हिंदू धर्म में अष्टमी तिथि का बेहद महत्व है, यह तिथि देवी मां को समर्पित है। कहते हैं इस दिन बाबा भैरव और देवियों की तंत्र पूजा करवाना अत्यंत प्रभावशाली होता है। इस दिन विशेष पूजा कराने से भक्तों को नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा मिलती है। तांत्रिक परंपराओं में भैरव पूजा को अत्यधिक शक्तिशाली एवं महत्वपूर्ण माना गया है। मान्यता है कि देवी की अद्भुत कृपा प्राप्त करने के लिए सबसे पहले भैरव की पूजा करनी चाहिए। यही कारण है कि अष्टमी तिथि भगवान विक्रांत भैरव के साथ सर्वशक्ति मां कामाख्या की पूजा एक साथ कराई जा रही है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार जब भगवान शिव देवी के 51 शक्तिपीठों की स्थापना कर रहे थे तब असुरों को इस बात का भय सताने लगा कि यदि पृथ्वी पर इन शक्तिपीठों की स्थापना हो गयी तो असुरों का विनाश हो जायेगा। जिस कारण सभी असुर इन शक्तिपीठों को खंडित करने के लिए आगे बढ़ने लगे, इस बात को जानकार भगवान शिव ने अपने भैरव अवतार को उन शक्तिपीठों की रक्षा करने के लिए छोड़ दिया। यही कारण है कि देवी के दर्शन एवं उनकी कृपा पाने के लिए पहले बाबा भैरव की आज्ञा लेनी पड़ती है उसके बाद ही देवी की कृपा पाना संभव होता है। देवी के प्रमुख शक्तिपीठों में से गुवाहाटी में स्थित कामाख्या शक्तिपीठ की विशेष मान्यता है, वहीं महाकाल की नगरी उज्जैन में विक्रांत भैरव प्रमुख रूप से विराजमान हैं। इसलिए इन पवित्र स्थलों पर कराई जाने वाली पूजा का विशेष फल प्राप्त करने के लिए माँ कामाख्या तंत्र युक्त यज्ञ एवं काल भैरव अष्टकम स्तोत्र पाठ में श्री मंदिर के माध्यम से भाग लें और देवी मां के साथ विक्रांत भैरव का आशीष पाएं।