🪔 सनातन धर्म में कालाष्टमी का दिन भगवान काल भैरव को समर्पित सबसे शक्तिशाली दिनों में से एक माना गया है। कहा जाता है कि इस दिन भैरवदेव की रक्षा करने वाली ऊर्जा अपने चरम पर होती है, जिससे भक्तों को अदृश्य बाधाओं, छिपे शत्रुओं और मन के भय पर विजय पाने की शक्ति मिल सकती है। अक्सर जीवन में ऐसा होता है कि पूरी मेहनत के बाद भी व्यक्ति अनजानी परेशानियों में फँसा रहता है। कभी यह बुरी नज़र, ईर्ष्या, या नकारात्मक ऊर्जाओं के कारण होता है। शास्त्रों के अनुसार, ऐसी रुकावटें कर्मिक असंतुलन या निम्न ऊर्जा प्रभाव के कारण उत्पन्न होती हैं। कालाष्टमी इन नकारात्मक प्रभावों को दूर करने का अवसर देती है।
🪔 शास्त्रों में वर्णित है कि माँ महाकाली का प्रकट होना सबसे भयंकर दुष्ट शक्तियों के विनाश के लिए हुआ था। जब रक्तबीज नामक असुर से युद्ध हुआ, तो उसके खून की हर बूंद जमीन पर गिरते ही नया राक्षस जन्म ले लेता था। तब माँ महाकाली ने उसके खून को धरती पर गिरने से पहले ही पी लिया और बुराई का मूल नाश कर दिया। इसी प्रकार भगवान काल भैरव, भगवान शिव का उग्र रूप होकर, अहंकार और बाधाओं का नाश करते हैं और अपने भक्तों की रक्षा करते हैं।
इसी कारण महाकाली और काल भैरव की संयुक्त पूजा नकारात्मकता को जीवन से दूर करने में अत्यंत प्रभावी मानी जाती है।
इस दिन:
21,000 काली बीज मंत्र जाप — नकारात्मक संबंधों और समस्याओं के मूल को समाप्त करने के लिए।
भैरव कवच हवन — भक्त और उसके परिवार के चारों ओर सुरक्षा कवच स्थापित करने के लिए।
माँ महाकाली और भगवान काल भैरव की संयुक्त कृपा से शांति, सुरक्षा और सफलता के द्वार खुलते हैं।
कालाष्टमी की यह रात्रि अंधकार को हटाकर, शत्रुओं पर विजय दिलाने और जीवन में दिव्य रक्षा प्राप्त करने का विशेष समय मानी गई है। महाकाली के अनुष्ठान शक्तिपीठ कालीघाट और भैरव देव की महापूजा-हवन काशी के श्री आदि काल भैरव मंदिर में संपन्न होंगे।
🪔 यह विशेष पूजा श्री मंदिर के माध्यम से आयोजित की जा रही है, जिसका उद्देश्य आपके जीवन में स्वास्थ्य, शांति और सुरक्षा लाना है।