ज्येष्ठ पूर्णिमा पर करें पितृ अनुष्ठान, पाएं कर्म शुद्धि और पितृ शांति का वरदान
ज्येष्ठ पूर्णिमा का दिन आध्यात्मिक ऊर्जा, चंद्र शांति और दैवी कृपा का विशेष समय माना जाता है। सनातन परंपरा में यह पूर्ण चंद्र दिवस विशेष रूप से पितृ अनुष्ठानों के लिए अत्यंत शुभ माना गया है। यह दिन कर्म संबंधों को शुद्ध करने, वंशगत अवरोधों को दूर करने और अशांत आत्माओं को शांति देने का दिव्य अवसर प्रदान करता है। इस ज्येष्ठ पूर्णिमा पर श्री मंदिर आपको पवित्र तीर्थ दक्षिण काशी, जहाँ भगवान शिव स्वयं विराजमान हैं, में नारायण बलि, पितृ दोष शांति पूजा और त्रिपिंडी श्राद्ध जैसे विशेष पितृ अनुष्ठानों में भाग लेने के लिए आमंत्रित करता है।
गरुड़ पुराण जैसे शास्त्रों में उल्लेख है कि जिन आत्माओं को असमय मृत्यु प्राप्त हुई हो या जिन्हें मृत्यु के बाद उचित संस्कार नहीं मिले, वे प्रायः बेचैन रहती हैं। ऐसी अनसुलझी ऊर्जाएं वंशजों के जीवन में पितृ दोष के रूप में प्रकट हो सकती हैं। इसका प्रभाव पारिवारिक रिश्तों में असंतुलन, विवाह या संतान संबंधी बाधाएं, बार-बार स्वास्थ्य समस्याएं और आर्थिक अस्थिरता के रूप में अनुभव होता है। इस समस्या का समाधान:
ऐसी आत्माओं को मुक्ति दिलाने और उन्हें शांति प्रदान करने के लिए नारायण बलि का अनुष्ठान किया जाता है।
त्रिपिंडी श्राद्ध उन पूर्वजों के लिए समापन प्रदान करने में मदद करता है जिनके अनुष्ठान छूट गए थे या भूल गए थे।
पितृ दोष शांति पूजा कर्म अवरोधों को दूर करती है, जिससे परिवार में सद्भाव और समृद्धि वापस आती है।
इस पूर्णिमा पर गोकर्ण तीर्थ में संपन्न हो रहे पितृ अनुष्ठानों की विशेषता यह है कि इन्हें एक अत्यंत पवित्र शिव क्षेत्र में किया जा रहा है, जहाँ प्रत्येक आहुति और मंत्र का प्रभाव कई गुना अधिक माना जाता है। गोकर्ण को दक्षिण काशी कहा गया है, और मान्यता है कि यहां किए गए कर्मकांडों से पूर्वजों की मुक्ति की गति तीव्र होती है तथा जीवन में गहराई से आध्यात्मिक शुद्धि और समाधान प्राप्त होता है। श्री मंदिर के माध्यम से आयोजित इन दिव्य अनुष्ठानों में भाग लेकर आप अपने वंश में शांति, संतुलन और जीवन में उन्नति का दुर्लभ अवसर प्राप्त कर सकते हैं।