✨ 2025 की अंतिम पूर्णिमा एक दुर्लभ मोड़ लेकर आई है यह वह रात है जब चंद्रमा वर्ष के अंतिम पूर्ण रूप में पहुँचता है और शास्त्रों के अनुसार, मन और भावनाओं में छुपे बोझ सामने आते हैं ताकि नए चक्र की शुरुआत से पहले उन्हें छोड़ दिया जा सके। हिन्दू ग्रंथों, विशेषकर देवी भागवतम और कालिका पुराण के अनुसार, पूर्णिमा की रात सोम तत्त्व (शांत, स्थिरकारी चंद्र ऊर्जा) अपनी चरम सीमा पर होती है, जो मन को उलझनों, भावनात्मक थकान और छिपी हुई चिंताओं से मुक्त होने में मदद करती है। ऐसा माना जाता है कि इस रात देवी को की गई कोई भी पूजा या अर्पण और अधिक सुलभ और प्रभावशाली रूप से देवी तक पहुँचता है क्योंकि मन स्वाभाविक रूप से ग्रहणशील हो जाता है।
✨ शास्त्रों के अनुसार, जब महिषासुर अजेय हो गया और देवता संसार की रक्षा नहीं कर सके, तो उनकी संयुक्त दिव्य ऊर्जा एक प्रखर प्रकाश के रूप में प्रकट हुई। इसी प्रकाश से आदि शक्ति प्रकट हुई – जो अन्याय का नाश करती है और संतुलन बहाल करती है। इस पवित्र दिन हम पाँच शक्तिशाली रूपों, महाविद्याओं, की पूजा करते हैं। इनकी उपासना से लंबी अवधि की बाधाएँ दूर होती हैं और हृदय में शक्ति, स्पष्टता और साहस का संचार होता है।
🌸 माँ तारा – करुणामयी मार्गदर्शक, जो हमें हमारे सबसे बड़े संकट पार करने में मदद करती हैं।
🌸 माँ काली – अहंकार, अंधकार और सभी भीतरी भय का नाश करने वाली।
🌸 माँ त्रिपुरा सुंदरी – जीवन में सुंदरता, शांति और स्पष्टता देने वाली।
🌸 माँ भैरवी – तीव्र रक्षक, जो सभी नकारात्मकताओं को दूर करती हैं।
🌸माँ बगलामुखी - शक्ति और विजय की देवी, जो नकारात्मकता को शांत करती हैं और बाधाओं को दूर करने में मदद करती हैं।
इस विशेष महायज्ञ का आयोजन कालीघाट शक्तिपीठ पर किया जाएगा, जहाँ देवी की ऊर्जा अत्यंत प्रबल मानी जाती है। वहीं दूसरी तरफ वर्ष की अंतिम पूर्णिमा इन पाँच देवियों की संयुक्त शक्ति एक आध्यात्मिक समापन समारोह का काम करती है यह मन को शांत करने, जीवन के निर्णयों के आसपास की धुंध साफ करने और नए अध्याय में स्थिरता और साहस के साथ कदम रखने में मदद करती है।
✨ श्री मंदिर के माध्यम से आप इस पवित्र यज्ञ में भाग ले सकते हैं। यह एक दिव्य अवसर है कि आप अपनी चिंताओं को छोड़कर महाविद्याओं की शक्ति से अपने आपको भर सकें और नए वर्ष की शुरुआत शांति और सामर्थ्य के साथ कर सकें।