्ष्मी, भगवान धन्वंतरि के साथ मृत्यु के देवता यमराज की पूजा-अर्चना का विधान भी है। जिसमें यम देवता के लिए घर के बाहर दीया जलाया जाता है। मान्यताओं के अनुसार इस दिन यम देवता को दीप दान करने से घर के किसी भी सदस्य को अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। यमराज देवता को समर्पित यह पर्व यम दीपम या यम दीपदान के नाम से भी जाना जाता है।
यम दीपम, शनिवार, अक्टूबर 18, 2025 को
मुहूर्त | समय |
ब्रह्म मुहूर्त | 04:18 ए एम से 05:08 ए एम |
प्रातः सन्ध्या | 04:43 ए एम से 05:58 ए एम |
अभिजित मुहूर्त | 11:20 ए एम से 12:06 पी एम |
विजय मुहूर्त | 01:38 पी एम से 02:24 पी एम |
गोधूलि मुहूर्त | 05:28 पी एम से 05:53 पी एम |
सायाह्न सन्ध्या | 05:28 पी एम से 06:43 पी एम |
अमृत काल | 08:50 ए एम से 10:33 ए एम |
निशिता मुहूर्त | 11:18 पी एम से 12:08 ए एम, अक्टूबर 19 |
कार्तिक मास की त्रयोदशी तिथि को धनतेरस के साथ-साथ यम दीपम का पर्व भी मनाया जाता है। इस दिन माता लक्ष्मी और भगवान धन्वंतरि की पूजा के साथ मृत्यु के देवता यमराज की आराधना का विशेष महत्व होता है। परंपरा के अनुसार इस दिन संध्या समय घर के बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीपक जलाया जाता है। यह दीपक यम दीप कहलाता है। मान्यता है कि इस दिन यमराज को दीपदान करने से घर के किसी भी सदस्य की अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता और परिवार पर यमदेव की कृपा बनी रहती है।
यम दीपम मनाने की परंपरा एक प्राचीन कथा से जुड़ी है।
कथा:
राजा हेम के पुत्र की जन्मकुंडली में विवाह के चौथे दिन अकाल मृत्यु का योग लिखा था। विवाह के बाद नियति के अनुसार चौथे दिन उसकी मृत्यु हो गई। यमदूत जब प्राण लेने आए, तो उसकी पत्नी विलाप करने लगी। पत्नी की वेदना से प्रभावित होकर यमदूतों ने यमराज से पूछा कि क्या अकाल मृत्यु से बचने का कोई उपाय है। तब यमराज ने कहा – “जो मनुष्य धनतेरस की गोधूलि बेला में मेरे नाम का दीप जलाएगा, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहेगा।” तभी से इस दिन यम दीपदान करने की परंपरा शुरू हुई।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, धनतेरस के दिन शुभ मुहूर्त में एक दीपक मृत्यु के देवता यमराज के लिए जलाया जाता है। हमेशा इस दीपक को घर के बाहर ही जलाने की परंपरा है। ऐसी मान्यता है कि दीपदान करने से यमराज प्रसन्न होते हैं और उस परिवार के सदस्यों की अकाल मृत्यु से रक्षा करते हैं। साथ ही माना जाता है कि जो मनुष्य पूर्ण विधि-विधान से पूजा-अर्चना करके यमराज देवता को दीपदान करते हैं वह सभी पापों से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त होते हैं।
धनतेरस के दिन यमराज के लिए दीपक जलाने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। मान्यता है कि इस दिन संध्या के समय घर के बाहर, विशेषकर दक्षिण दिशा में दीपक जलाने से मृत्यु के देवता यमराज प्रसन्न होते हैं और परिवार के सदस्यों को अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता। पौराणिक कथा के अनुसार, एक राजा हेम के पुत्र की कुंडली में विवाह के चौथे दिन मृत्यु का योग था। जब यमदूत प्राण लेने आए, तो नवविवाहिता पत्नी ने दीपक जलाकर और आभूषणों से घर को सजाकर यमदूतों का ध्यान भटका दिया। इस बीच पूरी रात यमराज के नाम का दीपक प्रज्वलित रहा और राजकुमार की जान बच गई। तभी से यह परंपरा शुरू हुई कि धनतेरस पर यमराज के लिए दीपदान करने से अकाल मृत्यु का संकट टल जाता है।
इसलिए धनतेरस की शाम को घर के बाहर दीपक जलाना यमराज की कृपा प्राप्त करने और दीर्घायु का आशीर्वाद पाने का प्रतीक माना जाता है।
धनतेरस (कार्तिक त्रयोदशी) की संध्या को यमराज के लिए दीपदान करना बेहद शुभ माना गया है। इसे यम दीपम या यम दीपदान कहते हैं। पूजा और दीपदान करने का तरीका इस प्रकार है:
महत्व – मान्यता है कि यम दीपम के दिन किया गया यह दीपदान घर के सभी सदस्यों को अकाल मृत्यु से बचाता है और परिवार में सुख-समृद्धि बनाए रखता है।
