😔 क्या आपको लगता है कि जीवन जैसे रुक-सा गया है? मानो कोई अदृश्य शक्ति आपके सुख और सफलता की राह में बाधा डाल रही हो? षष्ठी पितृ दोष शांति पूजा इस बंधन से राहत पाने का एक अवसर है।
हमारे प्राचीन शास्त्र, जैसे गरुड़ पुराण, एक गहरी सच्चाई बताते हैं कि हमारा जीवन हमारे पूर्वजों से गहराई से जुड़ा हुआ है। जिस प्रकार हम उनसे नाम और संपत्ति पाते हैं, उसी प्रकार हम उनके आध्यात्मिक ऋण भी वहन करते हैं। जब पितरों को शांति मिलती है, तो वे परिवार पर स्वास्थ्य, धन और सफलता का आशीर्वाद बरसाते हैं। लेकिन यदि उचित अंतिम संस्कार और श्राद्ध न किए गए हों, तो उनकी असंतुष्टि हमारे जीवन में समस्याएँ उत्पन्न कर सकती है। इसलिए पूर्वजों को सम्मान देने हेतु हर वर्ष पितृ पक्ष का विशेष समय आता है। मान्यता है कि इन पंद्रह दिनों में पितृ लोक से आत्माएँ पृथ्वी पर आती हैं और अपने वंशजों से प्रेम, सम्मान और तर्पण की अपेक्षा करती हैं। इन्हीं पावन दिनों की छठी तिथि, जिसे षष्ठी श्राद्ध कहते हैं, विशेष महत्व रखती है। इस दिन विशेष रूप से उन पितरों का स्मरण किया जाता है जिनका देहांत षष्ठी तिथि को हुआ हो।
इस पुण्य अवसर पर यह विशेष षष्ठी श्राद्ध पूजन पावन नगरी काशी में आयोजित होगा। काशी, जिसे भगवान शिव की नगरी और मोक्ष का द्वार माना गया है, पितृ शांति के लिए अत्यंत पवित्र मानी जाती है। काशी का पिशाच मोचन कुंड आत्माओं को मुक्ति देने के लिए विख्यात है। यहाँ पितृ दोष शांति पूजा कर, फिर माँ गंगा के तट पर गंगा आरती करना, पापों को धोने और पितरों को शांति दिलाने वाला माना जाता है।
इस विशेष पूजन और गंगा आरती से श्रद्धालु प्रार्थना करते हैं कि उनके पितरों को शांति मिले और वे उच्च लोक की ओर अग्रसर हों। जब पितर संतुष्ट होते हैं, तो वे बाधाओं को दूर कर परिवार पर सुख-समृद्धि और आशीर्वाद बरसाते हैं। इससे दीर्घकालिक पारिवारिक समस्याएँ शांत हो सकती हैं, करियर में प्रगति संभव होती है और बच्चों के भविष्य की रक्षा होती है। यह पूजन अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता और प्रेम प्रकट करने का श्रेष्ठ माध्यम है।
इस श्राद्ध पक्ष की षष्ठी पर श्री मंदिर के माध्यम से पूजा में सम्मिलित होकर अपने पितरों को काशी में सम्मान दें और जीवन से बाधाओं से राहत पाने एवं सुख-समृद्धि के लिए प्रार्थना करें।
इसी के साथ यदि आपको अपने किसी दिवंगत-पूर्वज की तिथि याद नहीं तो महालया (सर्वपितृ) अमावस्या पर हो रहे अनुष्ठानों में भाग लेकर पुण्य के भागी बनें।