भगवान विष्णु को समर्पित एकादशी का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। साल में कुल 24 एकादशी पड़ती है लेकिन ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी एवं पांडव एकादशी या भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन बिना जल ग्रहण किए दिनभर व्रत रखा जाता है, यही कारण है कि इसे सबसे कठोर एकादशियों में से एक माना गया है। भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए यह दिन अत्यंत शुभ है। इसलिए इस दिन सभी भक्त भगवान विष्णु की विभिन्न प्रकार से अराधना करते हैं। मान्यता है कि इस शुभ दिन पर व्रत कथा के साथ भगवान विष्णु का द्वादशाक्षर मंत्र जाप करने से समृद्धि एवं भौतिक कल्याण की प्राप्ति होती है। द्वादश अक्षरों वाला ये भगवान विष्णु का ये मंत्र केवल मन्त्र नहीं बल्कि महामन्त्र है। माना जाता है कि इस महामन्त्र के प्रभाव से साधक मनवांछित फल की प्राप्ति कर सकता है।
प्रचलित कथा के अनुसार संसार के प्रथम पुरुष स्वायंभुव मनु और प्रथम स्त्री शतरूपा थी। इन्हीं प्रथम पुरुष एवं प्रथम स्त्री की सन्तानों से संसार के समस्त जनों की उत्पत्ति हुई। माना जाता है कि ये दोनों यानि मनु और शतरूपा भी द्वादशाक्षर मंत्र (ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय) का प्रेम सहित जप करते थे। द्वादशाक्षर मंत्र बहुत ही प्रभावशाली मंत्र है। जिसकी महिमा बताते हुए सूतजी कहते हैं कि यदि मनुष्य सत्कर्म करते हुए, सोते-जागते, चलते-उठते हुए भी भगवान के इस द्वादशाक्षर मंत्र का निरन्तर जाप करता है तो वह सभी पापों से छूटकर सद्गति को प्राप्त होता है। लक्ष्मीजी की बड़ी बहन अलक्ष्मी (दरिद्रा) भगवान का नाम सुनकर उस घर से तुरंत भाग खड़ी होती है। इसी मंत्र के जप से ध्रुव को बहुत शीघ्र भगवान के दर्शन हुए थे। इसलिए निर्जला एकादशी के शुभ दिन पर 11,000 विष्णु द्वादशाक्षर मंत्र जाप एवं एकादशी व्रत कथा का आयोजन किया जा रहा है श्री मंदिर के माध्यम से इस पूजा में भाग लें और विष्णु देव से सुख समृद्धि के साथ भौतिक कल्याण का आशीष पाएं।