यमराज के लिए दीपदान करें – धनतेरस (कार्तिक त्रयोदशी) की संध्या बेला में घर के मुख्य द्वार के बाहर दक्षिण दिशा की ओर तिल या सरसों के तेल का दीपक जलाएं। यमराज का स्मरण करें – दीपदान करते समय प्रार्थना करें कि यमदेव परिवार को अकाल मृत्यु और अशुभ घटनाओं से बचाएं। भगवान धन्वंतरि और माता लक्ष्मी की पूजा करें – धनतेरस पर स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए धन्वंतरि भगवान तथा लक्ष्मी माता की पूजा का विशेष महत्व है। पौराणिक कथा श्रवण – राजा हेम और उनके पुत्र की कथा का पाठ या श्रवण करें, इससे यम दीपदान का फल और बढ़ जाता है। दान-पुण्य करें – दीपदान के साथ फल, अन्न, वस्त्र या जरूरतमंदों को दान करना शुभ होता है।
दीपक घर के अंदर न रखें – यम दीपक हमेशा घर के बाहर और दक्षिण दिशा की ओर ही जलाना चाहिए। अशुभ वस्तुएँ न खरीदें – इस दिन लोहे, काँच और काले रंग की वस्तुएँ खरीदने से बचना चाहिए। झगड़ा या कटु वचन न बोलें – मान्यता है कि इस दिन बोली गई कड़वी बातें परिवार के सुख पर नकारात्मक असर डाल सकती हैं। दीपक बुझने न दें – यम दीपक को संध्या समय जलाने के बाद स्वयं बुझाना अशुभ माना जाता है। अकाल मृत्यु का भय न रखें – अगर दीपदान न कर पाएं तो इसे अपशकुन न मानें, बल्कि सच्चे मन से यमदेव का ध्यान करें।
मान्यता है कि यम दीपम पर किए गए ये छोटे-छोटे उपाय परिवार की रक्षा करते हैं और घर में दीर्घायु, सुख-समृद्धि और शांति बनाए रखते हैं।
धनतेरस (कार्तिक त्रयोदशी) के दिन यमराज के लिए दीपदान करना केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि धार्मिक दृष्टि से अत्यंत कल्याणकारी माना गया है। शास्त्रों और मान्यताओं के अनुसार, यम दीपम करने से अनेक आध्यात्मिक और जीवनोपयोगी लाभ प्राप्त होते हैं— अकाल मृत्यु से रक्षा
यह दीपक मृत्यु देवता यमराज को समर्पित होता है। मान्यता है कि यम दीपदान करने वाले परिवार का कोई भी सदस्य अकाल मृत्यु के भय से मुक्त रहता है।
परिवार की दीर्घायु और स्वास्थ्य: दीपदान करने से परिवार के सदस्यों को उत्तम स्वास्थ्य और लंबी आयु का आशीर्वाद मिलता है।
नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति: यम दीपक जलाने से घर के वातावरण से नकारात्मक ऊर्जा और अशुभ प्रभाव दूर होते हैं।
सुख-समृद्धि की वृद्धि: धनतेरस को लक्ष्मी पूजन और यम दीपदान का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इससे घर में धन-धान्य और समृद्धि आती है।
पापों का शमन और मोक्ष की प्राप्ति: शास्त्रों के अनुसार, यमराज को दीपदान करने वाला व्यक्ति पापों से मुक्त होकर मोक्ष का अधिकारी बनता है।
दांपत्य और पारिवारिक जीवन में स्थिरता: अखंड सौभाग्य और परिवार की एकता बनी रहती है, साथ ही पति-पत्नी के रिश्ते में मजबूती आती है।
आध्यात्मिक पुण्य लाभ: यम दीपम करने से दीपावली का पुण्य अनेक गुना बढ़ जाता है और आत्मा को शांति का अनुभव होता है। संक्षेप में, यम दीपम जीवन की सुरक्षा, सुख-समृद्धि और आध्यात्मिक उत्थान का प्रतीक है।
धनतेरस (कार्तिक त्रयोदशी) के दिन यमराज की कृपा प्राप्त करने और अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति पाने के लिए शास्त्रों में कुछ विशेष धार्मिक उपाय बताए गए हैं। इन उपायों को सही विधि से करने पर परिवार पर आने वाले संकट दूर होते हैं और सुख-समृद्धि बढ़ती है।
इस प्रकार यम दीपम के धार्मिक उपायों से परिवार का अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है, घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है और पापों का शमन होता है।
Did you like this article?
स्कंद षष्ठी 2025: जानें तिथि, पूजा विधि और कथा। इस दिन भगवान स्कंद की पूजा से मिलती है सुख, समृद्धि और संकटों से मुक्ति।
पढ़ें ये कथा होगी घर में लक्ष्मी का आगमन
लाभ पंचमी 2025: जानें लाभ पंचमी की तारीख, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि। इस दिन माँ लक्ष्मी की पूजा से पाएं समृद्धि और सफलता का आशीर्वाद।