होलिका दहन हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो फाल्गुन मास की पूर्णिमा की संध्या को मनाया जाता है। इस दिन होलिका का सांकेतिक दहन किया जाता है, जिसे छोटी होली भी कहते हैं। यह पर्व भक्त प्रह्लाद, राजा हिरण्यकश्यप और होलिका की कथा से जुड़ा है। पौराणिक कथा के अनुसार, हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रह्लाद की विष्णु भक्ति से क्रोधित होकर उसे मारने के कई प्रयास किए थे, लेकिन भगवान विष्णु ने हर बार उसकी रक्षा की। अंततः, उसकी बहन होलिका, जिसे अग्नि में न जलने का वरदान प्राप्त था, प्रह्लाद को जलाने के लिए उसे गोद में लेकर अग्नि में बैठी। लेकिन ईश्वर की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहे और होलिका जलकर भस्म हो गई। यह कथा दर्शाती है कि धर्म की अधर्म पर भक्ति की अहंकार पर और सत्य की छल पर विजय का प्रतीक है। इसलिए होलिका दहन के जरिए अग्नि को पवित्र तत्व के रूप में पूजित किया जाता है, जो समस्त नकारात्मकता, भ्रम और पाप कर्मों को भस्म कर देती है।
इसी दिव्य घटना की स्मृति में होलिका दहन किया जाता है, जो हमें सिखाता है कि अहंकार, अधर्म और छल का अंत निश्चित है। यही कारण है कि इस विशेष अवसर पर नारायण-प्रह्लाद संकट नाशक होलिका दहन अनुष्ठान एवं नारायण सुदर्शन महायज्ञ का आयोजन किया जा रहा है, जो शत्रुओं, बुरी शक्तियों और छिपे खतरों से सुरक्षा प्रदान करता है। नारायण सुदर्शन महायज्ञ भगवान विष्णु के दिव्य सुदर्शन चक्र का आह्वान कर सभी प्रकार के संकटों और दुर्भाग्य को समाप्त करता है। यह अनुष्ठान न केवल बुरी शक्तियों और शत्रुओं से रक्षा करता है, बल्कि जीवन में शांति, सुख और समृद्धि भी लेकर आता है। यदि आप भी अपने जीवन में किसी छिपे हुए खतरे, नकारात्मक ऊर्जा या शत्रु बाधा का सामना कर रहे हैं, तो श्री मंदिर के माध्यम से इस दिव्य अनुष्ठान में भाग लें और भगवान नारायण की कृपा से अखंड सुरक्षा और विजय का आशीर्वाद प्राप्त करें। इस होलिका दहन पर अपने जीवन से सभी विघ्नों और दुर्भाग्य को समाप्त करें और भगवान विष्णु की दिव्य कृपा से विजय प्राप्त करें।