सनातन धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व है, भाद्रपद के प्रतिपदा तिथि से शुरु होकर अमावस्या तक चलता है। इस दौरान लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान जैसे कई अनुष्ठान करते हैं। इसके अलावा मान्यता है कि पितृ पक्ष में दान करने से पितरों को प्रसन्नता मिलती है और वे अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं। इसलिए इस पूजा के साथ अतिरिक्त विकल्प के रूप में दिए गए जैसे हरिद्वार में ब्राह्मण भोजन एवं गंगोत्री धाम में गंगा दूध अभिषेक करना भी बेहद लाभकारी माना जाता है। मान्यता है कि पितृ पक्ष के दौरान पूर्वजों की आत्माएं धरती पर आती हैं इसलिए उनके वंशज उन्हें संतुष्ट करने के लिए ये अनुष्ठान करते हैं। पितृ पक्ष से जुड़ी कई कहानियां प्रचलित हैं, लेकिन सबसे दिलचस्प कथा महाभारत के कर्ण से जुड़ी है। कथा के अनुसार, महाभारत में कर्ण की मृत्यु के बाद जब उनकी आत्मा स्वर्ग पहुंची तो उन्हें बहुत सारा सोना दिया गया। कर्ण भोजन की तलाश कर रहे थे, तभी उन्होंने इंद्र देव से पूछा कि उन्हें भोजन की जगह सोना क्यों दिया गया? इंद्र देव ने कर्ण को बताया कि उसने अपने जीवन में सिर्फ सोना दान किया लेकिन अपने पूर्वजों को कभी भी भोजन दान नहीं किया। तब कर्ण ने इंद्र से कहा उन्हें यह ज्ञात नहीं था कि उनके पूर्वज कौन थे और इसी वजह से वह कभी उन्हें कुछ दान नहीं कर सकें। इन सबके बाद कर्ण को उनकी गलती सुधारने का मौका दिया और 15 दिन के लिए पृथ्वी पर वापस भेजा, जहां उन्होंने अपने पूर्वजों को याद करते हुए उनका श्राद्ध कर उन्हें भोजन दान किया एवं तर्पण किया। इन्हीं 15 दिन की अवधि को पितृ पक्ष कहा गया। पितृ पक्ष के दौरान पड़ने वाले प्रत्येक दिन का अपना महत्व होता है।
वहीं बात करें अगर पितृ पक्ष की प्रतिपदा तिथि कि तो इस दिन परिवार के उन मृतक सदस्यों का श्राद्ध किया जाता है, जिनकी मृत्यु प्रतिपदा तिथि पर हुई हो। इस दिन शुक्ल पक्ष अथवा कृष्ण पक्ष दोनों ही पक्षों की प्रतिपदा तिथि का श्राद्ध किया जा सकता है। मोक्ष की नगरी के रूप में विख्यात काशी में पवित्र पिशाच मोचन कुंड स्थित है, जो पितृ दोष शांति महापूजा के लिए महत्वपूर्ण स्थल है। गरुड़ पुराण में वर्णित इस कुंड का आध्यात्मिक महत्व बहुत अधिक है। काशी खंड के अनुसार पिशाच मोचन कुंड गंगा के पृथ्वी पर अवतरण से भी पहले से मौजूद है। सदियों से देश भर से श्रद्धालु काशी के इस कुंड में अपने पूर्वजों के लिए पिंडदान करने और उनकी आत्मा की मुक्ति के लिए आशीर्वाद मांगने आते हैं। वहीं पितृ दोष शांति महापूजा के साथ काशी में गंगा आरती करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है और पारिवारिक कलह का समाधान होता है। इसके अलावा पितृपक्ष में पूर्वजों के लिए दान पुण्य करने का भी विधान है। मान्यता है कि इस समय दान करने से दोगुने फल की प्राप्ति होती है, जिनमें पितृ पक्ष विशेष पंच भोग, दीप दान भी शामिल है। इसलिए इस पूजा के साथ अतिरिक्त विकल्प के रूप में दिए गए जैसे पंच भोग, दीप दान एवं गंगा आरती का चुनाव करना आपके लिए फलदायी हो सकता है। इसलिए इस पूजा में इन विकल्पों को चुनकर अपनी पूजा को और भी अधिक प्रभावशाली बनाएं। श्री मंदिर के माध्यम से इस पूजा में भाग लें और अपने पूर्वजों से आशीर्वाद प्राप्त करें।