2025 की शनि अमावस्या इतनी शक्तिशाली क्यों मानी जाती है? 🔱
जब अमावस्या और शनिवार एक साथ आते हैं, तो यह समय आत्मचिंतन, कर्म संतुलन और न्याय से जुड़ी साधनाओं के लिए अत्यंत प्रभावशाली माना जाता है। शास्त्रों में अमावस्या को कर्म विमोचन से और शनिवार को न्याय और उत्तरदायित्व के स्वामी शनि देव से जोड़ा गया है। ऐसा माना जाता है कि यह दुर्लभ संयोग कानूनी मामलों, विरोध, और लंबे समय से चले आ रहे विवादों से जुड़ी प्रार्थनाओं को और अधिक गहराई प्रदान करता है। परंपरागत रूप से भक्त इस दिन शनि देव से मार्गदर्शन की कामना करते हैं, ताकि कर्मों का दबाव शांत हो और जटिल परिस्थितियां ईश्वर चरणों में समर्पित की जा सकें।
इस दिन का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि यह 2025 की अंतिम शनि अमावस्या है, जिसे मां बगलामुखी के आवाहन के लिए भी शुभ माना जाता है। मां बगलामुखी को विरोध को नियंत्रित करने और संघर्ष के समय आंतरिक स्थिरता प्रदान करने वाली शक्ति के रूप में पूजा जाता है। इसी कारण यह दिन समाधान और संरक्षण की कामना करने वालों के लिए विशेष रूप से अर्थपूर्ण माना जाता है।
शनि अमावस्या पर शनि देव और मां बगलामुखी दोनों की उपासना क्यों की जाती है? 🔱
पुराणों के अनुसार, मां बगलामुखी का प्राकट्य नकारात्मक शक्तियों को रोकने और नियंत्रित करने के लिए हुआ था। इसलिए कानूनी संघर्षों और छिपे हुए विरोध से जुड़ी प्रार्थनाओं में उनकी उपासना को विशेष महत्व दिया गया है। अमावस्या को उनका सबसे ग्रहणशील काल माना जाता है, जो कर्मिक मौन और आंतरिक स्थिरता से जुड़ा होता है। शनि अमावस्या पर भगवान श्री शनि देव का आवाहन भी किया जाता है, जिन्हें कर्म और न्याय का अधिष्ठाता माना जाता है। परंपरा के अनुसार उनकी उपासना लंबे समय से चले आ रहे संघर्षों में संतुलन और न्याय की पुनः स्थापना में सहायक मानी जाती है। दोनों देव शक्तियों का संयुक्त आवाहन जीवन में धैर्य, संयम और शांतिपूर्ण समाधान का मार्ग प्रशस्त करता है।
इन शक्तियों का आवाहन जिन स्थलों पर किया जाता है, उनका आध्यात्मिक महत्व 🔱
उज्जैन स्थित नवग्रह शनि मंदिर और हरिद्वार स्थित मां बगलामुखी मंदिर में मां बगलामुखी का तंत्र युक्त हवन तथा भगवान श्री शनि देव का तिल तेल अभिषेक वैदिक विधि और पारंपरिक मंत्रों के साथ संपन्न किया जाता है। चूंकि यह शनि अमावस्या प्रातः 7:12 बजे समाप्त हो जाती है, इसलिए पूजा ब्रह्म मुहूर्त में की जाएगी, ताकि संपूर्ण अनुष्ठान अमावस्या तिथि के भीतर ही पूर्ण हो सके। हवन को बाधाओं के विमोचन का प्रतीक माना जाता है, जबकि तिल तेल अभिषेक शनि देव की कर्मिक तीव्रता को शांत कर मन में स्थिरता लाने का माध्यम माना जाता है।
✨ श्री मंदिर के माध्यम से इस विशेष पूजा में सहभागिता करें। वर्ष की अंतिम शनि अमावस्या पर संपन्न यह अनुष्ठान हानिकारक मंशाओं को कमजोर करने, विवादों में सत्य पक्ष को सशक्त करने और जटिल कानूनी परिस्थितियों में स्पष्टता और संरक्षण प्रदान करने में सहायक माना जाता है।